निजी स्वास्थ्य सेवा लेने को मजबूर हैं मरीज़, महंगे इलाज़ के कारण आ जाते हैं गरीबी रेखा के नीचे

लखनऊ

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की स्थिति बदतर होने के कारण लोग निजी स्वास्थ्य सेवा को लेने के लिए मजबूर है। निजी स्वास्थ्य सेवा लेने में सबसे ज्यादा परेशानी गरीब परिवारों को होती है। धन के अभाव में कई बार तो यह लोग पूरा इलाज़ नहीं करवा पाते है तो कुछ लोग घर ज़मीन तक बेचकर इलाज़ करवाने को मजबूर होते हैं।

इण्डिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की आधी से ज्यादा ग्रामीण आबादी निजी स्वास्थ्य सेवा का उपयोग करती है। निजी स्वास्थ्य सेवा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की तुलना में चार गुना अधिक महंगा है। निजी स्वास्थ्य सेवा भारत की 20 फीसदी सबसे ज्यादा गरीब आबादी पर उनके औसत मासिक खर्च पर 15 गुना ज्यादा बोझ डालता है। पिछले एक दशक के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर डाक्टरों की कमी में 200 फीसदी की वृद्धि हुई है। यहां तक कि मुंबई जैसे महानगरों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के स्टाफ को दोगुना करने की जरूरत है।

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गर्मी से परेशान 35 वर्षीय सत्येंद्र सिंह किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के ट्रामा सेंटर के गेट पर उदास बैठे है। सीतापुर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर रबनिया गाँव के रहने वाले सत्येंद्र सिंह सुबह से केजीएमयू के बाहर बैठे थे। उनके भतीजे की सड़क दुर्घटना में यादाश्त चली गयी। सुबह से कोई डॉक्टर उसे देखने नहीं आया । सत्येंद्र सिंह बताते हैं, “हम गरीब परिवार से हैं, लेकिन अपने परिवार के किसी भी सदस्य को मरने के लिए नहीं छोड़ सकते हैं। इलाज के लिए हमें भले खेत बेचना पड़े या घर, इलाज तो कराएंगे ही।”

आजकल इलाज महंगा तो है ही इसीलिए अगर सरकारी संस्था में इलाज देर से मिल पा रहा है तो लोगों को थोड़ा सा इन्तजार जरुर कर लेना चाहिए। इससे लोगों को अच्छा और सस्ता इलाज मिल जायेगा। अगर सरकारी संस्थाओं में इलाज़ नहीं मिलता है तो वो तुरंत प्राइवेट संस्था की ओर चल देते हैं जहां पर लोगों को हैसियत से ज्यादा खर्चा करना पड़ जाता है।

उदय भास्कर मिश्रा, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) 

2015 की लैंसेट मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा और निजी स्वास्थ्य खर्च के कारण हर वर्ष भारत में 5.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं गोंडा जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर करनैलगंज से अपनी भाभी का इलाज करवाने आये संतोष बताते हैं, “मेरी भाभी की आंत में दिक्कत है, उसका इलाज चल रहा है। अभी तक के इलाज में तीन लाख रूपए लग गए है, आगे अभी इलाज जारी है। महंगी-महंगी दवाइयां खरीदनी पड़ती है। कर्जा लेकर अब इलाज करा रहे हैं, कर्जा चुकाने के लिए अब तो जमीन ही बेचनी पड़ेगी।”

संतोष जैसे हजारों लोग हर साल अपनों के इलाज के लिए जमीन बेचने और मजदूरी करने के लिए मजबूर है। 2012 में जारी हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार देश की 60 प्रतिशत जनसंख्या इलाज के लिए अपनी हैसियत से कई गुना ज्यदा खर्च करने को मजबूर है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश की लचर व्यवस्था के कारण 390 लाख लोग गरीबी रेखा के नीचे आ जाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीणों की स्थिति और भी खराब है।

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