मधुबनी/सीतामढ़ी (बिहार)। “साहब लोग नाव से आए थे, बिस्किट और माचिस देकर बोले कि अभी खाने का सामान लेकर आ रहे हैं, तीन दिन बीत गए, पानी अब कम हो गया, लेकिन कोई आया नहीं,” सीतामढ़ी के उमेश मल्ली बताते हैं।
उमेश ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “बाहर से कुछ लोग आये थे, उन्हीं की वजह से हम बच पाए, तब से अब तक स्कूल में ही रह रहे हैं। घर तो बचा नहीं रहने लायक।”
उत्तर बिहार के 12 जिले बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं। बीती 24 जुलाई तक 81,57,700 लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। सरकार हर तरह की मदद की बात भले ही कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत और सरकारी आंकड़े खुद सरकार के दावे पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
आपदा प्रबंधन विभाग बिहार प्रतिदिन एक रिपोर्ट जारी करता है जिसमें बाढ़ प्रभावितों की पूरी जानकारी दी जाती है। हर दिन के अनुसार आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो पूरा खेल बड़ी आसानी से समझ आ जायेगा। हालांकि सरकार का कहना है कि उनकी तरफ से पूरी व्यवस्था की गई है।
इक्यासी लाख से ज्यादा प्रभावित लोगों में से 60,33,700 (60 लाख से ज्यादा) आबादी के लिए कोई राहत शिविर केंद्र बनाये ही नहीं गए हैं।
सामुदायिक रसोई की भी संख्या बाढ़ पीड़ितों की अपेक्षा बहुत कम है। बिहार के 12 जिलों की 105 प्रखंडों और 1240 पंचायतों के लोगों के लिए 835 सामुदायिक रसोइयों में खाने की व्यवस्था की गई है। इस तरह एक रसोई केंद्र पर सात हजार से ज्यादा लोग निर्भर हैं। इससे बड़ी आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार की तरफ से बाढ़ पीड़ितों को कैसे और कितनी राहत दी जा रही है।
बिहार बाढ़: कोई पानी में गृहस्थी का सामान तलाश रहा तो कोई मां का संदूक, सब बह गया
बिहार के मधुबनी और सीतामढ़ी में बाढ़ का कहर सबसे ज्यादा है। इन दो जिलों में अब तक 67 लोगों की मौत हो चुकी है। मधुबनी में (24 जुलाई तक) 13,94,000 जबकि सीतामढ़ी में 17,62,000 लोग बाढ़ की चपेट में हैं, बावजूद इसके मधुबनी में इस समय कोई राहत शिविर केंद्र नहीं है, जबकि सीतामढ़ी में 39 राहत शिविर केंद्रों का संचालन हो रहा है।
आपदा प्रबंधन विभाग बिहार की रिपोर्ट हैरान करने वाली रही है। बीती 16 जुलाई से 17 जुलाई के बीच बाढ़ पीड़ितों की संख्या 26 लाख से बढ़कर 46 लाख हो गई। ऐसे में राहत शिविरों की संख्या बढ़ाने की बजाय 185 से घटाकर 137 कर दी गई।
17 और 18 जुलाई की रिपोर्ट (साभार- बिहार आपदा प्रबंधन विभाग)
इसके बाद 18 जुलाई को जब बाढ़ प्रभावितों की संख्या बढ़कर 55 लाख से ज्यादा हो गई तब एक बार फिर राहत शिविरों की संख्या घटाकर 137 से 130 कर दी गई।
लोग ढूंढ रहे, कहां हैं राहत शिविर केंद्र
कागजों पर भले ही राहत शिविर केंद्र और सामुदायिक रसोइयां चल रही हैं, लेकिन पीड़ितों को इसके बारे में पता ही नहीं है। मतलब एक तो संख्या बहुत कम है, ऊपर से उसके बारे में लोग जानते ही नहीं।
मधुबनी के प्रखंड बिस्फी के गाँव वार्ड नंबर-नौ में रहने वाले मोहम्मद निसार अपने मवेशियों के साथ छत पर रह रहे हैं (23 जुलाई तक)। जब हम उनके पास पहुंचते हैं तो उन्हें लगता है कि कोई सरकारी मुलाजिम आ गया है।
जब हम बताते हैं कि हम पत्रकार हैं तब वे नीचे आते हैं और कहते हैं, “यहां पहुंचने वाले आप लोग पहले व्यक्ति हैं। साल 2017 में भी हमारे यहां बाढ़ आई थी। इस बार भी अंदेशा था, लेकिन किसी ने पहले बताया ही नहीं।”
“हमें सरकार की तरफ से कुछ मिला ही नहीं। लोग बता रहे थे कि राहत शिविर के केंद्र बने हैं, सामुदायिक रसोई में खिचड़ी बंट रही है, लेकिन वो सब कहां है, मुझे तो क्या मेरे आस-पास के किसी भी व्यक्ति को नहीं पता है,” निसार आगे कहते हैं।
बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग की मानें, तो 19 जुलाई तक अकेले मधुबनी में 18 प्रखडों के 13,73,000 लोग बाढ़ से प्रभावित थे, बावजूद इसके जिले में महज चार राहत शिविर केंद्र बनाये गये। राहत शिविरों में केवल 3721 लोगों को ही शरण मिली है, मतलब 13,69,279 लोग किसी तरह रह रहे थे।
इस बारे में जब हमने जब अपर जिलाधिकारी (एडीएम) मधुबनी दुर्गा नंद झा से बात की तो उनका जवाब भी चौंकाने वाला था।
एडीएम कहते हैं, “लोग झूठ बोलते हैं। जिनको सामान मिल जाता है वे लोग भी कहते हैं कि कुछ मिला ही नहीं। हमारी टीम लगातार काम कर रही है इस कारण लोग थके भी हैं।”
एडीएम हमसे यह भी कहते हैं कि आप लोग भी फिल्ड में हैं, अगर आपको कोई ऐसा क्षेत्र दिखे जहां तक लोगों की मदद नहीं पहुंची हो तो बता दीजियेगा। आप लोग पैनी नजर से देखते हैं। इससे आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि प्रशासन बाढ़ पीड़ितों को राहत देने के मामले में कितना गंभीर है।
मधुबनी में 21 जुलाई तक 4 राहत शिविर केंद्र थे, तब बाढ़ प्रभावितों की संख्या 13,73,000 थी। इसके बाद 22 जुलाई को जब बाढ़ पीड़ितों की संख्या बढ़कर 13,94,000 हो गयी तब राहत शिविरों की संख्या शून्य कर दी गई।
मधुबनी के प्रखंड झंझारपुर के गाँव नरुआर में बाढ़ ने सबसे ज्यादा तबाही मचाई। इसी गाँव के रहने वाले राकेश मंडल ‘गाँव कनेक्शन’ से कहते हैं, “सरकार की तरफ से बताया गया था कि बाढ़ की स्थिति बन रही है। फिर भी पहले से कोई उपाय नहीं किया गया। जब बांध से थोड़ा बहुत पानी आ रहा था हम तब से एनडीआरएफ और डीएम को फ़ोन करते रहे। न डीएम की तरफ से कोई जवाब आया और न ही एनडीआरएफ की टीम आई। फिर रात के साढ़े 11 बजे बांध टूट गया”।
राकेश आगे कहते हैं, “हम रात भर छतों पर रहे। मेरी दादी पानी में बह गयीं। हमने देखा था कि वो स्कूल में फंसी थे। सरकार की टीम अगले दिन तीन बजे आई, शुक्र है दादी बच गई, लेकिन बहुत से लोग बह गए।”
हर साल बाढ़, फिर तैयारी उस स्तर की क्यों नहीं
वर्ष 2017 में भी उत्तर बिहार भीषण बाढ़ की चपेट में था। ऐसे में सवाल यह भी है कि हम पहले से ही बेहतर तैयारी क्यों नहीं रखते। इस बारे में बिहार के वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र कहते हैं, “भले बिहार के 12 जिले डूबे हुए हैं, लाखों लोग बेघर हैं, 100 से अधिक लोग मर गये हैं, फिर भी मैं बाढ़ को आपदा कहने में हिचकिचाता हूं। क्योंकि हिमालय से हजारों साल से आ रही इस बाढ़ ने ही उत्तर बिहार की धरती की एक-एक इंच तैयार की है। इसलिए मैं कहता है, यह बाढ़ का मौसम है, तबाही का मौसम नहीं। उत्तर बिहार में बाढ़ हर साल आती है, जिस साल बाढ़ नहीं आती, सूखा पड़ता है।”
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पुष्य मित्र आगे कहते हैं, “पांच मई को ही हर साल की तरह बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग ने सभी बाढ़ प्रभावित जिलों के डीएम को पत्र लिख दिया था कि आगामी बाढ़ के मद्देनजर सभी तैयारी कर लें। इन तैयारियों में, तटबंध को मजबूत करने से लेकर, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की तैनाती, नावों की व्यवस्था, गोताखोरों की बहाली, राहत शिविर, कण्ट्रोल रूम आदि हर छोटी से बड़ी चीज की व्यवस्था करनी थी। बाढ़ की पूर्व चेतावनी और खतरे वाले इलाके को खाली कराने का भी पूर्व निर्देश था। इसके लिए अलग से बजट का प्रावधान भी था।”
“अब जयनगर से सटे इलाके की बात लीजिये। मेरे जैसे संसाधन विहीन व्यक्ति को भी 12 जुलाई की शाम को पता चल गया कि बड़ा संकट आने वाला है। नेपाल के जनकपुर में जो जयनगर से सटा है, बारिश भीषण तबाही मचा रही थी। मगर प्रशासन ने क्या किया? क्या कोई चेतावनी जारी की, क्या खतरे वाले इलाके को खाली कराया?”
“कमला पर बने तटबंध दस जगह से टूट गए। सबको पता है कि कमला का तटबंध कमजोर हैं। मगर क्या मई से जुलाई के बीच कभी तटबंध को मजबूत करने के काम पर विचार हुआ? हालांकि मैं खुद तटबंध विरोधी हूं, मगर जब तक वैकल्पिक व्यवस्था न हो जाये, तटबंध को मजबूत करना ही उपाय है,” पुष्य मित्र आगे कहते हैं।
बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित सीतामढ़ी में अभी भी 203 पंचायतों के 17,60,000 लोग बाढ़ की जद में हैं। इतनी आबादी के लिए अभी 39 राहत शिविर केंद्र ही संचालित हैं। बीती 21 जुलाई को भी इस जिले में इतनी ही आबादी बाढ़ से प्रभावित थी, तब 127 राहत शिविर केंद्र चल रहे थे, तब प्रभावित पंचायतों की संख्या भी 199 ही थी।
बीती 21 जुलाई को बाढ़ प्रभावितों के लिए 216 सामुदायिक रसोई में खाना बन रहा था। तीन बाद जब पीड़ितों की संख्या बढ़ी तो रसोइयों की संख्या बढ़ने की बजाय घटाकर 197 कर दी गयी।
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सीतामढ़ी के परिहार प्रखंड के गाँव लपटहां के रहने वाले उमेश मल्ली कहते हैं, “मेरे यहां 17 जुलाई को पानी भर गया था। मेरे घर भी बह गया। अचानक से पानी घुसा तो समझ नहीं आया कि पहले क्या करें। मैं, पत्नी और माँ को किसी तरह बचा पाया लेकिन मेरे 20 सुअर बह गए। हम स्कूल में रुके हुए हैं। गाँव वालों की मदद से खाना मिल रहा है वो भी एक टाइम। एक दिन साहब लोग आये थे। एक पैकेट बिस्किट और माचिस दे गए। जाते-जाते बोले कि फिर आऊंगा तब खाना भी मिलेगा, लेकिन अभी तक कोई आया ही नहीं।”
सीतामढ़ी जिले के सिंघवाहिनी पंचायत की मुखिया रितू जायसवाल कहती हैं, “सरकार की प्लानिंग ही गलत है। अधिकारी कहते हैं कि खाना उन्हें ही मिलेगा जो स्कूल में रहेंगे। अब बाढ़ से प्रभावित हर लोग स्कूल के पास तो रहते नहीं। सड़कें बह चुकी हैं, गाँव में आने-जाने का कोई रास्ता ही नहीं है तो लोग स्कूल तक कैसे पहुंचेंगे। एक स्कूल में तो बहुत ज्यादा 20 लोग ही रह सकते हैं।”
रितू आगे कहती हैं, “2017 में भी हमारा जिला बाढ़ की चपेट में था। फिर हमने पिछली बार से क्या सीखा। समय रहते कोई तैयारी नहीं की जाती। जो पीड़ित हैं उन तक मदद पहुंचती ही नहीं। बेघरों के लिए एक वार्ड में 8 पॉलीथिन दिया जा रहा है। अफसर कह रहे हैं कि आकर ले जाइये। जब गाँव में चारों ओर पानी है, सड़कें टूटी हैं। पीड़ित जहां है वहां से निकल ही नहीं सकता तो वो सरकारी लाभ लेने कैसे जाएंगे। ऐसी तो हमारी पॉलिसी है।”
इस बारे में जब हमने आपदा प्रबंधन विभाग बिहार के संयुक्त सचिव अमोद कुमार शरण से बात की तो उन्होंने कहा, “हमने समय रहते सभी जिलों को सचेत रहने के लिए बोल दिया था। रही बात बाढ़ पीड़ितों को राहत सुविधाएं देने कि तो उन्हें हर प्रकार की मदद दी जा रही है। जिन क्षेत्रों में बाढ़ का असर कम हो रहा है, राहत शिविर केंद्र वहीं से हटाए जा रहे हैं।”
सरकार की तरफ से बाढ़ पीड़ितों को कब तक मदद दी जाएगी, इस सवाल के जवाब में अमोद कहते हैं, “जब तक बाढ़ पीड़ित रहेंगे, तब तक हमारी तरफ से उन्हें मदद दी जाएगी।”
फिर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से राहत शिविर केंद्र क्यों बंद कराये जा रहे, क्यों सामूहिक रसोइयों की संख्या घटाई जा रही, ये तो विभाग को ही पता होगा।