लखनऊ। जिन लोगों को डॉयबिटीज है उनको कई खाने-पीने वाली चीजों में प्रतिबंध झेलना पड़ता है। लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि वह खा सब कुछ सकते है लेकिन उन्हें उसकी ऐसी मात्रा पता करनी होगी जिससे उनके स्वास्थ्य को कोई नुकसान न हो।
मधुमेह (डॉयबिटीज) रोगियों की जिन्दगी में कैसे मिठास भरी जाए। यह है रिसर्च सोसाईटी फॉर द स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया के 43वें सालाना सम्मेलन की थीम। तीस अक्टूबर से एक नवम्बर तक चले सम्मेलन में करीब पांच हजार डॉक्टरों ने डॉयबिटीज पर नई जानकारियां नई दवाइयां और शोध को साझा किया।
सम्मेलन के कोषाध्यक्ष डॉ नरसिंह वर्मा ने बताया, ”मधुमेह रोगियों के लिए यह जानना सबसे ज्यादा जरूरी है कि वह क्या खाएं और कितनी मात्रा में खाएं। इसके लिए बस उन्हें फूड पिरामिड की मदद लेनी चाहिए और सबसे नीचे मौजूद फल, सब्जियों को अपनी आहार का 70 फीसदी खुराक में शामिल करना चाहिए। बाकी 20 फीसदी में अनाज, मोटा अनाज, मांसाहार और 10 फीसदी में मक्खन, घी जैसी वस्तुएं शामिल करनी चाहिए।” अंतरराष्ट्रीय डॉयबिटीज फेडरेशन के मुताबिक भारत में वर्तमान समय में करीब चार करोड़ डॉयबटीज के मरीज है, जिनकी संख्या में साल 2025 में बढ़ कर सात करोड़ हो जाने का अनुमान है।
मधुमेह रोगियों के खून में ग्लूकोज का स्तर न बढऩे के तरीके पर वे बताते हैं, ”डॉयबिटीज रोगियों को अपना खाना छोटे-छोटे हिस्सों में कई बार खाना चाहिए क्योंकि एक बार में ज्यादा खाने से खून में ग्लूकोज का स्तर एकदम से बढ़ जाता है वहीं पैनक्रियाज बढ़े हुए ग्लूकोज को खपाने के लिए धीरे-धीरे छोड़ता है। तो ऐसे में ग्लूकोज का बढ़ा स्तर धमनियों को नुकसान पहुंचाना शुरूकर देता है।”
अक्सर होता यह है कि स्वाद की मजबूरी में लोग ज्यादा मीठा खाने लगते हैं और बीमार होने पर मिठाई को कोसते है, जबकि इसमें मिठाई की कोई गलती नहीं होती है, गलती आपके खाने की मात्रा और आदत की होती है। बिना परहेज के कोई भी इसे सिर्फ दवाई से नियंत्रित नहीं कर सकता। इसके साथ सुबह और शाम को व्यायाम जरूर करना चाहिए। डॉ वर्मा ने मधुमेह के रोगियों की आदत के बारे में बताया।
टेली मेडिसिन इलाज का भविष्य
शहर से दूर ग्रामीण इलाकों में अच्छी डॉक्टरी सलाह पहुंचाने के लिए टेलीमेडिसिन पर अब डॉक्टर भरोसा जता रहे हैं। उनका मानना है कि कम खर्च में ग्रामीण तक इलाज पहुंचाने में टेलीमेडिसिन सफल भूमिका निभा सकता है।
विशेषज्ञ चिकित्सा सुदुर क्षेत्रों में पहुंचाने को सफल
भारत में कम खर्च पर अच्छे डॉयबिटीज के इलाज के लिए टेलीमेडिसिन एक अच्छा विकल्प है। ऐसा संभव नहीं है कि हर जगह स्पेशलिस्ट डॉक्टर को भेजा जा सके या तैनात कर सकें, क्योंकि स्पेशलिस्ट डॉक्टर सीमित मात्रा में हैं। तो ऐसे में हमने कुछ मोबाइल मेडिकल वैन चलाई है जो मरीज के पास जा कर जरूरी जानकारी एकत्र करती हैं।
टेली मेडिसिन के जरिए हम एक ही समय में कई जगहों के डॉयबिटीज मरीजों का समूह बना कर उन्हें बीमारी के बारे में जागरुक कर सकते हैं। उन्हें उनके मर्ज से जुड़ी जानकारी दे सकते हैं। इसमें हम उन्हीं के बीच के किसी मरीज का उदाहरण भी पेश कर सकते हैं कि कैसे उसने अपनी डॉयबिटीज पर नियंत्रण पाया है। इससे बीमार लोगों को बीमारी से लडऩे में प्रोत्साहित करने में सहायता मिलेगी। इस तरह के रोगी प्रबंध के तरीके बहुत प्रभावी हो सकते है जबकि इनकी लगात बहुत ज्यादा नहीं होगी।
अच्छी बात यह है कि इसके लिए अलग से आधारभूत ढांचे ही जरूरत नहीं पड़ेगी। इसे चलाने के लिए ऐसी छोटे चीजों की जरुरत होगी, जो ज्यादातर लोगों के स्मार्टफोन में है। बस उन्हें इन चीजों को उस तरह इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग देनी होगी। अगर ऐसा हम पूरी तरह लागू कर पाए तो यह उम्मीद से अच्छे नतीजे दे पाएगा। खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां अक्सर लोगों को अच्छी डॉक्टरी सलाह नहीं मिल पाती। हमने देखा कि ग्रामीण इलाकों में भी लोगों के पास स्मॉटफोन हैं, जिसके जरिए लोगों को स्पेशलिस्ट डॉयबिटीज डॉक्टरी सलाह दी जा सकती है।
विदेशों में सफल टेलीमेडिसिन
टेली मेडिसिन डॉक्टरी का भविष्य है, ऑस्ट्रेलिया में मरीज अपना ब्लड शुगर और खून के नमूने की जांच की जानकारी डॉक्टर को एसएमएस से भेज देते हैं। इसके बाद डॉक्टर अपने क्लीनिक से बैठे ही बैठे मरीज की दवा, उसकी मात्रा व अन्य चीजें उसे फोन पर ही बता देते हैं। वहां ऐसी तकनीक हमारे पास है कि डॉक्टर अपने क्लीनिक पर बैठे हुए ही मरीज से इंसुलिन पेन की मात्रा को घटा-बढ़ा सकते हैं।
‘आसान सलाह दें डॉक्टर’
डॉक्टरों को ऐसी सलाह देनी चाहिए जिसे मरीज आसानी से मान सके। लोगों को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि डॉयबिटीज हो गया तो अब जिंदगी खत्म हो गई, जबकि यह एक तरह से अच्छा है कि किसी को डॉयबिटीज है और उसे पता चल गया है। अब कम से कम वह अपना ख्याल तो रखे सकेगा भारत में डॉयबिटिक मरीज़ों की हालत पूरी दुनिया में खराब है। पूरे विश्व में छह सेकेंड में एक मरीज की मौत हो जाती है। भारत में अंधेपन का बड़ा कारण डॉयबिटीज है।
‘स्वास्थ्य पर नज़र रखती है‘
टेली मेडिसिन को विस्तार देते हुए हमने अपने कुछ क्षेत्रों में डॉयबिटीज मरीजों की टेली मॉनिटरिंग शुरू की है। हम मरीज की रोजाना ब्लड शुगर दर्ज करते है और उस आधार पर उसे चिकित्सकीय सलाह देते हैं। इसके लिए हम ब्लूटूथ के जरिए फोन और ग्लूकोमीटर को जोड़ सकते है और एप के सहारे सारी जानकारियां डॉक्टर को भेजी जा सकती है।
पैरो का खास ध्यान रखें
इंग्लैड से आए मधुमेह विशेषज्ञ डॉ एंड्रयू बोलटन ने बताया, ”डॉयबिटीज में पैरों को ध्यान रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि जो लोग एक पैर में डायबिटीज फुट रोग का ऑपरेशन कराते है उनमें ऐसा देखा गया है उन्हे पांच साल के भीतर ही दूसरे पैर का ऑपरेशन भी कराना पड़ता है।” डॉ एंड्रयू यूरोपीय देशों के डॉयबिटीज डायगोनोसिस संघ के चेयरमैन हैं। उन्होंने मधुमेह से पैर में होने वाले रोगों के बारे में जानकारी दी। यह रोग अनियंत्रित डॉयबिटीज से होता है और इससे मनुष्य के गुर्दे को गंभीर नुकसान पहुंचता है।
प्लास्टिक से होता है मधुमेह
कार्यक्रम मे मुंबई के लीलावती अस्पताल के मधुमेह विशेषज्ञ डॉ शशांक जोशी ने प्लास्टिक और डॉयबिटीज का संबंध बताते हैं, ”चाहे प्लास्टिक में गर्म चीजों का सेवन किया जाए या ठंडे, उसे जिन रसायनों का रिसाव होता है वह मनुष्य में मधुमेह होने की संभावना को बढ़ा देता है। यह देखा गया है कि डायबिटीज के दो तिहाई मरीज हृदय रोग से मरते हैं।”
मधुमेह से बचा सकता है हफ्ते में पांच घंटे का व्यायाम
लखनऊ। चिकित्सा विज्ञान में प्री डॉयबिटिक अवस्था ‘संभावित मधुमेह रोगी’ बनने की अवस्था को कहा जाता है। यह अवस्था आपके जीवन के लिए घड़ी के अलार्म की तरह होती है, अगर ध्यान नहीं दिया तो डॉयबिटीज हो सकती है।
तमिलनाडु के डॉ एमजीआर मेडिकल कॉलेज से आए डॉ मुरुगनाथन ने प्री डॉयबिटीक अवस्था में डॉयबिटीज न होने के तरीके बताए। प्री डायबिटिक अवस्था से सामान्य अवस्था में आने का नुस्खा के बारे में डॉ मुरुगनाथन बताते हैं, ”सिर्फ पांच घंटे हर सप्ताह व्यायाम, इसके लिए वह कोई भी समय निर्धारित कर सकते हैं। दिनभर का अपना पूरा खाना कम से कम चार हिस्सों में बांट ले और कुछ अंतराल पर खाएं।”
डॉ मुरुगनाथन, डॉयबिटीज रोग के विशेषज्ञ और भारतीय फिजियोलॉजी संघ के प्रमुख हैं। उन्होंने प्री-डॉयबिटिक मैनेजमेंट पर जानकारी दी। प्री-डॉयबिटिक मैनेजमेंट यानि मधुमेह का संभावित रोगी होने पर ऐसे तरीके अपनाना जिससे मधुमेह न होने पाए।
प्री डायबिटिक अवस्था पर लोगों को तुरंत हरकत में लाने को प्रेरित करते हुए पुंडचेरी से आए डॉ सुरेश दामोदर बताते हैं, ”प्री डायबिटिक अवस्था और डॉयबिटीज दो अलग वस्तुएं हैं लेकिन आपको इसे उतना ही गंभीर लेना है जितना डॉयबिटीज होने पर आप लेते हैं।”
भारतीय डायबिटिक संघ के मुताबिक साल 2014 में देश में सात करोड़ मधुमेह रोगी थे, जबकि 10 करोड़ लोग ऐसे है जो प्री डॉयबिटिक हैं। ”जो व्यक्ति डॉयबिटीज को निंयत्रित कर ले गया उसने अपने आपको 80 फीसदी रोगों से बचा लिया क्योंकि मधुमेह से हमारी सभी अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।” डॉ दामोदर ने बताया।
अपने आप को मधुमेह संभावित के तौर पर पहचाने के तरीके के बारे में डॉ मुरुगनाथन बताते हैं, ”अगर आपकी थोड़ी भी तोंद है तो समझा लीजिए आप प्री डायबिटिक अवस्था में प्रवेश कर चुके हैं। ऐसे में आपको एक फैसला करना होता है, अपनी दिनचर्या सुधार लें, नहीं तो डायबिटीज रोगी बनने की संभावना पूरी है।”