‘122 सालों में सबसे खराब बाढ़’ झेलने के बाद बांग्लादेश के कई क्षेत्रों में सूखे की स्थिति, धान की फसल बुरी तरह प्रभावित

बाढ़ के बाद सूखे ने बांग्लादेश में फसल चक्र को बाधित कर दिया है, खासकर देश के उत्तरी और तटीय दक्षिण-पश्चिम क्षेत्रों में। इस साल डेल्टा देश में अमन धान की खेती के तहत कुल 5.62 मिलियन हेक्टेयर भूमि की सिर्फ 25 प्रतिशत हिस्से पर खेती की गई है।
dhan ka dard

कोयरा (खुलना जिला), बांग्लादेश। बांग्लादेश में यह एक अजीब स्थिति है। जहां देश का एक हिस्सा बाढ़ के बाद की परेशानियों का सामना कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ उसके कुछ हिस्से में सूखे के कारण खेती कर पाना मुश्किल हो गया है। इससे अमन धान की बुवाई बुरी तरह प्रभावित हुई है।

पटुआखली जिले के कालापारा उपाजिला के दक्षिण दौलतपुर गाँव के युसूफ अली हावलादार ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पिछले साल इस समय हमने अमन धान की बुआई पूरी कर ली थी।” पटुआखली जिला दक्षिण-मध्य बांग्लादेश में है। 57 साल के किसान ने कहा, “लेकिन इस साल मैंने जो पौध लगाई थी, वो बारिश की कमी के चलते खराब हो गई। फिर से बुवाई करना मुश्किल होगा।”

उत्तरी बांग्लादेश के राजशाही क्षेत्र में पटुआखली से 400 किलोमीटर उत्तर में हीटवेव की स्थिति बनी हुई है। लेकिन डेढ़ महीने पहले उत्तरी क्षेत्र के कई जिले बाढ़ के पानी में डूबे हुए थे। बांग्लादेश में इस साल की बाढ़ को ‘122 सालों में सबसे खराब बाढ़’ कहा गया था। और अब देश में जल संकट गहरा रहा है।

बाढ़ के बाद सूखे ने बांग्लादेश में फसल चक्र को बाधित कर दिया है। खास तौर पर देश के उत्तरी भाग के सूखा प्रवण क्षेत्र और दक्षिण-पश्चिम में चक्रवात-प्रवण तटीय क्षेत्र इससे काफी प्रभावित हैं।

भारत में गंगा के मैदानी इलाकों में भी ऐसी ही स्थिति है जहां कुछ प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में कम मानसूनी बारिश दर्ज की गई है। इसके चलते यहां भी धान की बुवाई प्रभावित हुई है।

भारत में गंगा के मैदानी इलाकों में भी ऐसी ही स्थिति है जहां कुछ प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में कम मानसूनी बारिश दर्ज की गई है। इसके चलते यहां भी धान की बुवाई प्रभावित हुई है।

डायरेक्टोरेट ऑफ एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन से मिली जानकारी के अनुसार, देश में अमन धान की खेती के तहत कुल 5,620,000 हेक्टेयर भूमि में से इस साल सिर्फ 1,400,000 हेक्टेयर या फिर 25 प्रतिशत से कुछ ही अधिक जमीन पर खेती की गई है।

निदेशालय के फील्ड सर्विस विंग के निदेशक हबीबुर रहमान चौधरी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इस साल रोपण में देरी हुई है। लेकिन अभी भी समय है। बारिश के पानी की कमी के कारण किसानों को सिंचाई के वैकल्पिक साधनों का उपयोग करना पड़ रहा है। इसकी वजह से उनकी उत्पादन लागत बढ़ रही है.” उन्होंने आगे कहा, “लेकिन हमें उम्मीद है कि इस महीने स्थिति में सुधार हो जाएगा।”

भारत में गंगा के मैदानी इलाकों में भी ऐसी ही स्थिति है जहां कुछ प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में कम मानसूनी बारिश दर्ज की गई है। इसके चलते यहां भी धान की बुवाई प्रभावित हुई है।

हमारी नई सीरीज – धान का दर्द – के हिस्से के रूप में गाँव कनेक्शन के पत्रकारों ने इस साल धान की फसल पर कम मानसूनी बारिश के प्रभाव का दस्तावेजीकरण करने के लिए प्रमुख धान उत्पादक राज्यों का दौरा किया। उनकी रिपोर्ट चिंताजनक हैं। धान की खेती से जुड़े किसान कथित तौर पर फसल के बड़े नुकसान को देख रहे हैं।

बांग्लादेश की यह स्टोरी धान का दर्द सीरीज में तीसरी है। पहली खबर उत्तर प्रदेश की थी, जहां इस मानसून सीजन में अब तक माइनस 40 फीसदी बारिश दर्ज की गई है। दूसरी ग्राउंड रिपोर्ट पश्चिम बंगाल के बर्धमान क्षेत्र की थी, जिसे ‘बंगाल का चावल का कटोरा’ कहा जाता है।

एक के बाद एक आती आपदाएं

जून-जुलाई बांग्लादेश में अमन की खेती का मौसम है। किसान अपने साल भर के धान की पूर्ति अमन की फसल से करते हैं। कई परिवार अमन धान की फसल से कर्ज चुकाते हैं या घर की अन्य जरूरतों को पूरा करते हैं।

इस साल मई से बांग्लादेश में लाखों किसान भारी बाढ़ के कारण पीड़ित रहे हैं, और अब उनके पास धान बोने और अमन की फसल की खेती करने के लिए पानी नहीं है। उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि इस साल धान की फसल के न होने के क्या नतीजे सामने आ सकते हैं।

तटीय जिला पटुआखली कृषि विस्तार विभाग के उप निदेशक एके एम मोहिउद्दीन ने गांव कनेक्शन को बताया, “अपर्याप्त बारिश के कारण कई उपाजिलों में अमन की खेती में देरी हो रही है। इस सीजन में केवल आधी लक्षित भूमि को पर अमन की खेती की जाने की उम्मीद है। लेकिन जैसे-जैसे खेत सूख रहे हैं, फसल प्रभावित हो रही है।”

जिले में पिछले साल जुलाई में सबसे कम 778 मिलीमीटर (मिमी) बारिश दर्ज की गई थी। मोहिउद्दीन ने बताया कि इस साल जुलाई में सिर्फ 181 मिमी बारिश हुई है।

राजशाही (मध्य-पश्चिम बांग्लादेश) में मौसम विज्ञान कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, इस क्षेत्र में पिछले साल जून से जुलाई (354 मिमी बारिश) के बीच एक महीने में 25 दिन बारिश हुई थी। इस साल सिर्फ आठ दिनों (39.2 मिमी वर्षा) के लिए बारिश हुई है, जो पिछले साल की तुलना में 89 प्रतिशत की कमी दर्शाती है। साथ ही पिछले एक महीने में राजशाही में औसत तापमान 36 डिग्री सेल्सियस रहा है।

दक्षिण-पश्चिम बांग्लादेश में किसानों का संघर्ष

बांग्लादेश के चक्रवात-प्रवण दक्षिण-पश्चिमी तट पर किसानों को कड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। क्षेत्र में कृषि पूरी तरह से बारिश पर निर्भर है। नदी में खारे पानी के कारण खेत की सिंचाई संभव नहीं है। 2009 में चक्रवात आइला के बाद, इस इलाके की खेती की काफी जमीन सालों तक पानी में डूबी रही थी।

खुलना जिले के डाकोप उपाजिला के नालियां गांव के 55 साल के किसान मोंटू गाज़ी ने गांव कनेक्शन को बताया, आइला के बाद लगभग पांच सालों तक हमारी खेती की जमीन खारे पानी में डूबी रही। यहां कोई फसल नहीं उगाई जा सकी थी। एक तटबंध के निर्माण के बाद ही हमने फिर से खेती करना शुरू किया।”

गाजी ने कहा कि चूंकि इलाके में नदी का पानी खारा है, इसलिए बारिश का पानी ही किसानों की एकमात्र उम्मीद है। गाजी ने शिकायती लहजे में बताया, “हमने वर्षा जल का संचयन किया और उससे अपनी भूमि की सिंचाई की। लेकिन इस साल बारिश नहीं हुई और इसलिए हम खेती शुरू नहीं कर सके।”

सत्तर वर्षीय अरशद अली भी इस क्षेत्र में खेती से जुड़े हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि पिछले साल उनके खेत में धान की बंपर फसल हुई थी, लेकिन इस साल भीषण गर्मी में उनके धान के पौधे जल गए। वह खेती शुरू नहीं कर सके हैं।

खुलना जिले के चक्रवात प्रभावित कोयरा उपाजिला में खारे पानी और बार-बार आने वाले चक्रवातों के कारण किसान कई सालों तक धान की खेती नहीं कर सके। लेकिन पिछले साल तटबंधों के निर्माण की वजह से उनके खेतों में खारा पानी आना बंद हो गया और किसानों ने फिर धान लगाने का फैसला किया।

कोयरा उपाजिला के कटमार चार गाँव के अनवर हुसैन ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमने 25 साल बाद धान की बुवाई की और हमें अच्छी पैदावार मिली।” लेकिन, इस साल खेत खाली हैं।

श्यामनगर, अससुनी, पाइकगाचा और ताला बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिमी तट पर चक्रवात प्रवण क्षेत्र हैं। इन इलाकों में धान की खेती से जुड़े किसान बहुत चिंतित हैं। वे खेती के लिए वर्षा जल पर निर्भर हैं क्योंकि यहां की नदी का पानी खारा है।

कोयरा उपाजिला के हजतखली गांव के 52 वर्षीय अब्दुल वाहिद मोरल ने शिकायत करते हुए कहा, “पिछले साल हमें अच्छी पैदावार मिली थी। लेकिन इस साल सीजन लगभग खत्म हो चुका है और मैं खेती शुरू नहीं कर पाया हूं। यहां की नदी का पानी खारा है। नतीजन हमें सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पाता। “

बारिश की कमी ने खेतिहर मजदूरों की आजीविका को भी प्रभावित किया है। वे जीविकोपार्जन के लिए धान की खेती पर निर्भर हैं और अब तक बेरोजगार हैं।

‘असाधारण मौसम पैटर्न का सामना करता बांग्लादेश ‘

बांग्लादेश मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, पिछले 30 सालों में जुलाई के महीने में औसत वर्षा को ध्यान में रखते हुए, इस जुलाई में 57.6 प्रतिशत कम वर्षा हुई है। इस साल जुलाई में औसत वर्षा 211 मिमी थी, जो 1981 के बाद सबसे कम है।

बांग्लादेश मौसम विज्ञान विभाग के अब्दुल मन्नान ने गांव कनेक्शन को बताया कि मानसूनी बारिश में कमी चिंताजनक है। उन्होंने कहा, “बेमौसम बारिश हो रही है और इसके पीछे ग्लोबल वार्मिंग मुख्य कारण है। जून में उत्तर पूर्वी क्षेत्र बारिश में भीग गया था। लेकिन अगले महीने सूखे की स्थिति थी।”

मौसम विज्ञानी ने कहा कि हीटवेव की स्थिति इतने लंबे समय तक बनी रहना भी असामान्य है। उनके मुताबिक पिछले 41 सालों में इस साल जुलाई के महीने में देश में सबसे कम बारिश हुई है।

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