लखनऊ। एक तरफ जहां मुस्लिम महिलाओं का शिक्षा का स्तर कम है, दूसरी ओर तीन तलाक को लेकर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में बहुत कम जागरूकता है। ऐसे में शरीयत की जानकारी नहीं होने के कारण वें तलाक, हलाला और बहुविवाह जैसी प्रथा का विरोध नहीं कर पाती। यही कारण है कि वो अपने शौहर की मनमानी को इस डर से सह लेती हैं, क्योंकि उन्हें हमेशा ये डर रहता है कि कहीं पति उन्हें तलाक न दे दे।
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ग्रामीण मुस्लिम महिलाओं से जब बात की तो यह पता चला कि शरीयत की जानकारी गाँवों में बहुत सी महिलाओं को नहीं है। वे औरतें यहीं मानती हैं, अगर तीन बार शौहर ने तलाक बोल दिया तो तलाक हो जाता है। पच्छेपुरवा गाँव की रहने वाली शमीना खान (43 वर्ष) बताती हैं, “मेरी बहन के शौहर ने उसे इसलिए तलाक दे दिया क्योंकि वो खाना अच्छा नहीं बनाती थी। शादी के कई साल हो गए, उसको बेटा नहीं हुआ। इस बात पर आए दिन लड़ाई झगड़ा करते रहते। एक दिन गुस्से में आकर तलाक दे दिया और मेरी बहन को मायके भेज दिया। हम महिलाओं की जिन्दगी गुलामी भरी होती है। हम खुलकर विरोध भी नहीं सकते। माँ-बाप ने स्कूल भेजा होता तो अपने पैरों पर खड़े होते और न्याय के लिए मांग करते। शरीयत में क्या लिखा है, इसकी जानकारी हम लोगों को नहीं है।”
जिला मुख्यालय से सात किमी. दूर नक्खास की रहने वाली एक पीड़िता बताती हैं, “मेरे पति ने मुझे गुस्से में आकर तलाक दे दिया। जब काजी साहब के पास गए कि ये तलाक हुआ कि नहीं हुआ वो बोले “अगर बोल दिया तो तलाक हो गया, अब तुम तभी एक साथ रह सकते हो, जब दोबारा निकाह करो, हलाला करवाओ।” तलाक जैसी बुराईयां औरतों के लिए बहुत बुरी है।” इधर कुरान में साफ-साफ लिखा है कि किस परिस्थिति में महिला को तलाक दे सकते हैं। तीन बार एक साथ तलाक कहने पर तलाक नहीं मना जाएगा। तलाक देने पर औरत और आदमी दोनों के पक्षों का होना जरुरी है। दोनों गवाहों को सामने होना चाहिए और पूरे होशोहवास में दिया गया हो।
तीन तलाक का सबसे शर्मनाक पहलू- हलाला के नाम पर महिलाओं का शारीरिक शोषण
दूसरी ओर कानपुर की रहने वाली फरजाना बेगम (40 वर्ष) बताती हैं, “पढ़ाई में बहुत अच्छी थी, कॉलेज में प्रेसीडेन्ट थी और अपने घर की सबसे पढ़ी लिखी मैं थी। शादी हुई एक साल तो सब ठीक रहा। उसके बाद दहेज की मांग करने लगे और एक दिन शराब पीकर मुझे मारने लगे और तलाक दे दिया। रात में घर से बाहर निकाल दिया। रात में एक पड़ोसी के घर रुकी। सुबह अपने घर गई और अब मैं अपने भाईयों के साथ रहती हूं। मेरी जिन्दगी तो कट गई लेकिन उन महिलाओं के बारे में सोचती हूं जो बेरोजगार हैं और उनके पति ने तलाक दे दिया।’
गर्भवती महिला को तलाक देना भी गैर शरई
ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की जारी किताब “मजमुए कवानीने इस्लामी” पाक कुरान शरीफ में बताया गया है कि तलाक तीन तुहर तीन मासिक धर्म की निर्धारित अवधि के पश्चात पत्नी पाक हो। तब हर एक महीने में अलग-अलग तीन बार तलाक शोहर कहे। इस बीच पत्नी को अपने शौहर के साथ घर नहीं छोड़ना चाहिए और शौहर भी अपने घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। यहां तक की गर्भवती महिला को तलाक देना गैर शरई है। मोबाइल, इंटरनेट, ई-मेल, टेलीफोन, एसएमएस, फैक्स, व्हाट्स ऐप के जरिए दिए गए तलाक को नामंजूर कर दिया गया है।
बाई पोस्ट भेजा तलाकनामा
अलीगढ़ की रहने वाली प्रो. शैरिन मेशूर बताती हैं, “मेरे पति ने जब मुझे तलाक दिया तब मैं गर्भवती थी। दहेज के लालच में आकर बाई पोस्ट तलाकनामा भेजा था। रोज लड़ाई करते और कहते कि आपने मां बाप से कहो कि वो अपनी जायदाद मेरे नाम कर दे। पर हमने ऐसा नहीं किया। इसलिए तलाक दे दिया गया। जो हमने सहा है वो कोई और न सहे। तीन तलाक जैसे मामले मैं सरकार ही कुछ कर सकती है। हम सब लोगों ने इसलिए वोट दिया है।
दारुल कज़ा में होनी चाहिए महिलाओं की भागीदारी
मुस्लिम समाज महिलाओं की अपनी कोई मर्जी नहीं होती है। यहां तक दारुल कज़ा में जितने भी मामले तलाक के जाते हैं, वहां पर सिर्फ आदमी की बात सुनी जाती है। औरतों की बात कोई सुनता ही नहीं है। दारुल कज़ा में औरतों की बात सुनने के लिए महिला काज़ी, अलिया या मुफ्ती होनी चाहिए।
किसी मुस्लिम महिला की जिन्दगी इसलिए नहीं बर्बाद की जा सकती है कि उसके शौहर ने उसे तीन बार तलाक कह दिया हो। तलाक के नाम पर महिलाओं के साथ बहुत हद तक शोषण हो रहा है। यहीं नहीं मुस्लिम महिला को तलाक देने के बाद उसे कोई खर्च नहीं दिया जाता है। वो महिला अपनी जिन्दगी कैसे गुजारेगी, इसके लिए कोई नियम नहीं बना है।
– शाइस्ता अम्बर, राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष, ऑल इंण्डिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड