डेंगू-मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों से बचाएगी छोटी सी मछली

गंबूसिया मछली की एक खासियत होती है कि यह पानी में पैदा होने वाले मच्छर के लार्वा को खा जाती है। जिसकी वजह से मलेरिया, डेंगू और चिकुनगुनिया के मच्छर पैदा ही नहीं हो पाते हैं।
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बरसात के समय डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसी कई बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ने लगता है, ये सभी बीमारियां मच्छर जनित होती हैं, जिनसे निपटने के लिए लोग कई तरीके अपनाते हैं, जबकि बड़े आसान तरीके से इनसे छुटकारा पाया जा सकता है।

गंबूसिया नाम की मछली की एक खासियत होती है कि यह पानी में पैदा होने वाले मच्छर के लार्वा को खा जाती है। जिसकी वजह से मलेरिया, डेंगू और चिकुनगुनिया के मच्छर पैदा ही नहीं हो पाते हैं।

मत्स्य विशेषज्ञ इंद्रमणि राजा गंबूसिया मछली की खासियतें बताते हैं, “गंबूसिया मछली मच्छरों के लार्वा को खा जाती है, मच्छर और मच्छर जनित बीमारियों से हम सभी परेशान हैं और मच्छरों को खत्म करने के लिए लोग नालियों में दवाओं का छिड़काव करते हैं। उससे क्या होता कि वो दवा घूम-फिरकर सब्जियों और अनाज के जरिए हमारे शरीर में आ जाती है।”

वो आगे कहते हैं, “गंबूसिया मच्छरों के लार्वा को चट कर जाती है, मच्छरों का लार्वा पानी के ऊपर तैरता रहता है, इस मछली का मुंह ऊपर की तरफ होता है, जिससे ये लार्वा को खा जाती है।”

गंबूसिया मछली अंडे नहीं देती, बल्कि बच्चे देती है, जबकि ज्यादातर मछलियां अंडे देती हैं। ये 80-120 बच्चे देती हैं और 24 घंटे में अपने भार का 40 गुना लार्वा खा जाती हैं।

इंद्रमणि राजा आगे कहते हैं, “मैंने बहुत से लोगों को ये मछलियां दी हैं, बहुत अच्छा रिजल्ट आया है। कई गाँव में लोगों ने बताया कि पहले शाम को उनका घर के बाहर बैठना मुश्किल हो जाता था, लेकिन अब मच्छर नहीं लगते हैं।”

गंबूसिया मछली मछली की सबसे खास बात ये होती है, जैसे कि दूसरे एक्वेरियम की मछलियों के लिए ऑक्सीजन लगानी होती है, लेकिन इसके कहीं भी डाल सकते हैं। इसे किसी भी ड्रम या टब में डाल सकते हैं और जैसे-जैसे इसके बच्चे बढ़ते जाएं इन्हें दूसरी जगह पर डालते जाएं।

गंबूसिया लगभग 4-7 सेंटीमीटर लंबाई की छोटी मछलियां होती हैं जो ताजे पानी में पाए जाने वाले विभिन्न जीवों जैसे ज़ोप्लांकटन (पानी में तैरने और बहाव करने वाले छोटे जीव), कोपोड्स ), पानी के पिस्सू, सतह के कीड़े, पर फ़ीड करती हैं।

मछलियां नए वातावरण और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने में अच्छी होती हैं, उपयुक्त परिस्थितियों में जल्दी परिपक्वता प्राप्त करती हैं और लंबे समय तक प्रजनन का मौसम रखती हैं। एक मादा अपने शरीर में अंडे रख सकती है और उच्च जीवित रहने की दर के साथ उपयुक्त परिस्थितियों में अंडे दे सकती है।

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