लखनऊ। शिशु के लिए उसकी मां का दूध ‘सुपरफूड’ कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उसमें शिशु की सारी जरूरतें पूरी करने वाले तत्व होते हैं। यह कहना है डॉ रूपा शर्मा का जो लखनऊ के अलीगंज स्थित बाल चिकित्सा विशेषज्ञ हैं।
उन्होंने बताया, ”शिशु के पैदा होने के पहले घंटे में ही उसे स्तनपान कराना बहुत जरूरी होता है। पहले स्तनपान के दूध में शिशु के लिए जरूरी प्रोटीन, संक्रमण से लडऩे वाली रोग प्रतिरक्षी और विटामिन-ए जैसे पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा होती है। यह शिशु को पोषण देता है जो उसके विकास में सहायक होता है और उसके नाजुक पाचन तंत्र के लिए अच्छा होता जो आसानी से पच जाता है।”
भारत में मातृ और शिशु से जुड़े विषय पर काम करने वाली संस्थाएं जैसे यूनिसेफ भी मानती है कि शुरुआती छह महीने केवल शिशु को स्तनपान ही कराना चाहिए। इस विषय पर डॉ शर्मा विस्तार से बताती हैं, ”शिशु को शुरुआती छह महीने पूरी तरह से स्तनपान पर ही रखना चाहिए, क्योंकि छह महीने तक उसके दांत नहीं निकालते हैं। ऐसे में वह केवल तरल आहार ले सकता है और दूध आपने आप में सम्पूर्ण आहार है।”
आजकल स्तनपान न कराने की समस्या समाज के हर वर्ग में दिखाई देती है। कहीं जागरूकता न होने से तो कहीं भ्रांतिया होने के कारण। कई बार मांएं सोचती हैं कि दूध आए तब बच्चों को पिलाना शुरू करें, ऐसे में वह बच्चों को डिब्बे वाला दूध पिलाती हैं। लेकिन ऐसा नहीं है, दूध आने का इंतजार न करें। बच्चों को दूध पिलाने की प्रक्रिया में भी कई बार दूध उतर आता है।
स्तनपान करना महिलाओं के लिए लाभकारी होता है। यह प्रसव के बाद महिलाओं के शरीर को पुन: पुराने आकार में आने में मदद करती है। ”दूध बनाने के लिए शरीर को काफी कैलोरी उर्जा खर्च करनी पड़ती है ऐसे उनके शरीर में जमा चर्बी दूध बनने में खर्च होती है। स्तनपान कराने से महिलाओं में स्तन कैंसर समेत अन्य कई तरह के कैंसर होने की संभावना काफी कम हो जाती है”, डॉ रूपा ने बताया।
स्तनपान मनोवैज्ञानिकतौर पर भी असर करता है। यह मां और शिशु के बीच के संबंध को मजबूत बनाता है। इससे शिशु अपनी मां से बेहतर जुड़ाव महसूस करता है। स्तनपान करने वाले बच्चों का मानसिक विकास भी अच्छा होता है।
स्तनपान कराते समय बच्चे को सही स्थिति में रखना जरूरी है, इसके लिए शिशु को अपने हाथ पर लिटा कर उसके सिर को हथेली से सहारा देने होता है। जिससे शिशु सही मात्रा में दूध नहीं पी पाता है और कई बार तो शिशु को सांस लेने में भी दिक्कत आ जाती है। आमतौर पर शिशु को दूध पीने में 15 से 20 मिनट का समय लगता है।
मां शिशु को स्तनपान हल्के बुखार और कुछ हल्के संक्रमण में भी करा सकती है। ”अगर मां को हल्का बुखार है या सर्दी, खांसी, जुखाम है तो भी बच्चे को दूध पिला सकती है। लेकिन अगर बुखार तेज है या किसी अन्य रोग की दवा चल रही है तो ऐसी स्थिति में अपने डॉक्टर से स्तनपान कराने के बारे में पूछें।”, डॉ शर्मा ने बताया।