सन्दीप कुमार/स्वयं कम्यूनिटी जर्नलिस्ट
रायबरेली। जिले में हल्दी की खेती कर रहे किसानों के सामने नई मुसीबत खड़ी हो गई है। बारिश कम होने से इन दिनों तना छेदक एवं धब्बा रोग लगने से हल्दी की फसल को काफी नुकसान हो रहा है, जो किसानों की परेशानी का कारण बना हुआ है।
रायबरेली जिलें के महराजगंज ब्लॉक के मौन ग्रामसभा के 53 वर्षीय सुखीराम मौर्य बताते हैं,” हल्दी हमारा पैतृक व्यवसाय है, पिछले वर्ष हमारी फसल कुछ खास अच्छी नहीं हुयी थी, इसलिए इस बार हमने सिर्फ दस बिसवा में हल्दी की फसल लगाई है,लेकिन इस बार भी फसल पर तना छेदक कीड़े का प्रभाव दिख रहा है।”
किसानों को कीटों व रोगों के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए जिला प्रशासन ने ग्रामीण स्तर पर किसानों के लिए जागरूकता कार्यक्रम शुरू कर दिए हैं। इसके अलावा मौसमी सब्जियों के संरक्षण और फसलों में कीटों की रोकथाम के लिए कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से कीट प्रबंधन प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
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फसलों पर रोगों के निवारण के लिए खुशहाली कृषि केन्द्र के कृषि सलाहकार अनूप मिश्रा बताते हैं,” हमारे जिले में हल्दी के लिए उपयुक्त भूमि न होने के कारण बहुत कम किसान हल्दी की फसल करते हैं। इस वर्ष जिले के कुछ क्षेत्रों में हल्दी की फसल बोई गई है। इस समय बारिश में कमी हुई है, इसलिए रोगों व कीटों का प्रभाव बढ़ गया है। किसानों को समय रहते कीट प्रबंधन तकनीकों को अपना लेना चाहिए।”
हल्दी की खेती देश में 1,50,000 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में की जाती है। इस तरह तीन मिलियन टन तक का हल्दी उत्पादन देश में किया जाता है, जिसकी कीमत लगभग 150 करोड़ रुपए है। देश के दक्षिण भागों (तेलंगाना और आंध्र प्रदेश) में इसकी खेती सबसे अधिक की जाती है।
इस समय हल्दी की फसल में तना छेदक, धब्बा रोग और प्रकन्द विगलन जैसे रोग व कीटों का खतरा होता है। खेतों में किसानों को अगर रोग के लक्षण दिखाई देने लगे हैं, तो तुरंत रोग ग्रस्त पौधों को खेतों से अलग कर के नष्ट कर दें।
अनूप मिश्रा ,कृषि सलाहकार, खुशहाली कृषि केन्द्र
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हल्दी की फसल में समय से करें कीट प्रबंधन, संक्रमित पौधों को करें नष्ट
- तना छेदक कीट के नियंत्रण के लिए हल्दी की फसल में कार्बोरिल दो ग्राम प्रति लीटर की मात्रा में पानी में मिलाकर छिड़काव करने से इस कीट से छुटकारा मिलता है।
- धब्बा रोग में बारिश के बाद बढ़ते हुए तापमान के कारण पौधों की पत्तियों में धब्बें बन जाते हैं,जिससे प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया प्रभावित होती है और पौधे नष्ट हो जाते हैं। इसके नियंत्रण हेतु डायथेस एम-45 का 0.25 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए।
- प्रकन्द विगलन रोग अधिकतर तराई क्षेत्रों में होता है। इस रोग में ग्रसित पौधों की पत्तियां सड़ जाती हैं और तने का ऊपरी भाग गल जाता है। इसके नियंत्रण के लिए खेत में जल निकासी का उचित प्रबन्ध करना चाहिए और चेस्टनट कम्पाउंड के तीन प्रतिशत घोल से खेत की मिट्टी को भिगो देना चाहिए।
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