स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। सरकार की मंशा है कि प्रदेश में शिक्षा के स्तर में सुधार हो, लेकिन अधिकारी सरकार की इस मंशा पर पानी फेरने में लगे हैं। भारतीय ग्रामीण विद्यालय कुनौरा में वर्ष 2010 से प्रधानाध्यापक का पद रिक्त है। इस पद को भरने के लिए प्रबन्धक द्वारा लगातार बीएसए को लिखा जाता रहा, बावजूद इसके पिछले सात साल से प्रधानाध्यापक की नियुक्ति नहीं हुई है। वर्तमान समय पर विद्यालय में दो शिक्षक बचे हैं। खाली पदों को प्रोन्नति द्वारा भरने के लिए पहली बार वर्ष 2010 में निवेदन किया गया था, लेकिन साल भर कोई उत्तर नहीं मिला। दोबारा से 30 जूलाई 2011 को पत्र लिखा गया, उसके बाद भी उत्तर नहीं मिला। आखिरकार, मामला पूर्व सीएम अखिलेश यादव तक भी पहुंचा।
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बीकेटी तहसील के अंतर्गत कुनौरा ग्राम में भारतीय ग्रामीण विद्यालय स्थित है। इस विद्यालय में 2010 से प्रधानाध्यापक का पद खाली चल रहा है। अन्ततः बीएसए ने वर्ष 2016 में चयन प्रकिया के लिए विज्ञापन निकालने की अनुमति दी और 31 मई को इस अनुमति के बाद विज्ञापन निकाले गए और विज्ञापनों की प्रतियां बीएसए को भेजी गईं । साक्षात्कार हेतु गठित चयन समिति में बीएसए अपना प्रतिनिधि नामित किया जो नियमानुसार मान्य था। बीएसए से लिखित अनुमति के बाद 9 जूलाई 2016 को नियमानुसार गठित चयन समिति द्वारा अभ्यर्थियों का साक्षात्कार हुआ। इस वक्त तक बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा कोयी ऐतराज नहीं जताया गया व चयन प्रक्रिया का कार्य पूर्ण कर लिया गया ।
चयन समिति द्वारा चयन के बाद भी प्रधानाध्यापक की नियुक्ति पर रोक
बताते चलें कि नियुक्ति के लिए चयन समिति का गठन किया गया, जिसमें विद्यालय के प्रबन्धक, प्रबन्धकारिणी समिति के नामित अधिकारी और बीएसए के प्रतिनिधि शामिल थे। तीन सदस्यों को लेकर समिति बैठक हुई थी। जिसके आधार पर चयन समिति ने अभ्यर्थियों का साक्षात्कार किया। साक्षात्कार पूरे हो जाने के बाद उनके प्रतिनिधि अभ्यर्थियों कि सूची पर हस्ताक्षर कर दिया। चयनित अभ्यार्थियों की सूची एवं कार्यवाही अनुमोदन के लिए बेसिक शिक्षा अधिकारी को भेजा गया। उसके बाद बीएसस ने अभ्यार्थियों की उपस्थिति का पूरा विवरण मांगा जिससे प्रबन्धक ने उपलब्ध करा दिया। बीएसए ने अनावश्यक रूप से टीटी का अनिर्वायता के आधार पर अभ्यर्थियों को रिजेक्ट करने का आरोप लगा दिया। जब कि टीटी का विषय किसी अभ्यर्थी पर लागू नहीं होता था। ये अनावश्यक तरीके से किया गया जब सारी प्रक्रिया हो जाने के बाद टीटी का विषय बताया ।
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इस चयन प्रक्रिया मे तीन अभ्यर्थियों को वरियता सूची में शामिल किया गया था, जिसका अनुमोदन होना था। लम्बे पत्राचार के बाद बीएससे द्यारा मांगी गई प्रत्येक जानकारी उपलब्ध कराने के बाद भी उन्होने ने सम्पूर्ण चयन प्रक्रिया की निरस्त करने का आदेश दे दिया। ऐसा करने का उन्हें नियमानुसार अधिकार नहीं है। उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा संहिता के अनुसार अधिकार नहीं है। यादि वरियता सूची से सन्तुष्ट नहीं थे तो उस पर ऐतराज जता सकते थे, लेकिन उन्होंने पहले कोई आपत्ति नहीं जताई। उनके अवैधानिक आदेशों का अन्त यहीं नहीं हुआ ।
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बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठीने प्रधानाध्यापक कि चयनप्रक्रिया में मनमानी तो की ही इसी बीच विद्यालय में दो सहायक अध्यायपक सेवा निवृत्त हो गए, जिनकी जगह नियुक्तियां करने हेतु विज्ञापन निकालने की अनुमति मांगी गई तो बीएसए ने कहा कि इस वर्ष सभी नियुक्तियां हो चुकी है शिक्षा विभाग द्वारा आदेश मिलने पर अवगत कराया जाएगा।
बीएसए ने वैधानिक रूप से चयनित प्रधानाध्यापक की नियुक्त नहीं होने दी। साथ ही दो सहायक अध्यापकों कि नियुक्त लिए विज्ञापन निकालने की अनुमति तक नहीं दी है। अब ऐसी परिस्थितयों में जूलाई 2017 में विद्यालय खुलेने पर पढ़ाई कैसे सम्भव होगी, इस पर दिशा निर्देश उनसे मांगा गया, लेकिन उसका कोई उत्तर नहीं मिला है। ये सवाल एक विद्यालय में शिक्षकों कि नियुक्त का नहीं बेसिक शिक्षा की कार्य प्रणाली का है और यहां 200 बच्चे के भविष्य और पूरे प्रदेश में लाखों बच्चों के का है। विद्यालय द्वारा दिए गए पत्र का अभी तक कोई जवाब न हीं मिला है और शायद मिलेगा भी नहीं।
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नियुक्ति में लग रहा समय संदेह के घेरे में
भारतीय ग्रामीण विद्यालय के प्रबन्धक डाक्टर एस बी मिश्रा
सवाल- आप के विद्यालय में प्रधानाध्यापक और सहायक अध्यापकों की नियुक्ति में इतना समय क्यों लग रहा है?
जवाब- मैं यह तो नहीं बता सकता क्या कारण था परन्तु सब जगह इतना समय नहीं लगता। इतना कह सकता हूं मैंने बीएसए को कोई रिश्वत नहीं दी है‘‘
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