स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
मेरठ। मां का दूध शिशु को लिए सर्वोत्तम है। इससे न सिर्फ शिशु को पोषण मिलता है, बल्कि यह कई तरीके से शिशुओं के लिए फायदेमंद है। बावजूद इसके शिशुओं को स्तनपान की जगह दूध की शीशी थमाई जा रही है। मेरठ में 100 में से 85 प्रसुताएं अपने बच्चों को दूध नहीं पिलाती हैं। बच्चों को जन्म के साथ ही डिब्बे वाला या गाय का दूध दिया जा रहा है। फैमिली हेल्थ मिशन और नेशनल हेल्थ मिशन की वर्ष 2016-17 की रिपोर्ट में ये चौकाने वाला खुलासा हुआ है।
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मेरठ में सिर्फ 14.3 फीसदी प्रसुताएं ही बच्चों को अपना दूध पिलाती हैं। प्रदेश में यह आंकड़ा 25 फीसदी है, जबकि स्तनपान को लेकर सरकारी स्तर पर सैंकड़ों जागरुकता अभियान चलाए जाते हैं। अकेले अगस्त माह में भी यह अभियान चलाए गए, लेकिन प्रसुताओं को जागरूक करने में स्वास्थ्य विभाग फेल साबित हो रहा है।
जन्म के एक घंटे के भीतर शिशुओं को स्तनपान कराने में मेरठ पूरी तरह फिसड्डी है। जहां शहरी क्षेत्र की महिलाएं आधुनिकता की चकाचौंध में इससे डरती हैं, तो वहीं ग्रामीण महिलाएं भ्रांतियों की वजह से बच्चों को शुरुआत में दूध नहीं पिलातीं।
स्वास्थ्य पर पड़ता है असर
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश शर्मा बताते हैं, “मां का दूध न मिलने से सीधा असर बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है। उनमें संक्रमण और गंभीर रोगों के मामलों में इजाफा हो रहा है। दूसरी तरफ महिलाओं में भी तनाव बढ़ रहा है।” महिला अस्पताल की एसआईसी डॉ. मंजू मलिक बताती हैं, “बच्चे के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराना बहुत जरूरी होता है।
कुछ महिलाओं को भ्रम होता है कि मां का पहला दूध बच्चे के लिए अच्छा नहीं होता।” वो आगे बताती हैं, “विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यदि प्रसव के एक घंटे बाद, पहले एक घंटे में नवजात को स्तनपान कराया जाए तो 20 फीसदी मौत रोकी जा सकती है। बच्चे के लिए जन्म से लेकर छह माह तक मा का दूध अमृत के सामान होता है।”
स्तनपान के फायदे
=बच्चे का मानसिक विकास होता है।
=स्तन कैंसर जैसी बीमारी से बचा जा सकता है।
=बच्चों को संक्रमण और बीमारी से बचाता है।
= प्रसव के बाद मां का वजन कम करने में मदद करता है।
= शिशु के पाचन तंत्र की समस्या दूर करता है।
=बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
=महिलाओं में मधुमेह डिम्बग्रंथि ओवेरियन कैंसर का खतरा कम करता है।
स्तनपान शिशु के लिए अमृत का काम करता है। प्रसूताओं को जागरूक करने के लिए समय-समय पर जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं, लेकिन उसके बाद भी महिलाएं गंभीर नहीं हैं, सर्वे के नतीजे वास्तव में अचम्भित करने वाले हैं, आगे से और प्रयास किए जाएंगे, ताकि यह आंकड़ा कम हो सके।
राजकुमार चौधरी,मुख्य चिकित्सा अधिकारी