चमकदार गुड़ आप को कर सकता है बीमार , होता है केमिकल का इस्तेमाल

Bright molasses

लखनऊ। बाजार में मिलने वाला साफ और चमकीला गुड़ आपकी सेहत के लिए फायदेमंद नहीं है क्योंकि इस गुड़ को साफ करने के लिए हाइड्रोजन और अन्य केमिकलों का इस्तेमाल हो रहा है। इतना ही नहीं केमिकल के कारण गुड़ की मिठास भी कम हो रही है जिससे किसानों को सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं।

क्रशर और कोल्हुओं के जरिए गुड़ बनाने वाले गुड़ को साफ और चमकीला बनाने के लिए केमिकल का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे गुड़ देखने में तो अच्छा हो जा रहा है लेकिन मिलावट के कारण अन्य अन्य गुड़ के मुकाबले किसानों को दाम अच्छे नहीं मिल पा रहे हैं। इस गुड़ को खाने से अल्सर और पेट संबंधी दूसरी बीमारियों का खतरा उत्पन्न है जिससे व्यापारी इसको खरीदने में मुंह मोड़ रहे हैं।

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इंडियन डायेटिक एसोसिएशन की सीनियर डायटिशियन डॉ. विजयश्री प्रसाद कहती हैं, “गुड़ चीनी का अशोधित कच्चा प्रकार है। गुड़ को भारत और दक्षिण एशिया में बड़े पैमाने पर भोजन में मिठास लाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें गन्ने के रस में मौजूद खनिज, पोषक तत्व और विटामिन बरकरार रहते हैं, लेकिन हाइड्रोजन का अगर इस्तेमाल इसके बनाने में किया जा रहा है तो यह घातक है। यदि हाइड्रोजन केमिकल मिश्रित गुड़ रोज खाया जाए तो अल्सर भी हो सकता है। आंतों में घाव होने से अन्य बीमारियां भी जकड़ सकती हैं।”

मेरठ के बंसल गुड़ कंपनी के थोक व्यापारी अजीत बंसल ने बताया, ”उत्तर प्रदेश में गुड़ को साफ करने में गुड़ बनाने वाले केमिकल का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसके कारण गुड़ देखने में साफ और चमकीला तो हो रहा है लेकिन गुड़ की मिठास कम हो जा रही है। यह गुड़ जल्दी पिघलने लगता है जिसके कारण इस गुड़ को दाम कम मिल रहा है।”

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादक किसानों और गुड़ बनाने वाली ईकाईयों को लेकर राष्ट्रीय चीनी संस्थान, कानपुर में ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें बताया गया था कि था यहां के गुड़ बनाने में गुड़ को साफ करने में रस में हाइड्रोजन ओर दूसरे केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे कारण जब इन गुड़ की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है। राष्ट्रीय चीनी संस्थान, कानपुर के निदेशक प्रो. नरेन्द्र मोहन ने इसके लेकर पिछले दिनों उत्तर प्रदेश गन्ना संस्थान में एक प्रेजंटेशन दिया था और गन्ना विभाग से किसानों को इसको लेकर जागरूकता अभियान चलाने की सलाह दी थी।

परंपरागत तरीकों से नहीं साफ कर रहे गुड़

मेरठ कृषि विश्वविद्यालय के बायोकेमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर डॉ. राकेश सिंह सेंगर ने बताया, ”गुड़ बनाते समय पहले इसके कालापन को दूर करने के लिए परंपरागत तरीका अपनाया जाता था, जैसे भिंडी के पानी और लाल मिर्च के बीज को गुड़ बनाने समय रस में डालकर उसको साफ किया जाता था। इस विधि से तैयार किया गया गुड़ गुणवत्ता के साथ ही टिकाऊ भी होता था। वर्षों रखने पर भी यह न तो पिघलता था और न खराब होता था। लेकिन आजकल बाजार में विभिन्न प्रकार के केमिकल आ गए हैं जिनको गुड़ बनाने समय इस्तेमाल किया जा रहा है। जिससे गुड़ की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।”

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जैविक गुड़ की डिमांड बढ़ी

आजकल बाजार में सबसे ज्यादा डिमांड जैविक गुड़ की हो रही है। बड़े व्यापारी गुड़ को खरीदते समय इसकी गुणवत्ता की जांच कर रहे हैं। उसके बाद ही गुड़ का रेट लगाया जा रहा है। बाजार में जैविक गुड़ जहां थोक में 80 रुपए किलो बिक रहा है वहीं आम गुड़ 40 से लेकर 50 रुपए किलो बिक रहा है।

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यूपी के मुकाबले मध्यप्रदेश के गुड़ की डिमांड ज्यादा

मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गाडवारा तससील के लिलवां गांव के आदित्य कोरव के यहां पिछले 20 साल से गुड़ उत्पादन का काम हा रहा है। उन्होंने बताया ”गुड़ को साफ करने में हमारे यहां भिण्डी का इस्तेमाल होता है। किसी भी प्रकार के रसायन को इस्तेमाल हम लोग नहीं करते हैं। इसी का नतीजा है कि हमारे यहां के गुड़ की सबसे ज्यादा डिमांड है। इस बार मंडी में 3515 रुपए प्रति कुंतल यह गुड़़ बिक रहा है। ”

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