दिल के टूटने को लेकर हमेशा से कयास लगाए जाते रहे हैं। कोई कहता है कि इतना छोटा सा दिल कैसे टूट सकता है, कोई कहता है दिल कांच का तो होता नहीं है, जो टूट जाएगा। खैर जितने लोग उतनी ही बातें, लेकिन ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो ये मानते हैं कि दिल टूटता है। लेकिन आपको ये जानकर शायद हैरानी होगी कि दिल सिर्फ कवि की कल्पनाओं या लेखक की रचनाओं में ही नहीं टूटता, दिल हक़ीकत में टूटता है और दिल के टूटने की इस बीमारी को कहते हैं – ताकोत्सुबो कार्डियोमायोपैथी यानि ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम।
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अब आप सोच रहे होंगे कि दिल टूटने का चिकित्सकीय नाम यानि ताकोत्सुबो कार्डियोमायोपैथी जापानी-सा क्यों लगता है? इसका कारण यह है कि यह नाम जापानी ही है, लेकिन इसका कारण यह नहीं है कि जापानीयों का दिल ज्यादा टूटता है। दरअसल, ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम में मांसपेशियां शिथिल पड़ने से हृदय का जो आकार हो जाता है, वह जापान में मछुआरों द्वारा ऑक्टोपस पकड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जाल जैसा लगता है। इस जाल को जापानी भाषा में ताकोत्सुबो कहते हैं। इसी से इस बीमारी का नाम ‘ताकोत्सुबो कार्डियोमायोपैथी’ पड़ गया।
क्या है ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम
ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम दिल की एक तनाव भरी अवस्था है। इस बीमारी में दिल की मांसपेशियां कुछ देर के लिए शिथिल पड़ जाती हैं। मेडिकल साइंस ये मानता है कि दिल किसी बुरी खबर से अचानक रूबरू होने पर भी टूट सकता है और कोई अच्छी ख़बर जिसका काफी समय से इंतज़ार हो, के मिलने पर भी टूट सकता है। दिल के टूटने पर अचानक से सीने में दर्द होता है और ऐसा लगता है जैसे कि दिल का दौरा पड़ा हो। इसमें दिल का एक हिस्सा अस्थाई रूप से बड़ा हो जाता है और ठीक से पंप नहीं करता।
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इस सिंड्रोम के बारे में पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि इसके ज़्यादातर लक्षण हार्ट अटैक से मिलते हुए होते हैं। वेबसाइट मायोक्लीनिक के मुताबिक, ऐसा ही एक उदाहरण अमेरिका में देखने को मिला- अस्पताल में एक लगभग 42 वर्ष की महिला इमरजेंसी रूम में लाई जाती है। महिला के परिवार वालों और डॉक्टर को ऐसा लगता है कि उसे दिल का दौरा पड़ा है, क्योंकि सारे लक्षण उसी के हैं। जब ईसीजी और अल्ट्रासाउंड किया जाता है, तो डॉक्टर पाते हैं कि उसके दिल का बायां भाग काम नहीं कर रहा, लेकिन हृदय की किसी भी धमनी में कोई रुकावट नहीं है और न ही हृदय को होने वाले ब्लड सर्कुलेशन में कोई गड़बड़ी है। दिल के वाल्व में भी कोई खराबी नजर नहीं आती। सिर्फ एक परेशानी यह है कि दिल के बायीं ओर की मांसपेशियां शिथिल हो गई हैं, मानो उन्हें लकवा मार गया हो। अस्पताल के डॉक्टर समझ जाते हैं कि यह मामला दिल टूटने का है। हालांकि, इस स्थिति में जान को जोखिम हो सकता है, लेकिन हार्ट अटैक की तुलना में यह कहीं कम खतरनाक होती है।
किस उम्र के लोगों को ज़्यादा ख़तरा
ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम वैसे तो किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है, लेकिन एक रिसर्च में दिलचस्प बात यह देखने में आई है कि ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम के शिकार 90 प्रतिशत मरीज 50 से 70 वर्ष के बीच की महिलाएं होती हैं। डॉक्टर मानते हैं कि महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद एस्ट्रोजन नामक हार्मोन के स्तर में आई गिरावट के चलते कोई अजीब घटना घटने पर उनका ऑटोनॉमस नर्वस सिस्टम अधिक सक्रिय हो उठता है। इससे शरीर में बहुत अधिक मात्रा में स्ट्रेस हार्मोन का स्राव हो उठता है और इसी के कारण हृदय की मांसपेशियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
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इस अवस्था में रोगी को आईसीयू में कड़ी निगरानी में रखा जाता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि डॉक्टर को पता हो कि यह ब्रोकन हार्ट का मामला है और वह दिल के दौरे के लिए उपचार शुरू न कर दें। ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। हृदय के बाएं हिस्से की मांसपेशियों में आई शिथिलता धीरे-धीरे कुछ दिन या कभी-कभी कुछ सप्ताह में दूर हो जाती है। इस घटना के कारण मांसपेशी को कोई स्थायी नुकसान नहीं होता।
ये होते हैं लक्षण
- सीने, गर्दन और बायीं बाजू में तेज दर्द होना।
- सांस फूलना।
- वॉमेटिंग सेंसेशन होना।
- कमज़ोरी महसूस होना।
ये सारे लक्षण दिल के दौरे से मिलते-जुलते हैं, इसलिए इससे रोगी के परिजन तो असमंजस में पड़ ही जाते हैं, साथ ही डॉक्टरों के लिए भी तुरंत यह जानना मुश्किल हो जाता है कि रोगी को हार्ट अटैक हुआ है या वह ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम का शिकार है।
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क्या है कारण
ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम की असली वजह क्या होती है, ये तो किसी को नहीं पता, लेकिन ऐसा माना जाता है कि एड्रेनलिन स्ट्रेस हार्मोन की मात्रा शरीर में बढ़ने से कुछ लोगों का हृदय अस्थायी रूप से डैमेज हो जाता है। ये हार्मोन किस तरीके से हार्ट को नुकसान पहुंचाता है, इस बारे में अभी तक कोई तथ्य सामने नहीं आया है। दिल की धमनियों का अस्थायी संकुचन इसकी एक वजह हो सकता है।इसके मुख्य कारण ये हो सकते हैं-
- किसी बहुत प्रिय व्यक्ति की मौत।
- किसी बड़ी बीमारी का डर।
- घरेलू हिंसा।
- बहुत ज्यादा रुपयों का नुकसान।
- कोई मेजर सर्जरी।
- पब्लिक के सामने परफॉर्म करने का डर।
- अचानक से कोई आश्चर्यजनक खबर सुनने पर।
- ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम हार्ट अटैक से अलग है
ज्यादातर हार्ट अटैक दिल की धमनियों के ब्लॉकेज के कारण होते हैं। इसमें धमनी की दीवार पर चर्बी जमा हो जाती है, जिससे धमनी संकीर्ण हो जाती है और ब्लड क्लॉटिंग हो जाती है। लेकिन ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम में हृदय की धमनियां ब्लॉक नहीं होती हैं, बल्कि धमनियों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है, जिससे मांसपेशियां कुछ समय के लिए शिथिल हो जाती हैं।
रिस्क फैक्टर्स
बहुत कम केसेज में ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम घातक होता है। जो लोग इस सिंड्रोम का शिकार हुए हैं, उनमें से ज्यादातर को कोई खास परेशानी नहीं हुई और वो जल्दी ही ठीक भी हो गए। लेकिन इसमें कुछ कॉम्प्लिकेशंस हो सकते हैं-
- दिल की धड़कन टूटने लगती है।
- हार्ट बीट कभी बहुत तेज, तो कभी बहुत धीमी हो जाती है।
- ऐसा भी हो सकता है कि अगर आप किसी स्ट्रेसफुल सिचुएशन में हैं, तो दोबारा आपको ये बीमारी हो जाए। ऐसा हो सकता है कि एक बार होने के बाद ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम दोबारा हो जाए।
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बचाव
अभी तक ऐसी कोई भी थैरेपी विकसित नहीं हुई है, जो इसको दोबारा होने से रोक सके। मगर कुछ डॉक्टर्स बीटा ब्लॉकर या इसके सिमिलर मेडिसिन्स देते हैं, जो डैमेज्ड स्ट्रेस हार्मोन को रिपेयर करती हैं। इस बीमारी से बचने के लिए सबसे जरूरी ये है कि आप ज्यादा टेंशन न लें और अपनी जिंदगी में आने वाली तनाव भरी सिचुएशंस में खुद को मजबूत रखें और उनसे परेशान न हों।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज में सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. मनीष बंसल बताते हैं कि ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम में सीरम एड्रेनलिन का स्तर बढ़ जाता है। वैसे तो इसके कई लक्षण हार्ट अटैक से मिलते जुलते होते हैं लेकिन इसमें और हार्ट अटैक में एक बड़ा अंतर यह है कि दिल का दौरा ज़्यादातर मिडिल एज के लोगों को पड़ता है यानि 40 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों को लेकिन ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम किसी भी उम्र में हो सकता है।
डॉ. बंसल बताते हैं कि हार्ट अटैक एक ख़तरनाक बीमारी होती है लेकिन ताकोत्सुबो कार्डियोमायोपैथी में ज़्यादातर मरीज़ एक हफ्ते में ठीक हो जाते हैं। इसमें मृत्यु दर भी काफी कम होती है।ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम में एंजियोग्राफी नॉर्मल होती है। इससे बचाव का आसान तरीका यही है कि अपने दिल को इतना मज़बूत बना लिया जाए कि अचानक से किसी ख़बर के मिलने पर दिल पर ज़्यादा असर न हो।