जुलाई माह तक करें तिल की बुवाई 

Swayam Project

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। इस महीने में किसान तिल की बुवाई कर अच्छा फायदा कमा सकते हैं। तिल की फसल में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है, इसलिए किसान इसकी खेती करना चाहते हैं।

प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी. दूर मानधाता ब्लॉक के ज्यादातर किसान तिल की खेती करते हैं। मानधाता ब्लॉक के खरवई गाँव के किसान अरुण मौर्या (45 वर्ष) बताते हैं, “हम पिछले कई वर्षों से तिल की खेती करते हैं, बाजार में अच्छा दाम मिल जाता है। सबसे अच्छी बात इसमें सिंचाई की भी नहीं करनी पड़ती है।

उत्तर प्रदेश में तिल की खेती बुंदेलखंड और मिर्जापुर, सोनभद्र, प्रतापगढ़, कानपुर, इलाहाबाद, फतेहपुर, आगरा और मैनपुरी में जाती है।

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राजा दिनेश सिंह कृषि विज्ञान केंद्र, कालाकांकर, प्रतापगढ़ के प्रमुख वैज्ञानिक एके श्रीवास्तव बताते हैं, “प्रतापगढ़, इलाहाबाद, सुल्तानपुर जैसे कई जिलों में किसान तिल की खेती करते हैं। जिन किसानों को तिल की खेती करनी है वो जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई तक तिल की बुवाई कर लें। ज्यादा जलभराव वाले खेत में तिल की खेती नहीं करनी चाहिए।”

इस सीजन में किसान उच्च गुणवत्ता के बीजों की बुवाई कर सके इसके लिए कृषि विभाग किसानों को बीज उपलब्ध करा रहा है। कृषि विभाग की तरफ से प्रदेश में 3900 कुंतल बीज का वितरण किया जाएगा।

प्रमुख वैज्ञानिक एके श्रीवास्तव, प्रमुख वैज्ञानिक राजा दिनेश सिंह कृषि विज्ञान केंद्र, कालाकांकर, प्रतापगढ़ ने कहा कि प्रतापगढ़, इलाहाबाद, सुल्तानपुर जैसे कई जिलों में किसान तिल की खेती करते हैं। जिन किसानों को तिल की खेती करनी है वो जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई तक तिल की बुवाई कर लें। ज्यादा जलभराव वाले खेत में तिल की खेती नहीं करनी चाहिए।

तिल की उन्नत व अधिक उपज वाली प्रजातियों आरटी-351, प्रगति, शेखर, टा-78, टा-13, टा-4 व टा-12 के बीज की बुवाई कर सकते हैं। जून के अंतिम सप्ताह में बुवाई की जा सके।

फसल को आमतौर पर छिटक कर बोया जाता है, जिसके फलस्वरुप निराई-गुड़ाई करने में बाधा आती है। फसल से अधिक उपज पाने के लिए कतारों में बोनी करनी चाहिए। छिटकवां विधि से बुवाई करने पर 1.6-3.80 प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। कतारों में बोने के लिए सीड ड्रील का प्रयोग किया जाता है तो बीज दर घटाकर 1-1.20 किग्रा प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है।

गोबर खाद अच्छी उपज के लिए मिलना जरूरी

जमीन की उत्पादकता को बनाए रखने के लिए और अच्छी उपज पाने के लिए भूमि की तैयारी करते समय अंतिम जुताई के पहले चार टन प्रति एकड़ के हिसाब से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद को मिला देना चाहिए। फास्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा आधार खाद के रूप में और नाइट्रोजन की आधी मात्रा के साथ मिलाकर बोने के समय दी जानी चाहिए।

नाइट्रोजन की शेष मात्रा पौधों में फूल निकलने के समय यानी बोने के 30 दिन बाद दी जा सकती है। अच्छी तरह से फसल प्रबंध होने पर तिल की सिंचित अवस्था में 400-480 किग्रा. प्रति एकड़ और असिंचित अवस्था में ऊचित वर्षा होने पर 200-250 किग्रा प्रति एकड़ ऊपज प्राप्त होती हैं।

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