धान की सीधी बुवाई करनी हो या फिर नर्सरी तैयार करके रोपाई करनी होगी, बीजोपचार किसान कई तरह के नुकसान से बच सकते हैं। बीजोपचार करने से कई तरह के कीट व रोग फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
किसानों के ऐसे सवालों के जवाब देने के लिए आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर हफ्ते पूसा समाचार जारी करता है। इस हफ्ते आईएआरआई के सस्य विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ वाईवी सिंह धान के बीजोपचार की जानकारी दे रहे हैं।
आप ने बीज लिया और उसको फंजीसाइड से उपचार कर लिया उसके बाद कीटनाशक से उपचार कर लिया उसके बाद मे आखिर मे जीवाणु खाद से उपचार करेंगे। इस दौरान एक घंटे का गैप रखते हैं। पूसा संस्थान ने बीजोपचार के लिए जीवाणु खाद विकसित की है।
पूसा संपूर्ण में तीन बैक्टीरिया होते हैं, एक नाईट्रोजन का, एक फॉस्फोरस का और एक जिंक का। ये सभी फसल में जिंक, नाईट्रोजन और फॉस्फोरस की कमी नहीं होने देते हैं।
तो पूसा संस्थान मे पूसा सम्पूर्ण उपलब्ध है जो 100 मिली लीटर के तरल घोल के रुप मे उपलब्ध है। इसे आपको लेना है और जो जिंक का घोल है वो तरल घोल है 50 मिली के लिक्विड मे उपलब्ध होता है। दोनों को लेकर बीज की मात्रा के हिसाब से घोल बनाना है। क्योंकि धान के नर्सरी के लिए 20 किलोग्राम हेक्टेयर के लिए बीज लेना है उसको एक बीकर मे मिला लेना है पूसा सम्पुर्ण और पूसा जिंक को पानी के साथ मिला लेंगे बीज के हिसाब से मात्रा लें।
पूसा सम्पूर्ण की एक शीशी एक एकड़ के लिए पर्याप्त होती है अब जो घोल मिक्स है। उसे धान के बीज में धीरे-धीरे डाल उसके बाद हाथ से (ध्यान रखे हाथों मे दस्तानों का इस्तेमाल करें) और धीरे-धीरे मिला देंगे। कोशिश यही रहनी चाहिए कि सारे बीजों पर जीवाणु का घोल लगे और सारे बीज गीले हो जाएं।
बीजों को अच्छी मिक्स करके उनको अच्छे से फैला दें जो आधे एक घण्टे मे सूख जाएंगे उसके बाद इसकी बुवाई नर्सरी या फि खेत में जो एरोबिक विधि से कर सकते हैं। पूसा सम्पुर्ण और जिंक वाला जो टीका है वो पुसा संस्थान मे उपलब्ध है ।
पूसा सम्पूर्ण का रेट 150 रुपये प्रति शीशी, जबकि पूसा बायोजिंक का रेट 75 रुपये प्रति शीशी है।
अधिक जानकारी के लिए यहां संपर्क करें
प्रखंड स्तर पर प्रखंड कृषि पदाधिकारी अथवा प्रखंड विकास पदाधिकारी से संपर्क करें।
पंचायत स्तर पर कृषि समन्वयक अथवा अपने गाँव के कृषक सलाहकार से संपर्क किया जा सकता है।
नजदीक कृषि विश्वविद्यालय/कृषि महाविद्यालय/कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि विशेषज्ञ से उचित सलाह प्राप्त की जा सकती है।