बीमारियों से बचना है तो मच्छरों से बचें 

जब हम मच्छर को मारने के लिए उस पर प्रेशर डालते हैं तो उसके सिर पर एक प्रेशर रिसेप्टर होता है, जिससे उस पर हाथ उठाते ही उसे पता चल जाता है और वह उड़ जाता है।
मच्छर

लखनऊ। यह तो जगजाहिर है कि डेंगू, मलेरिया, इन्सेफ्लाइटिस समेत कई बीमारियों की जड़ मच्छर हैं, लेकिन विडंबना है कि देश की बड़ी आबादी इससे बचने के लिए जागरूक नहीं है। यही वजह है कि मच्छरों से होने वाली बीमारियों में लगातार इजाफा हो रहा है। मेडिकल साइंस कहती है कि बचाव सदैव इलाज से बेहतर होता है, लिहाजा बेहतर है कि हम अपने आसपास मच्छरों को पैदा ही नहीं होने दें।

होम्योपैथी विशेषज्ञ डॉ. रवि सिंह ने बताया, “मच्छर के काटने पर दर्द और खुजली होती है। दरअसल, जब मच्छर हमारी त्वचा पर बैठता है तो उसके बाद एक जगह पर अपनी सूंड़ गड़ाता है। सूंड़ गड़ाने के बाद उसे व्यक्ति का खून खींचना होता है। यह खून उसकी सूंड़ में जमने ना पाए, इसके लिए मच्छर अपने सूंड़ को त्वचा में चुभाने के बाद एंटी कोएगुलेंट (थक्कारोधी) द्रव छोड़ता है। इसी द्रव से एलर्जी होने के बाद ही खुजली शुरू हो जाती है।”

सवाल यह भी उठता है कि मच्छर आसानी से मरता क्यों नहीं है। दरअसल, जब हम मच्छर को मारने के लिए उस पर प्रेशर डालते हैं तो उसके सिर पर एक प्रेशर रिसेप्टर होता है, जिससे उस पर हाथ उठाते ही उसे पता चल जाता है और वह उड़ जाता है।

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डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, येलोफीवा, फाइलेरिया, इन्सेफ्लाइटिस मच्छर के काटने से ही होती हैं। ये ऐसी बीमारियां हैं, जो दूसरे परजीवी के द्वारा होती हैं, लेकिन इन परजीवियों का आधा जीवन चक्र हमारे शरीर में पूरा होता है और आधा मच्छर के शरीर में। उन परजीवियों का जीवन चक्र पूरा न हो, इसके लिए हमें मच्छरों से बचाव करना होगा। जैसा कि मेडिकल साइंस में भी बताया गया है कि बचाव सदैव इलाज से बेहतर होता है।

ऐसे शुरु हुआ विश्व मच्छर दिवस

मच्छरों से होने वाली बीमारियां बीती कई सदियों से इंसानों को अपना निवाला बना रही हैं, लेकिन लंबे अरसे तक इसका इलाज नहीं ढूंढ़ा जा सका। क्योंकि तब तक वजह नहीं पता चली थी। लेकिन 20 अगस्त 1897 को लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के ब्रिटिश चिकित्सक डॉ. रोनाल्ड रॉस ने खोज की कि मलेरिया के संवाहक मादा एनॉफिलीज मच्छर होते हैं। आगे चलकर उनके प्रयास से मच्छर जनित बीमारियों की रोकथाम और उपचार के लिए अभियान चले और मलेरिया से हजारों लोगों की जान बचाई जा सकी। इसी योगदान के लिए उन्हें 1902 में चिकित्सा के लिए नोबेल से सम्मानित किया गया था।

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