लखनऊ। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश समेत देश के 11 राज्य सूखे की चपेट में हैं। विदर्भ, मराठवाड़ा और बुंदेलखंड में पानी के लिए त्राहिमाम मचा है। यूपी के शहरी इलाकों में एक से 2 मीटर तक जलस्तर नीचे चला गया है। लखनऊ का पानी भी पाताल में जा रहा है।
बुंदेलखंड के ललितपुर में पिछले वर्ष बोरिंग कराने पर पानी 15 से 20 मीटर पर मिल जाता था, लेकिन इस बार 40 से 50 मीटर पर भी पानी नहीं मिल रहा है। भूगर्भ जल विभाग भी मानता है कि बुंदेलखंड में पानी एक से ढाई मीटर तक नीचे गया है तो लखनऊ में एक से दो मीटर तक जलस्तर नीचे चला गया है। बारिश न होने और अंधाधुंध दोहन के चलते लखनऊ के लोगों के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। 2011 की जनगणना के अनुसार करीब 31 लाख की आबादी वाले शहर की प्यास बुझाने के लिए 750 एमएलडी पानी की जरूरत है। जबकि घरों तक मात्र 450 एमएलडी पानी पहुंच रहा है। मौजूदा जनसंख्या और पानी की उपलब्धता देंखे तो आने वाले समय में यहां भी पानी के लिए हाहाकार मच सकता है।
भूगर्भ जल विभाग, उत्तर प्रदेश के निदेशक सुकेश कुमार साहनी बताते हैं, “हां ये सही है कि भूमिगत जलस्तर में तेजी से गिरावट आई है। यूपी के शहरी क्षेत्रों की बात करें तो मेरठ में सबसे ज्यादा जबकि लखनऊ में 0.6 से लेकर 1.05 मीटर तक औसत गिरावट दर्ज की है। बुंदेलखंड़ में ये आंकड़ा एक से ढाई मीटर तक है। क्योंकि पिछले दो वर्षों से अच्छी बारिश नहीं हुई है और दोहन ज्यादा हुआ है इसलिए हालात बिगड़े हैं।”
बुंदेलखंड में ललितपुर जिले के महरौनी में रहने वाले सुखवेंद्र सिंह (35 वर्ष) बताते हैं, “पिछले वर्ष यहां 40-50 मीटर पर बोरिंगें पानी दे रही थीं, पिछले हफ्ते हमने एक बोरिंग कराई तो 70 मीटर पर भी पानी नहीं मिला। वहीं महाराष्ट्र के लातूर के कई इलाकों में वाटर लेवल 160 मीटर के ऊपर है यानि करीब 500 फीट नीचे। केंद्रीय जल आयोग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 31 मार्च को ही देश के 91 बड़े जलाशयों में उनकी कुल क्षमता का महज 25 फीसदी पानी बचा था।
पानी को लेकर लंबी लड़ाई लड़ने वाले और वर्ष 2015 में स्टॉकहोम वॉटर प्राइज से नवाजे जा चुके जलपुरुष राजेंद्र सिंह कहते हैं “इससे बुरे हालात क्या होंगे कि पाने के लिए धारा 144 लगानी पड़ी। 11 राज्यों में मारकाट मची है। ये सब समस्याएं सरकारों ने पैदा की हैं। जब से भूमिगत जल के शोषण की तकनीकें और इंजीनियरिंग विकसित हुई जमीन से अंधाधुध पानी निकाला गया। बेमेल विकास और गलत नीतियों के चलते संकट बढ़ा और आगे स्थिति खतरनाक होगी।”
वो आगे कहते हैं, “जब सरकारें सहीं दिशा में काम नहीं कर रहीं तो समाज को आगे आना होगा। पानी का दुरुपयोग रोकना ही होगा। फिलहाल के लिए अच्छी बात ये है कि बेहतर बारिश की संभावना जताई जा रही है और केंद्र सरकार ने जल संरक्षण के लिए 60 हजार करोड़ की व्यवस्था की है। अगर ये सही दिशा में इस्तेमाल हुआ तो बेहतर रिजल्ट मिलेंगे।”
नासा की रिपोर्ट में सूखे की भयावह तस्वीर
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अपनी रिपोर्ट में सूखे के लिए अंधाधुध जल दोहन को जिम्मेदार बताया है। वर्ष 2002 से 2008 के बीच की परिस्थितियों पर अध्ययन पर आधारित नासा की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर पश्चिम भारत के भूजल स्तर में हर साल 4 सेंटीमीटर यानी 1.6 इंच की कमी आ रही है। इस क्षेत्र में 2002 से 2008 के दौरान तकरीबन 109 क्यूबिक किलोमीटर पानी की कमी हुई है। यह मात्रा अमेरिका के सबसे बड़े जलाशय लेक मीड की क्षमता से दोगुने से भी कहीं ज्यादी की बताई जा रही है।
जल आयोग के आंकड़े डरा रहे हैं
अच्छे मानसून की उम्मीद है लेकिन उससे पहले इस साल देश में गंभीर जल संकट से गुजरता दिख रहा है। महाराष्ट्र और बुंदेलखंड समेत कई इलाकों में पहले से सूखे की स्थिति है। केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों पर गौर करे तो आगे हालात और बिगड़ सकते हैं। आयोग के मुताबिक 31 मार्च तक देश के 91 बड़े जलाशयों में उनकी कुल क्षमता का महज 25 फीसदी पानी ही बचा है।
सूख रही है लखनऊ की धरती
लखनऊ। लखनऊ की मौजूदा आबादी करीब 45 लाख होगी। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लखनऊ शहर की आबादी 31 लाख थी उस वक्त लोगों की प्यास बुझाने के लिए 750 एमएलडी पानी की जरूरत थी, जबकि आज भी मात्र 450 एमएमली पानी ही पहुंच रहा है।शहर में ऐशबाग, बालागंज और कठौता जलकल से पेयजल की आपूर्ति होती है। इसके अलावा 616 नलकूपों से भी पेयजल आपूर्ति भी जाती है। इन कूपों में से 35 नलकूप बंद पड़े हैं। घरों में भारी संख्या में समर्सिबल पंप लगे हैं। शहर के पानी का 20 फीसदी हिस्सा लिकेज में बर्बाद हो जाता है। अंधाधुंध दोहन के चलते है। लखनऊ में एक से दो मीटर भूमिगत जलस्तर नीचे गया है।
रिपोर्टर – अरविंद शुक्ला/जसवंत सोनकर