गाजियाबाद। पंरपरागत तरीके से खेती के साथ किसान आधुनिक खेती भी करने लगे हैं, पॉली हाउस में खेती मुनाफे की खेती बन रही है। आधुनिक खेती के माध्यम से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा लगातार नए-नए प्रयोग किए जा रहे है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार नए-नए प्रयोग कर रही है।
जिला उद्यान कर्मचारी एसके शर्मा कहते हैं, “पॉली हाउस को बढ़ावा देने के लिए किसानों को लगातार प्रेरित करने के साथ साथ विभाग द्वारा हर तरह की सरकारी मदद का भरोसा भी दिया जा रहा है।”
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पॉली हाउस के माध्यम से जरबेरा की खेती करने वाले भोजपुर ब्लाक के बयाना गाँव के किसान निखिल दूबे (22 वर्ष) कहते हैं, “जरबेरा का पौधा चार महीने में तैयार हो जाता है। एक एकड़ में 25 हजार पौधे लगाए जाते हैं और ये पौधे तीन साल तक लगातार फूल देते हैं। जरबेरा के फूलों की डिमांड होने से मंडी में चार-पांच रूपए आसानी से मिल जाते हैं।”
निखिल आगे बताते हैं, “जरबेरा के फूलों का उपयोग बुके और सजावट के काम में किया जाता है। जिसकी साल भर डिमांड रहती है। जरबेरा की खेती से महीने में एक लाख तक का मुनाफा हो जाता है।’
पॉली हाउस तकनीक का उपयोग संरक्षित खेती के तहत किया जा रहा है। इस तकनीक से जलवायु को नियंत्रित कर दूसरे मौसम में भी खेती की जा सकती है। ड्रिप पद्धति से सिंचाई कर तापमान व आद्र्रता को नियंत्रित किया जाता है। इससे कृत्रिम खेती की जा सकती है, इस तरह जब चाहें तब मनपसंद फसल पैदा कर सकते हैं।
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ग्रीन हाउस बहुत अधिक गर्मी या सर्दी से फसलों की रक्षा करते हैं, धूल और बर्फ के तूफानों से पौधों की ढाल बनते हैं और कीटों को बाहर रखने में मदद करते हैं। प्रकाश और तापमान नियंत्रण की वजह से ग्रीनहाउस कृषि के अयोग्य भूमि को कृषि योग्य भूमि में बदल देता है जिससे औसत पर्यावरणों में खाद्य उत्पादन की हालत में सुधार होता है।
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मुरादपुर गाँव के किसान योगेन्द्र पाल पॉली हाउस में खीरे की खेती करते हैं। वो बताते हैं, “यह सब जिले के कृषि विभाग के सही मार्गदर्शन के कारण सम्भव हो सका है। इस पूरी प्रक्रिया में जो भी लागत आती है उस पर 50 प्रतिशत तक अनुदान देती हैं।
आगे बताते हैं, “जो भी किसान इस प्रक्रिया से कृषि करना चाहता है उसे आवेदन पत्र भरकर जिला उद्यान अधिकारी कार्यालय में जमा कराना होता है। और उसके बाद की पूरी प्रक्रिया विभाग की समिति के द्वारा की जाएगी।”
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