स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
गाजियाबाद। जिले के सदर तहसील के 12 गाँव के करीब 400 किसान पिछले 55 वर्षों से अपनी ही जमीन के मुआवजे के लिए भटक रहे हैं। इस दौरान कितनी सरकारें आईं और गईं, लेकिन इनकी समस्या जस की तस बनी हुई है। वर्ष 1962 से मुकदमा लड़ रहे इन किसानों के प्रति फैसला पक्ष में आने के बावजूद भी इन्हें मुआवजा नहीं दिया गया है।
केंद्र और प्रदेश सरकार के लगातार किसानों की बेहतरी के लिए किए जा रहे घोषणाओं, दावे के बाद भी किसानों की दशा-दिशा नहीं सुधर रही। गाँव के लोगों के पास न तो जमीन है और न मुआवजे की रकम मिली है, ऐसे में ये किसान तंगी का जीवन जीने को मजबूर हैं।
इस पूरे मामले पर इन किसानों की लड़ाई लड़ रहें भारतीय किसान यूनियन के जिला अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया, “यह कोई एक दो लोगों का मामला नहीं है, रईसपुर, बम्हेटा, डुढडा, रजापुर सहित 12 गाँव के 400 से ज्यादा किसानों का मामला है जो कि लम्बे समय से पेंडि़ग है। इससे 400 किसानों के परिवार तंगी में जीवन जीने को मजबूर हैं और बच्चों की पढ़ाई बंद है, लड़कियों की शादियां समय से नहीं हो पा रही है, अपना इलाज तक नहीं करा पा रहे हैं।”
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इनमें से ही एक किसान सौरभ ठाकुर (30 वर्ष) बताते हैं, “अब तो इन्हें कोई उधार भी देने को तैयार नहीं है। लाखों रूपये मुकदमा पर खर्च करने के बाद किसान निराश है और अब आर-पार की लड़ाई की बात कर रहे हैं।” वहीं, भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष राजवी सिंह बताते हैं, “जब तक इन किसानों का मुआवजा नहीं मिल जाता हम इनकी लड़ाई लड़ते रहेंगे।
भाकियू के जिलाध्यक्ष बिजेंद्र सिंह का कहना है, “धारा 28-ए के तहत इन किसानों को मुआवजा मिलना है, जिसमें लगातार अधिकारियों द्वारा तरीख पर तारीख दी जा रही है। इस बार जिलाधिकारी ने 30 अक्टूबर की तारीख तय की है। अब यह देखना है कि इस बार की तारीख पर किसानों की लंबे समय से की जा रही मांग पूरी होती है या इन्हें फिर से नई तारीख दी जाएगी।” पिछले दिनों जब किसानों ने कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया तो एडीएम प्रशासन के आश्वासन के बाद अपना आंदोलन बंद किया था। जीडीए व यूपीएसआईडीसी को मुआवजा देना है।
किसान योगेश मांगेराम बताते हैं, “अपनी जमीनें देने के बाद आज के समय में किसान मजदूरी करने को मजबूर हैं। मजदूरी करके किसी तरह से दो जून की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया है। लोगों का पेट भरने वाले किसान आज खुद भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं।”
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किसानों की जायज मांग है, प्रशासन जल्द ही मामले पर सुनवाई करके इस मामले पर ठोस कार्रवाई करेगा और 30 अक्टूबर तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
ज्ञानेंद्र सिंह, एडीएम प्रशासन
दूसरी ओर, रईसपुर गाँव की ऐसी ही एक महिला किसान चंदा (75 वर्ष) का कहना है, “हमारे घर की बहू-बेटियां कभी घरों से नहीं निकलती थी, लेकिन आज के समय में हम दर दर भटकने को मजबूर हैँ। सभी हमें आश्वासन देते हैं लेकिन हमारी मांगें नहीं मानी जा रही है। इस पूरे मामले पर मंडलायुक्त सहित जिलाधिकारी को कई बार ज्ञापन दिया गया, उसके बाद भी कोई कार्रवाई अब तक नही की गई है।” इस पूरे मामले पर एडीएम प्रशासन ज्ञानेंद्र सिंह कहते हैं, “किसानों की जायज मांग है, प्रशासन जल्द ही मामले पर सुनवाई करके इस मामले पर ठोस कार्रवाई करेगा और 30 अक्टूबर तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।”