अनिल वर्मा, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
उन्नाव। कभी लावारिस लाशों को जंगल या गंगा नदी में फेंकने की प्रवृत्ति को बदल कर उनका अंतिम संस्कार करने वाले 44 वर्षीय अखिलेश अवस्थी, अब बेज़ुबान पशुओं की आवाज बन रहे हैं।
पेशे से पत्रकार उन्नाव के रहने वाले अखिलेश अवस्थी अपनी शुरूआत के बारे में बताते हैं, “एक बार मोबाइल में स्लाटर हाउस का वीडियो देखा, जिससे मुझे लगा कि इन बेज़ुबान पशुओं के लिए कुछ करना पड़ेगा। 21 फरवरी को कार्यालय आने पर उन्होंने गौवंश की रक्षा के संकल्प को लेकर काशी तक पदयात्रा करने की घोषणा कर दी।”
कई दिक्कतों के बाद भी मार्च 2016 में पदयात्रा पूरी कर वापस लौटे अखिलेश ने खेतों के किनारे लगाए गए ब्लेड वाले तारों के खिलाफ अभियान चलाने के साथ ही हनुमंत जीव आश्रय की स्थापना की भी तैयारी प्रारंभ कर दी थी। वर्ष 2016 में बने हनुमंत जीव आश्रय पर शहर के घायल मवेशियों के उपचार और देखरेख का काम होता है। अभी तक केंद्र में एक वर्ष के भीतर 50 से अधिक मवेशियों के उपचार का काम किया जा चुका है।
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”किसानों द्वारा खेतों में बाधे गए ब्लेड वाले तार बड़ी संख्या में मवेशियों को घायल करने की वजह बन रहे हैं। पदयात्रा के दौरान हमने कई जनपदों के पशुपालकों और किसानों को खेत में तार न लगाने को कहा और गोवंश की स्थिति के बारे में जानकारी ली, ”अखिलेश अवस्थी ने आगे बताया।
भाई ने दिया हर कदम पर सहारा
पांच भाई और एक बहन में सबसे छोटे अखिलेश अवस्थी को वैसे तो पूरे परिवार का ही प्यार और सहयोग मिलता रहा, लेकिन भाई उमेश चंद्र अवस्थी ने अखिलेश को हर कदम पर सहारा दिया। अलग-अलग व्यवसायों में बार बार हो रहे नुकसान के बावजूद वे उन्हें सहयोग के अलावा प्रेरित भी करते रहे हैं। अखिलेश का कहना है कि भइया के मिले सहयोग से मुझे इस काम को करने में और अधिक हिम्मत आई है।
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