पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में बासमती किस्मों की धान की खेती की जाती है, लेकिन पानी की समस्या के चलते कई बार किसान बुवाई नहीं कर पाते हैं। ऐसे में किसान धान की सीधी बुवाई कर सकते हैं, बस कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
किसानों के ऐसे सवालों के जवाब देने के लिए आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर हफ्ते पूसा समाचार जारी करता है। इस हफ्ते आईएआरआई के निदेशक डॉ अशोक कुमार सिंह धान की बासमती धान की सीधी बुवाई की जानकारी दे रहे हैं।
इन किस्मों की करें बुवाई
कम समय में पक कर तैयार होने वाली किस्में हैं। ये 120 से 125 दिन में तैयार हो जाती हैं। उनमें पूसा बासमती 1509 (Pusa Basmati 1509), पूसा बासमती 1692 (Pusa Basmati 1692) और पिछले वर्ष विकसित पूसा बासमती 1847 (Pusa Basmati 1847) है, जो पूसा बासमती 1509 के सुधार से बनाई गई है। यह किस्म झुलसा रोग प्रतिरोधी है। इस बीमारी से अपनी फसल बचाने के लिए किसानों को काफी खर्च करना पड़ता था, लेकिन इस किस्म की बुवाई करके किसान खर्च से बच सकते हैं।
इसके बाद दूसरी श्रेणी में वो किस्में आती हैं, जो करीब 140 से 145 मे तैयार हो जाती है। उसमें पूसा बासमती 1121 (Pusa Basmati 1121), पूसा बासमती 1718 (Pusa Basmati 1781) और पूसा बासमती 1885 (Pusa Basmati 1885) जैसी किस्में हैं। इसमें झुलसा या झोंका रोग नहीं लगता है।
तीसरी श्रेणी है उन किस्मों की जो 155 से 160 दिन में पक कर तैयार होती हैं। इसमे पूसा बासमती 1401 (Pusa Basmati 1401), जिसको हम पूसा बासमती 106 के नाम से भी जानते हैं और इसी का सुधरा रूप पूसा बासमती 1886 (Pusa Basmati 1886) है जिसमें पत्ती का झोंका और झुलसा रोग नहीं लगता है।
अगर आप नर्सरी की तैयारी कर रहे हैं, या फिर धान की सीधी बुवाई करना चाहते हैं तो आपको शुरू से ही कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसा की आप लोग जानते हैं जब हम धान की सीधी बिजाई करते हैं, तो पानी की करीब 30 से 35 प्रतिशत बचत होती हैं। प्रति एकड़ धान की रोपाई मे 3000 हजार से 4000 हजार का खर्च आता है।
बचत के साथ साथ ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन 30 से 35 प्रतिशत कम होता हैं। लेकिन धान की सीधी बीजाई मे क्या क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, इसमें क्या समस्याएं आ सकती हैं, ये भी जान लेते हैं।
बीजोपचार क्यों है जरूरी
धान की सीधी बिजाई मे सबसे बड़ी समस्या आती है खरपतवार नियंत्रण की। इसके साथ लौह तत्व के कमी की आशंका होती है, जिसमे फसल पीली पड़ जाती है।
पहली बात किस तरह की इसकी बुवाई करें और बुवाई से पहले बीज का उपचार कैसे करें?
अगर किसान भाई अपनी फसल से प्राप्त बीज का उपयोग कर रहे हैं। तो मैं आपको सुझाव दूंगा की नमक का 10 प्रतिशत घोल बनाएं। एक किलोग्राम नमक को एक प्लास्टिक के टब में 10 लीटर पानी में मिलाकर उसका घोल बनाएं। इस घोल में करीब आठ किलोग्राम बीज डालें, इसमें कुछ बीज तैरने लगेंगे, जो भारी होंगे वो नीचे बैठ जाएंगे, जो बीज ऊपर तैर रहे हैं उन्हें निकाल कर फेंक दें, क्योंकि वो सारे खराब बीज होते हैं। जो बीज नीचे बैठ जाएं उन्हें बाहर निकाल कर साफ पानी से धो लें। जिससे उनमें नमक प्रभाव कम हो जाए।
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अब इसके बाद बारी आती है बीज उपचार की। बीज उपचार के लिए 2 ग्राम ग्राम स्ट्रेटोसाइक्लीन 10 लीटर पानी में और साथ ही साथ 20 ग्राम बावस्टीन पानी में घोल बनाकर उसके अन्दर करीब 7 से 8 किलो बीज 20 घंटे रख देते हैं। इसके बाद बीज को निकाल कर छाया में फैला दीजिए और बीज को सुखा लिजिए अब ये बीज बुवाई के लिए तैयार है।
धान की सीधी बुवाई के लिए कैसे करें खेत की तैयारी
इसमें 2 विधियां होती हैं, जिसे हम तर बतर विधि कहते हैं । तरबतर विधि मे खेत की कटाई के बाद खेत में जो भी नमी है, उसी नमी का प्रयोग करते हुए (अभी हाल ही मे बारिश भी हो गयी है) खेत की आप अच्छी तरह से जुताई कर लें।
जुताई करने के बाद खेत का अच्छी तरह से समतलीकरण कर लें, बुवाई का जो उचित समय 25 मई से लेकर 10 जून तक का है। अगर धान की सीधी बिजाई करनी है तो आप 10 जून के बाद न करें क्योकि जब बरसात आ जाती है तब खरपतवार का नियंत्रण नहीं हो पाता है, बुवाई करने में दिक्कत आती है।
खेत में हल्की सिंचाई करने के बाद जुताई कर दीजिए, उसके बाद सीड ड्रिल मशीन से बुवाई कर सकते हैं। बुवाई के बाद पेंडीमेथिलीन हर्बिसाइड की 1200 से 1500 मिली की मात्रा 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें, इससे खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
अगर धान की सीधी बिजाई कर रहे हैं तो तरबतर विधि से बुवाई कर सकते हैं। उसके बाद खेत मे पानी लगा सकते है। फिर उसी तरीके से यहाँ दवा का छिड़काव कर सकते हैं। पहली सिंचाई 20 से 22 दिन बाद करते हैं, उसके बाद 8 से 10 दिन के अन्तराल पर ।
बरसात नहीं हुई तो विशेष ध्यान आप रखें बुवाई के तुरन्त बाद अगर बारिश हो जाती है तो एक पपड़ी बनने की संभावना होती है। उसमें धान के अंकुरण में दिक्कत आती है। ऐसी स्थिति आती है तो खेत में हल्की सिंचाई करते हैं, जिससे अच्छी तरह से अंकुरण हो जाएगा।