आजाद नगर (कानपुर नगर)। ऐसी माँ को सलाम, जिसने अपने मानसिक और शारीरिक रूप से अक्षम बच्चे के लिए न सिर्फ अपना डॉक्टरी का कैरियर छोड़ा बल्कि ऐसे ऑटिज़्म बच्चों के लिए ‘संकल्प स्कूल’ खोलकर अब तक सैकड़ों बच्चों की देखभाल कर चुकी हैं ।
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“मेरे लिए एक मुश्किल दौर था जब मुझे किसी एक का चुनाव करना था, अपना कैरियर या बेटे का ध्यान रखना। उस समय मेरे बेटे को मेरे साथ की बहुत जरूरत थी, इसलिए मैंने अपना कैरियर छोड़ दिया और अपने बेटे जैसे सैकड़ों बच्चों के लिए एक स्कूल खोल दिया ।” ये कहना है कानपुर शहर के आजाद नगर में रहने वाली डॉ दीप्ती तिवारी (45 वर्ष) का । वर्ष 1995 में एमबीबीएस की डिग्री लेनी वाली डॉ. दीप्ति खुश होकर बताती हैं, “मैं सफल डॉक्टर तो नहीं बन पाई पर एक अध्यापक जरूर बन गई हूं।”
डॉ. दीप्ति की शादी वर्ष 1996 में हुई थी । शादी के दो साल बाद एक बेटे का जन्म हुआ । डॉ. दीप्ति का कहना है, “बेटे के जन्म के कुछ महीने बाद ही हमें ये एहसास हो गया था, मेरे बेटे में कुछ कमी जरूर है। बेटे के इलाज के लिए कानपुर, लखनऊ, दिल्ली, बेंगलुरु जैसे तमाम बड़े शहरों के चक्कर लगाये, पर उसकी स्तिथि में कोई सुधार नहीं हुआ ।”
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थक हारकर डॉ. दीप्ति ने मेडिकल की प्रैक्टिस छोड़कर पूरी तरह से घर पर रहकर ही अपने बेटे की देखरेख करनी शुरू कर दी । डॉ दीप्ति का मन नहीं माना भरत का एक स्कूल में एडमिशन करा दिया । डॉ दीप्ति की मुशिकलें स्कूल में दाखिला के बाद और बढ़ गयी ।
डॉ. दीप्ति का कहना है, “मेरा बेटा सामान्य बेटे से अलग जरूर था, लेकिन वो लोगों के गलत व्यवहार को समझता अच्छे से था। स्कूल के बच्चे उसका मजाक बनाते उसे चिढ़ाते, भरत अपना गुस्सा चिल्लाकर निकालता ।” वो आगे बताती हैं, “तब मुझे लगा शायद सामान्य स्कूल में हमारा बच्चा नहीं पढ़ सकता है, आटिज्म बच्चे जिसमे पढ़ सकें ऐसे स्कूल की तलाश करने लगी इसी दौरान हमारी मुलाकात वर्ष 2006 में डॉ आलोक वाजपेयी से हुई जो प्राणी हीलिंग मैडिटेशन कराते हैं ।” इनसे मिलने के बाद डॉ. दीप्ति ने खुद जनवरी 2007 में ‘संकल्प स्पेशल स्कूल’ खोला जिसमें 10 सालों में अबतक सैकड़ों बच्चे पढ़ चुके हैं और अभी भी भरत जैसे 50 बच्चे पढ़ रहे हैं।
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संकल्प स्कूल में बच्चे सुबह 10 बजे से ढाई बजे तक रहतें हैं। स्कूल में 8 टीचर हैं, एक टीचर आठ बच्चों की देखरेख करती है। शुरुआत में प्रति बच्चे 1200 रुपए जमा करवाए जाते हैं जो माता-पिता फीस देने में सक्षम नहीं है उनसे फीस नहीं ली जाती है जो जितना दे देते हैं, उतना ही ले लिया जाता है। इस स्कूल में पांच साल से 28 साल तक के बच्चे अभी पढ़ रहे हैं ।
डॉ. दीप्ति का कहना है, “हमारी पहली कोशिश रहती है स्कूल में बच्चों को ऐसा माहौल मिले जिससे वो खुश रह सकें, बच्चों पर किसी तरह का कोई जोर दबाव नहीं डाला जाता है, यहाँ पर आये बच्चे कुछ समय बाद आपस में घुल मिल जाते हैं, खेल-खेल में पढ़ना लिखना तो सीखते ही है साथ ही रंगमंच पर नाटक भी करते हैं ।”
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वो अपने 19 वर्षीय बेटे भरत का अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “मेरे बेटे को खिलौने से बहुत प्यार है, हर हफ्ते शुक्रवार को एक खिलौना लेकर हमे आना होता है, भरत पहले मेरे साथ ही ज्यादा वक़्त बिताता था लेकिन अब वो सबके साथ बात करके घुल मिल जाता है, पहले से ज्यादा खुश रहता है ये सब देखकर मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती है।”
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