स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के अति पिछड़े जिलों में महिलाओं के सशक्तीकरण को लेकर काम कर रही महिला समाख्या की हजारों महिलाएं माहवारी विषय पर गाँव -गाँव जाकर समूह में किशोरियों और महिलाओं से खुलकर बात कर रही हैं और उनके मिथक दूर करने की कोशिश कर रही हैं।
गोरखपुर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर भटहट ब्लॉक के ताज पिपरा गाँव की रहने वाली जानकी देवी (40 वर्ष) का कहना है, “हमारी मां ने हमे कभी इसके बारे में कुछ नहीं बताया, हम भी पढ़े-लिखे नहीं थे इसलिए हमने भी अपनी बेटियों को कुछ नहीं बताया, मां बेटी इस विषय पर बात करे ये हमारे लिए शर्म की बात थी।”
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आज कैसे ये खुलकर माहवारी पर चर्चा कर रही हैं इस बारे में अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “जबसे हमने महिलाओं की बैठकों में जाना शुरू किया और हमें ये जानकारी हुई कि माहवारी के दिनों में साफ सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है नहीं तो तमाम तरह की बीमारी हो जाएगी, तबसे हमने तो ध्यान रखा ही साथ ही आसपास के लोगों को भी इसके बारे में जानकारी देते हैं।” जानकी देवी महिला समाख्या की बैठक में खुद तो माहवारी को लेकर जागरूक हुई ही साथ ही अपने आसपास के लोगों को भी सलाह देने लगी।
उत्तर प्रदेश के 16 जिलों में महिला समाख्या मुख्य रूप से शिक्षा, पंचायत, कानून, स्वास्थ्य इन चार विषयों पर हजारों महिलाओं को न सिर्फ इन महत्वपूर्ण विषयों पर प्रशिक्षित किया गया बल्कि उन्हें अपने आसपास के लोगों को जागरूक करने के लिए भी प्रेरित किया गया। हजारों की संख्या में ये महिलाएं आपस में बैठक करती हैं स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर खुलकर चर्चा करती हैं।
मऊ जिले के कोपागंज ब्लॉक की सहयोगिनी के पद पर काम कर रही मीरा देवी (30 वर्ष) गाँव में काम करने को लेकर अपना अनुभव साझा करती हैं, “पहले जब बैठक में माहवारी पर बात करते थे तो आस पास की महिलाएं इसे बेशर्मी कहती थी,पर धीरे-धीरे जब इनसे हमारी दोस्ती हो गयी और इन्हें ये समझ में आने लगा कि माहवारी के दिनों में साफ सफाई न रखने से कितनी सारी बीमारियां हो रही हैं तो ये खुद खुलकर बात करने लगीं।”
“पिछड़ा क्षेत्र होने की वजह से यहां की महिलाएं शिक्षित नहीं थी, उन्हें पता ही नहीं था कि माहवारी के दिनों में किन बातों का ध्यान रखा जाए जिसकी वजह से इन्हें इन्फेक्शन, सफेद पानी, खुजली जैसी कई तरह की बीमारियां हो रही थीं, जब इनके मिथकों को हमने दूर किया तबसे यहां की हजारों महिलाएं साफ धूप में सूखे हुए कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, अपनी बेटियों को भी साफ़ सफाई से रहने की सलाह देती हैं।” ये कहना है मऊ जिले की महिला समाख्या की जिला समन्यवक कनक प्रभा का।
कई जिलों में हजारों महिलाएं माहवारी पर चर्चा भले ही कर रही हों पर ये बहुत बड़ा परिवर्तन हम नहीं कह सकते क्योंकि देश की 35 करोड़ महिलाओं में अभी 70 प्रतिशत महिलाओं को माहवारी के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है।
कहकशा परवीन, राज्य सन्दर्भ व्यक्ति, महिला समाख्या, लखनऊ
जब इन महिलाओं से माहवारी जैसे विषय पर बात करना शुरू किया था उस समय गाँव की महिलाएं ही इन्हें बुरा भला कहती थी। एक समय था जब महिलायें अपनी बेटियों को किशोरी बैठक में नहीं भेजती थी उन्हें लगता था हमारी बेटी बिगड़ जाएगी।
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बहराइच जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में शिवपुर ब्लॉक की रहने वाली करीमन (50 वर्ष) बताती हैं, “घर में बहुत गरीबी थी पहनने के लिए कपड़े नहीं होते थे सेनेटरी पैड के बारे में तो सुना ही नहीं था जो जैसा कपड़ा मिल गया वही इस्तेमाल कर लेते थे,माहवारी के दिनों में तमाम बंदिशें लगा दी जाती थीं,अचार नहीं छूना, मस्जिद नहीं जाना, फूले पौधे को नहीं छूना, नहाना भी नहीं होता था, साफ -सफाई का ध्यान न रखने की वजह से अक्सर बीमार रहते थे।”
गोरखपुर में महिलाएं और किशोरियां पहले खुले में शौच जाते समय पानी लेकर नहीं जाती थी आज ये महिलाएं पानी लेकर जाती हैं जिससे ये बीमार न पड़े।महिला समाख्या लखनऊ की राज्य सन्दर्भ व्यक्ति कहकशा परवीन का कहना है, “हमारा ये प्रयास लगातार जारी रहेगा ज्यादा से ज्यादा महिलायें माहवारी जैसे महत्वपूर्ण विषय पर बात करें, 28 मई को कई जिले में कार्यक्रम करके सामूहिक तौर पर माहवारी दिवस मनाया जायेगा।”
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