आज भी बुजुर्ग लोग अपने आस-पास घटने वाली प्राकृतिक घटनाओं के जरिये आने वाले मौसम की भविष्यवाणी करते हैं। आधुनिक विज्ञान इसे बॉयोलोजिकल इंडेकेटर कहता है और ये इंडिकेशन काफी हद तक सटीक भी होते हैं।
मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली एक निजी एजेंसी ‘स्काइमेट’ ने मौसम का पूर्वानुमान किया है कि इस साल मानसून किसानों पर मेहरबान रहेगा। हमारे देश में ऐसे कितने इलाके हैं जहाँ तक टीवी, अखबार और इंटरनेट की पहुंच नहीं है और इन इलाकों में आज भी बुजुर्ग लोग अपने आस-पास घटने वाली प्राकृतिक घटनाओं के जरिये आने वाले मौसम की भविष्यवाणी करते हैं। आधुनिक विज्ञान इसे बॉयोलोजिकल इंडेकेटर कहता है और ये इंडिकेशन काफी हद तक सटीक भी होते हैं।
मानसून को लेकर हमारे देश में हमेशा व्याकुलता बनी होती है, और क्यों ना हो? आखिर हमारे देश की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाली कृषि यानि खेती किसानी इस पर बहुत हद तक आधारित जो रहती है। मौसम विज्ञान अनुमान के तौर पर भविष्यवाणियां करता है और इसकी भविष्यवाणी को बेहद गंभीरता से भी लिया जाता है लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ग्रामीण अंचलों में भी बगैर सेटेलाइट और अत्याधुनिक यंत्रों की उपलब्धता के बावजूद बुजुर्ग मौसम को लेकर भविष्यवाणियां करते रहते हैं।
आज भी हिन्दुस्तान के ऐसे कितने सारे इलाके होंगे जहाँ परंपरागत ज्ञान और बुजुर्गों के अपने अनुभव के आधार पर मौसम को लेकर भविष्यवाणियां की जाती हैं और मौसम विज्ञान की भविष्यवाणियों की तरह इन अनुमानों को भी लोग गंभीरता से लेते हैं। बुजुर्गों की ऐसी कई भविष्यवाणियों और उनके तथ्यों को विज्ञान ने भी गंभीरता लिया है और आधुनिक विज्ञान इसे बायोलोजिकल इंडिकेटर्स के रूप में मानता है यानि ऐसी जैविक घटनांए जिन्हें बतौर सूचक माना जा सकता है। इन स्थानीय भविष्यवाणियों को पेड़ पौधों की पैदावार, जीव जंतुओं की हरकतों और कई तरह के अनुमानों के बाद बताया जाता है और अक्सर देखा गया है कि ये भविष्यवाणियां काफी हद तक सही ही निकलती हैं।
हम तकनीकी तौर पर कितने भी विकसित हो जाएं लेकिन स्थानीय ज्ञान और अनुभव को नकारते हुए आगे नहीं बढ़ सकते, और इसका सबसे बढ़िया उदाहरण मौसम के पूर्वानुमान को लेकर स्थानीय ज्ञान से समझा जा सकता है। चलिए आज इस लेख के जरिये कुछ ऐसी ही परंपरागत बातों या ज्ञान का जिक्र करते हैं जो विशेषत: मौसम के अनुमान को लेकर चर्चा में होती है।
महुए के पेड़ को देखकर आदिवासी बुजुर्ग मौसम के पूर्वानुमान की बात बड़े रोचक तरीके से बताते हैं। जिस वर्ष गर्मियों में महुए के पेड़ पर खूब सारी पत्तियों को देखा जाता है, यानि हरे भरे महुए पेड़ को देखा जाता है तो अनुमान लगाया जाता है कि उस वर्ष मानसून बहुत अच्छा रहेगा।
गर्मियों में बांस की पत्तियों में हरापन देखा जाना यानि बांस में हरियाली दिखायी देना मानसून की बुरी खबर लाता है यानि उस वर्ष सूखा पड़ने जैसे हालात होने की संभावनांए होती है और बांस में हरियाली उस क्षेत्र में बची कुची फसलों पर चूहों के आक्रमण को भी दर्शाता है।
बेर के पेड़ पर फलों की तादाद लदालद हों तो पातालकोट घाटी के आदिवासी बताते हैं कि उस वर्ष मानसून सामान्य रहने की संभावना रहती है।
दूर्वा या दूब घास गर्मियों में खूब हरी भरी दिखायी दे तो माना जाता है कि आने वाला मानसून सामान्य से बेहतर या और ज्यादा बेहतर होता है। ग्रामीण इलाकों में गर्मियों में दूब घास को हरा भरा देख लोग वैसे ही खुशी मनाते हैं।
बेल के पेड़ पर पत्तियों की संख्या में कमी सामान्य या सामान्य से थोड़ा कम मानसून होने को इंगित करती है।
गर्मियों में पीपल के पेड़ पर हरियाली यानि खूब सारी पत्तियों का दिखायी देना संतुलित या सामान्य मानसून को दर्शाती है, ग्रामीण अंचलों में पीपल में हरियाली देख महिलाएं बेहतर मानसून की अपेक्षा रखते हुए इसकी पूजा पाठ भी करती हैं।
खिजड़ा बबूल की प्रजाति का एक घना फैला हुआ पेड़ होता है, कच्छ गुजरात के आदिवासी बुजुर्ग जानकारों के अनुसार यदि इसमें ज्यादा हरा भरा पन दिखायी दे, पत्तियों और शाखाओं की इतनी वृद्धि हो जाए तो ये जमीन को छूने लगे तो मान लिया जाना चाहिए कि सूखे के हालात बनने बनने वाले हैं, यानि मानसूनी वर्षा का असर लगभग नगण्य जैसा होगा है और हालात बदतर हो जाएंगे।
कवीट एक कठोर फल देने वाला पेड़ है, इसके फल बेल के फल की तरह बड़े और बेहद खट्टे होते हैं। मध्य प्रदेश के अनेक आदिवासी क्षेत्रों में मान्यता है कि पेड़ पर कवीट के फल लद जाएं यानि खूब पैदावार हो तो आने वाला मानसून बेहतर और तूफानी होता है। मानसून की शुरुआत आंधी तूफान के साथ होती है और लगातार कई दिनों तक बरसात का सिलसिला बना हुआ रहता है।
कवीट की तरह नीम पर जबर्दस्त हरियाली दिखायी देना और खूब सारी निंबोलियों (नीम के फल) का दिखायी देना कमजोर से कमजोर से भी कम मानसून का सूचक होता है।
डांग गुजरात के आदिवासी मानते हैं कि अमलतास के झूमरों की तरह लदे हुए फूल खिल जाएं तो ठीक इसके 45 दिनों बाद मानसून आ जाता है।
मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों के स्थानीय लोग मानते हैं कि गर्मियों के अंत पर गौरेया चिड़िया धूल में अठखेलियां करे, या लोटती दिखायी दे तो मानसून अच्छा होता है।
यदि मानसूनी बादल दिखायी दें और पातालकोट के आदिवासी पैदल यात्रा पर जाने की तैयारी कर रहे हो और उन्हें अचानक पेड़ पर गिरगिट चढ़़ता हुआ दिखायी दे तो. यात्रा स्थगित कर दी जाती है। माना जाता है कि घर से बाहर निकलते ही गिरगिट का पेड़ पर चढ़ते देखा जाना तुरंत बारिश का सूचक है।
मई के महिने में मेढ़क का टर्र- टर्र करना भी एक सूचक की तरह माना जाता है। आदिवासियों की मानी जाए तो ऐसा होने पर मानसून के जल्दी आने की संभावनाएं होती है। इस घटना को विज्ञान भी अपने नजरिये से देखता है और लगभग यही बात करता है।
बटेर नामक पक्षी जोड़ों में दिखायी दें और एक साथ आवाज निकालें तो माना जाता है कि कुछ देर बाद बरसात जरूर होगी। इस घटना को इतनी गंभीरता से लिया जाता है कि पाठकों को यकीन ना हो। आसमान पर बादल भी ना दिखाई दें और बटेर की आवाज सुनायी दे, आदिवासी बरसात से बचने की सारी व्यवस्था करने लगते हैं।
इसी तरह मोर का लगातार पीक मारते रहना भी एक या दो दिन में बरसात का सूचक माना जाता है और इस घटना का जिक्र हम शहरी लोग अक्सर करते भी रहते हैं।
जून माह की शुरुआत में कौवों का देर रात को लगातार कांव कांव करते रहना मानसून के लिए अपशकुन सा माना जाता है। बुजुर्ग कहते हैं कि इस माह में रात में कौवों का लगातार शोर करते रहना गम्भीर सूखे होने की भविष्यवाणी होती है।
जिस तरह जून माह की रात में कौवों का शोर बुरे मानसून की खबर के तौर पर देखा जाता है ठीक उसी तरह जून माह में सियार का दिन में रोना बुरे मानसून का सूचक कहलाता है। अक्सर गांव देहात में इस तरह सियार की आवाज का आना या रोना सुनायी देना, ग्रामीणों के माथे पर पसीना ले आता है।
सांप को पेड़ पर चढ़ते देखा जाना भी सूखे को इंगित करता है। टिटोड़ी नामक पक्षी किसी टीले पर या ऊंचे स्थान पर अपने अंडे देती है तो आने वाला मानसून बहुत अच्छा होने की बात की जाती है।
मार्च माह में होलिका दहन के आधा घंटा पहले और बाद में समय हवा की दिशा देखकर भी बुजुर्ग लोग मौसम के पूर्वानुमान लगा लेते हैं। इसी तरह अक्षय तृतिया पर सुबह ३ बजे से लेकर सुबह ६ बजे तक हवा के दिशामान के आधार पर मानसून और फसलों की पैदावार को लेकर अनुमान लगाए जाते हैं।
(लेखक गाँव कनेक्शन के कंसल्टिंग एडिटर हैं और हर्बल जानकार व वैज्ञानिक भी।)