स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
नागल (सहारनपुर)। सुमित्रा देवी ने आज उम्र के 70 वर्ष भले ही पूरे कर लिए हों पर दूसरों की मदद को लेकर इनके जज्बे में कोई कमी नहीं आयी है। इनके लगन और परिश्रम का ही परिणाम है कि साल 2005 में इन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था और अपने क्षेत्र में यह किसी परिचय की मोहताज नहीं।
शायद यही कारण है कि सहारनपुर जिले के नागल ब्लॉक स्थित डिगोली गाँव की रहने वाली सुमित्रा देवी से वहां की स्थानीय पुलिस भी मदद लेती है। हालांकि पारिवारिक जीवन के उतार चढ़ाव के कारण सुमित्रा की जिंदगी इतनी आसान भी नहीं थी। सुमित्रा कहती हैं कि “शादी के कई साल तक पति की खूब मार खाई है। बचपन में ही पिता गुजर गए और माँ मजदूरी करती थी, ऐसे में 15 वर्ष की उम्र में ही शादी कर दी गयी। ससुराल वालों को देने के लिए कुछ था नहीं, इसलिए ससुराल में हमारी ज्यादा कद्र कभी नहीं रही। रोज ताने सुनने पड़ते कि कुछ लेकर नहीं आयी हो, मार भी इसी वजह से खानी पड़ती थी।”
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उम्र की इस दहलीज पर पहुंचने के बावजूद सुमित्रा के काम में कहीं कोई कमी नहीं आयी है, ये आज भी थाने, कचहरी, पंचायत, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग कहीं भी जाना हो बिना झिझक के चली जाती हैं। सुमित्रा कहती हैं, “मैं पढ़ी-लिखी भले ही नहीं हूं पर मैंने वो सारी बातें मीटिंग में जा-जाकर सीख ली हैं, जिसकी हमे जरूरत पड़ती है। अब तो पुलिस वाले भी जो मामले थाने जातें हैं वे पहले हमें भेज देते हैं। पिछले 20 वर्षों में नारी अदालत के माध्यम से कितने मसले सुलझाये इसकी कोई गिनती नहीं हैं।”
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महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए महिला समाख्या कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1989 में शुरू की गयी थी। सबसे पहले वर्ष 1990 में उत्तर प्रदेश के चार जिलों से इसकी शुरुआत की गयी, जिनमें बनारस, बांदा, टिहरी गढ़वाल (जो पहले उत्तर प्रदेश में था) और सहारनपुर जिला थे।
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इनके काम के बाबत सहारनपुर जिला की महिला समाख्या की जिला समन्यवक बबिता वर्मा का बताती हैं, “जब काम की शुरुआत की गई तो हमने ये महसूस किया कि महिलाओं की समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है। नारी अदालत की शुरुआत भी इसी सोच के साथ की गयी थी कि महिलाओं को अपनी बात कहने का एक ठिकाना हो।” वो आगे बताती हैं, “जिले में पांच नारी अदालत चल रही हैं, कभी घरेलू हिंसा सहन करने वाली महिलाएं आज हजारों महिलाओं को घरेलू हिंसा से निजात दिला चुकी हैं। पांच ब्लॉक में पांच नारी अदालत में 100 सक्रिय महिलाएं महीने की अलग-अलग तारीख को बैठक करके महिलाओं की समस्याएं सुनती नजर आती हैं।”
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