लखनऊ। फिल्म पान सिंह तोमर का एक डायलाग याद कीजिये, “बीहड़ में तो बागी मिले है, डकैत तो पार्लियामेंट में मिले है”। ऐसी ही कुछ लाइनों के साथ चंबल को लोग आज भी याद करते हैं। करें भी क्यों न आखिर इस चंबल ने हमें इतने स्वतंत्रता सेनानी जो दिए हैं।
चंबल का नाम सुनते ही अक्सर लोगों के जहन में बड़ी बड़ी मुछों वाले डकैतों की तस्वीर उकर आती होगी, लेकिन शायद ही कोई जानता हो कि चंबल का इतिहास खुद में राम प्रसाद बिस्मिल, गेंदा लाल दीक्षित, भारतवीर मुकंदीलाल जैसे ना जाने कितने ही क्रांतिकारियों की कहानी कहता है।
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आने वाली 25 मई को क्रांतिकारी शाह आलम और उनके साथी चंबल के इतिहास को लोगों के सामने ला रहे हैं। अयोध्या के रहने वाले और जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी, दिल्ली के रिसर्चर रहे शाह आलाम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और ग्वालियर राज्य में पड़ने वाले चंबल क्षेत्र की यात्रा भी कर चुके हैं।
शाह आलम बताते हैं कि ऐतिहासिक विद्रोह के 160 साल पूरे होने पर हमारी टीम चंबल के पचनदा (पांच नदियों के संगम) के तट पर जनसंसद का आयोजन करने जा रही है। इसमें चंबल के आम जनों की बात तो होगी ही साथ ही उन दस्तावेज़ों और कहानियों पर से भी धूल हटाया जाएगा जो चंबल के बीहड़ की गोद से ही महान क्रांतिकारियों ने रची थी।”पिछले साल इन्हीं दिनों शाह आलम ने चंबल की यात्रा कर औरैया, जालौन, इटावा, भिंड, मुरैना और धौलपुर के ग्रामीण अंचलों में जाकर आम लोगों से वहां का सच जाना। साइकिल यात्रा में लोगों के सुख-दुख को समझने और तीन राज्यों में फैली चम्बल घाटी के बीहड़ों के मौजूदा हालात को जाना।
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चंबल को ‘नर्सरी आफ सोल्जर्स’ यानी सिपाहियों की नर्सरी कहा जाता है। 1857 के आजादी के पहले आंदोलन में जब पूरे देश में क्रांति के केन्द्र ध्वस्त कर दिए गए, हजारों शहादतें हुईं, हजारों महानायकों को कालापानी भेज दिया गया, उस वक्त देश भर के क्रांतिकारी चंबल की आगोश में खिंचे चले आये। इसीलिए यह धरती महान स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों का ट्रेनिंग सेंटर बन पायी।
जननायक गंगा सिंह, रूप सिंह सेंगर, निरंजन सिंह चौहान, जंगली-मंगली बाल्मीकि, पीतम सिंह, बंकट सिंह कुशवाह, चौधरी रामप्रसाद पाठक, गंधर्व सिंह, भैरवी, मुराद अली खां, काशीबाई, शेर अंदाज अली, चिमना जी, तेजाबाई, शेर अली नूरानी, चुन्नी लोधी, ताज खां, शिवप्रसाद, हर प्रसाद, मुक्खा, गेंदालाल दीक्षित, बागी सरदार लक्ष्मणानंद ब्रह्मचारी, राम प्रसाद बिस्मिल, भारतवीर मुकंदीलाल गुप्ता जैसे तमाम करिश्माई योद्धाओं के लिए चंबल की घाटी शरणस्थली बनी रही।
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फौज में सबसे ज्यादा सैनिक चम्बल घाटी से ही थे। शाह आलम कहते हैं, “चंबल के क्रांतिवीरो की याद में क्रांति तीर्थ पांच नदियों के संगम तट (पचनदा) पर जनसंसद चलाया जाएगा, जिसमें जालौन, औरैया, इटावा, भिन्ड, मुरैना, धौलपुर के प्रतिनिधि आएंगे। इसमें चंबल के बीहड़वासियों की जन समस्याओं को लेकर पचनद, जगम्मनपुर, जालौन में चर्चा की जाएगी।”