लखनऊ। तीन साल पहले अफ्रीका में मक्के की खेत में तबाही मचाने वाला कीट कर्नाटक और तमिलनाडू के बाद अब छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में देखा गया है। ये कीट दर्जन से अधिक फसलों को बर्बाद कर सकता है।
कृषि विज्ञान केंद्र, जगदलपुर के वैज्ञानिकों ने बस्तर और बकावंड ब्लॉक में मक्का की फसल में फॉल आर्मीवर्म को देखा है। फॉल आर्मीवार्म प्रजाति का ये कीट भारत में नहीं पाया जाता है, इसे पहली बार मई-जून 2018 में कर्नाटक के चिककाबल्लपुर जिले के गोविरिद्नूर में मक्का की फसल में देखा गया था, जब वैज्ञानिक फसल में कैटर पिलर से होने वाले नुकसान की जांच कर रहे थे, इससे मक्का की फसल को काफी नुकसान हुआ था।
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक (कीट विज्ञान) धर्मपाल केरकेट्टा बताते हैं, “बस्तर में धान के बाद मक्के की खेती सबसे अधिक क्षेत्रफल में की जाती है, यहां के बस्तर और बकावंड ब्लॉक में हमने सर्वे के दौरान फॉल आर्मीवार्म को देखा। यहां के 80-85 फीसदी मक्के की फसल में इस कीट का प्रभाव देखा गया है। वैसे तो ये साउथ अमेरिका में पाया जाने वाला कीट है, लेकिन इसने पहले अफ्रीका, अभी पिछले साल भारत में कर्नाटक में देखा गया था। अभी जल्दी ही श्रीलंका में भी इसकी रिपोर्ट मिली है।”
दो साल पहले अफ्रीका में इस कीट को देखा गया था। आकार में ये कीट भले ही छोटे हों, लेकिन ये इतनी जल्दी अपनी आबादी बढ़ाते हैं कि देखते ही देखते पूरा खेत साफ कर सकते हैं। यही वजह है कि पिछले दो वर्षों में अफ्रीका में ज्वार, सोयाबीन आदि की फसल के नष्ट हो जाने से करोड़ों का नुकसान हुआ। इस कीट के प्रकोप से परेशान श्रीलंका ने अपने देश मे मक्के की फसल के उत्पादन और इम्पोर्ट पर रोक लगा दी है।
इसके लार्वा मक्का, चावल, ज्वार, गन्ना, गोभी, चुकंदर, मूंगफली, सोयाबीन, प्याज, टमाटर, आलू और कपास सहित कई फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। क्योंकि इन कीटों को खत्म करने के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं रहते हैं, इसलिए इन्हें खत्म करना आसान नहीं होता है।
कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि प्रसार वैज्ञानिक लेखराम वर्मा बताते हैं, “अमेरिका के बाद अफ्रीका, फिर दक्षिण भारत के बाद यहां पर ये कीट देखें गए हैं, अभी हमने दो ब्लॉक में हमने सर्वे किया है, हो सकता है कि अभी ये और जगह पर भी हो सकते हैं।”
भारत में कर्नाटक के अलावा यह कीट तमिलनाडू, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात प्रदेशों से पाये जाने की बात सामने आ चुकी है। लेकिन छत्तीसगढ़ मे पहली बार, छत्तीसगढ़ के प्रमुख मक्का उत्पादक क्षेत्र कहे जाने वाले बस्तर में इसका संक्रमण देखा गया है। इस कीट की इल्ली फसल की आरंभिक अवस्था में पत्तियों को खुरचकर खाती है जिसके कारण उनमें छोटे छोटे छेद हो जाते हैं। कीट को इल्ली के भूरे रंग, सिर पर अंग्रेजी के उल्टे Y (वाई) की आकृति और पिछले सिरे पर चार वर्गाकार व्यवस्था मेँ बिंदी के निशान द्वारा पहचाना जा सकता है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि कीट का आक्रमण मक्का फसल के आरंभिक अवस्था में ही शुरू हो जाता है जिसमे कीट की इल्ली पहले कोमल पत्तियों और मुख्य प्ररोह को खाता है। बाद मे यह कीट मक्के के दाने को संक्रमित कर भारी क्षति पहुंचाता है।
‘फॉल आर्मीवर्म’ फसलों के बीच चार अवस्था मे पाया जाता है, अंडे से कीट पहले लार्वे में तब्दील होता है, जिसे इल्ली कहा जाता है। इसी अवस्था मे यह कीट फसलों को नुकसान पहुंचाता है। लार्वे के रूप में यह कीट फसल के हर हिस्से को खाकर बर्बाद करता है। जिसके बाद यह प्यूपा में तब्दील हो जाता है, यह कीड़े का रेस्टिंग स्टेज है, जिसे हम सामान्य तौर पर कोसा कहते हैं। जिसके बाद यह मॉथ में तब्दील हो जाता है जिसे तितली भी कहते हैं।
इसी दौर में यह कीट एक इलाके से दूसरे इलाके में जाता है। इसी तरह यह कीड़ा उड़ते हुए 2000 किलोमीटर की दूरी तय कर अमेरिकी इलाकों से भारत तक पहुंचा है। फिलहाल यह कीड़ा भारत के कर्नाटक, तमिलनाडु और बस्तर के कुछ इलाकों में पाया गया है। लेकिन श्रीलंका में इस कीड़े का प्रकोप चरम पर है, जहां इसने मक्के की फसल को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। यही वजह है कि श्रीलंका ने अपने देश मे श्रीलंका की फसल पर रोक लगा दी है।
बस्तर में यह कीड़ा अभी मक्के की फसलों में पाया गया है, लेकिन इस कीड़े की पूर्ण रोकथाम के लिए फिलहाल कोई कारगर उपाय मौजूद नही हैं। कृषि वैज्ञानिक कुछ दवाइयों और ट्रैप जैसे उपायों को उपयोग में लाने की सलाह किसानों को दे रहे हैं। अभी बस्तर में यह कीड़ा सिर्फ शुरुआती तौर पर नजर आया है और वैज्ञानिक अब इसके वृहद असर पर शोध कर रहे हैं।