इस समय इन रोगों से भिंडी की फसल को बचाना है जरूरी

भिंडी उत्पादन

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। जायद की भिंडी में इस समय कीट-रोग का प्रकोप बढ़ जाता है। ऐसे में किसान सही प्रबंधन कर फसल को बचा सकते हैं।

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डॉ. रवि प्रकाश मौर्या (कृषि विज्ञान केन्द्र, अंबेडकरनगर) बताते हैं, “भिंडी के प्रमुख रोग पीत शिरा मोजैक और चूर्णिल आसिता, कीट प्ररोह, फल छेदक होते हैं। किसान सही प्रबंधन कर इसे बचा सकते हैं।” उनका कहना है कि पीत शिरा रोग भिंडी की फसल में नुकसान पहुंचाने वाला प्रमुख रोग है, इस रोग के प्रकोप से पत्तियों की शिराएं पीली पड़ने लगती हैं। बाद में पूरी पत्तियां और फल भी पीले रंग के हो जाते हैं। पौधे का विकास रुक जाता है। रोग संवाहक कीट के नियंत्रण के लिए ऑक्सी मिथाइल डेमेटान एक मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से रोग का फैलाव कम होता है।

चूर्णिल आसिता

इस रोग में भिंडी की पुरानी निचली पत्तियों पर सफेद चूर्ण के साथ हल्के पीले धब्बे तेजी से पड़ने लगते हैं। इसका नियंत्रण न करने पर पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो सकती है। इसके नियंत्रण के लिए घुलनशील गंधक दो ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर दो या तीन बार 12-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।

प्ररोह एवं फल छेदक

शुरुआत में इल्ली कोमल तने में छेद करती हैं, जिससे तना सूख जाता है। इसके प्रकोप से फल लगने से पहले ही फूल गिर जाते हैं। फल लगने पर इल्ली छेदकर उनको खाती है जिससे फल मुड़ जाते हैं और खाने योग्य नहीं रहते हैं। फल छेदक प्रभावित फलों और तने को काटकर नष्ट कर देना चाहिए। क्विनॉलफास 25 ई.सी. 1.5 मिली लीटर या इंडोसल्फान 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी की दर से कीट प्रकोप की मात्रा के अनुसार दो-तीन बार छिड़काव करने से जैसिड और फल प्ररोह छेदक कीटों का प्रभावी नियंत्रण होता है।

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