कहीं आपका बच्चा तो नहीं है मोबाइल की लत का शिकार? जानिए कारण, लक्षण और बचाव

मोबाइल का ज्यादा प्रयोग करने वाले बच्चे मोटापा, हाईपरटेंशन जैसी बीमारियां का शिकार हो सकते हैं। बच्चों को लाइफस्टाइल डिसआर्डर हो जाता है, जिसमें मोटापा बढ़ना, भूख कम लगना, चिड़चिड़ा होना आदि शामिल हैं। बच्चों में इस सब बीमारियों के आने के जिम्मेदार माता-पिता खुद हैं।
#Mobile Connection

“भाई, उधर से बंदा आ रहा है, हेड शॉट मार… हेड शॉट…” गोली चलने की आवाज़ आती है और क्लास 6 में पढ़ने वाला शौर्य अपने बड़े भाई देवाग्र को गले लगा लेता है। देवाग्र और शौर्य मोबाइल पर ‘पबजी’ नाम का ऑनलाइन गेम खेल रहे थे, जिसमें उन्होंने एक दुश्मन को मार दिया है। मोबाइल पर कई घंटे रोज बिताने वाले ये दोनों भाई काफी खुश रहते हैं लेकिन इनके मम्मी-पापा इनके मोबाइल प्रेम से बहुत परेशान हैं।

लखनऊ के एक कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने वाले ये बच्चे कुछ साल पहले तक खाली समय में फुटबाल खेलते थे, साइकिल चलाते थे, पार्क में दूसरे बच्चों के साथ मौजमस्ती करते थे, लेकिन अब ज्यादातर समय घर में बीतता है। हमेशा इस ताक में रहते हैं, कि कब मोबाइल मिले और गेम खेलना और कार्टून देंखे।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने जून 2018 में ऑनलाइन गेमिंग को एक मानसिक स्वास्थ्य विकार घोषित किया था। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, ‘गेमिंग डिसऑर्डर’ गेमिंग को लेकर बिगड़ा नियंत्रण है, जिसका अन्य दैनिक गतिविधियों पर भी प्रभाव पड़ता है। डब्ल्यूएचओ ने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज के ताजा अपडेट में यह भी कहा कि गेमिंग कोकीन और जुए जैसे पदार्थों की लत जैसी हो सकती है।


उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहने वाली शौर्य और देवाग्र की मां गुंजन सिंह कहती हैं, “स्कूल से आने के बाद इन्हें (बच्चों) मोबाइल चाहिए। फोन न दो तो रोना शुरु कर देते हैं। खाना तक नहीं खाते। दोनों मोबाइल में कभी कार्टून देखते हैं तो कभी यूट्यूब पर वहीं मारपीट वाले वीडियो देखते रहते हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा है कैसे इनकी ये आदत छुड़वाऊं।”

डॉ. शैली अवस्थी,विभागाध्यक्ष,बाल रोग विभाग,किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू)

डॉ. शैली अवस्थी,विभागाध्यक्ष,बाल रोग विभाग,किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू)

भारत के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज में से एक किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू), लखनऊ में बाल रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. शैली अवस्थी, मोबाइल से होने वाली समस्याओं को गिनाते हुए बताती हैं, “मोबाइल के ज्यादा प्रयोग से बच्चों में सबसे ज्यादा मानसिक बीमारियों की समस्या देखने को मिलती है। वे मोबाइल को आंखों के बहुत पास रखकर देखते हैं तो आंखों पर असर पड़ता है। उनकी पास और दूर दोनों की दृष्टि कमजोर पड़ती है। इसके साथ क्योंकि मोबाइल का ज्यादा प्रयोग करने वाले बच्चे बाहर खेलने कूदने नहीं जाते हैं तो उनमें मोटापा और हाईपरटेंशन जैसी बीमारियां हो सकती है।” 

डॉ. अवस्थी आगे जोड़ती हैं, “मोबाइल फोन प्रयोग करने वाला बच्चा वास्तविक दुनिया से हटकर इमैजिनेशन की दुनिया में जीने लगता है। वह खेलना-कूदना कम कर देता है। बच्चे का दूसरे बच्चों और परिवार, रिश्तेदार के लोगों से संपर्क कम हो जाता है। ये कहिए कि उसकी सोशल स्किल कम हो जाती है।”

सिर्फ बड़े बच्चें नहीं, नर्सरी और केजी में पढ़ने वाले हजारों बच्चे भी मोबाइल का शिकार हो रहे हैं। साढ़े पांच साल के डुग्गू को खाने से पहले मोबाइल चाहिए होता है, कई बार वो वीडियो देखने के चक्कर में खाना तक भूल जाता है। डुग्गू के पिता लखनऊ में पत्रकार हैं, वो उसके मोबाइल और टीवी देखने से बहुत परेशान रहते हैं।


डॉक्टर अपनी भाषा में बच्चों के इस मोबाइल प्रेम को ‘मोबाइल एडिक्शन’ यानि मोबाइल की लत कहते हैं। मोबाइल के बहुत ज्यादा प्रयोग से बच्चे कई बीमारियों का शिकार भी हो रहे हैं। इनमें से कई बीमारियों के लक्षण तुरंत दिखते हैं तो कुछ का असर लंबे समय में नजर आता है। दिल्ली-लखनऊ जैसे बड़े महानगरों के अस्पतालों में ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

दुनिया में चीन के बाद सबसे ज्यादा मोबाइल फोन भारत में हैं। ‘बैंक मई सेल’ नाम की वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 38 करोड़ 69 लाख स्मार्नफोट उपभोक्ता हैं। डॉक्टरों के मुताबिक जिन घरों में बड़े लोग ज्यादा मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं वहां बच्चों में भी आदत पड़ जाती है।

 डॉ. अमित आर्या, मानसिक चिकित्सा विभाग,केजीएमयू, 

केजीएमयू, लखनऊ में मानसिक चिकित्सा विभाग के डॉ. अमित आर्या कहते हैं, “भारत समेत पूरी दुनिया में जो शोध हुए हैं उसके मुताबिक जिस घर में माता-पिता, बड़े भाई बहन मोबाइल का ज्यादा प्रयोग करते हैं तो वहां बच्चे भी ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। कई रिसर्च में यह भी पाया गया है कि मोबाइल इंटरनेट का प्रयोग कोकीन की तरह है। जिसे नहीं मिलता वो परेशान हो जाता है।”

वह आगे जोड़ते हैं, “इसे हम लोग प्रैग्मेटिकक डिसआर्डर कहते हैं। ज्यादा समय मोबाइल या टीवी पर बिताने वाले बच्चों को लाइफस्टाइल डिसआर्डर हो जाता है, जिसमें मोटापा बढ़ना, भूख कम लगना, चिड़चिड़ा होना आदि शामिल हैं।” 

पिछले वर्ष कई ऐसी ख़बरें आईं, जिनमें बच्चों की मोबाइल गेम्स के चलते मौत हुई थी। ये समस्या आगे और बढ़ सकती है क्योंकि मोबाइल फोन हाथ में रखने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। इनफार्मेशन और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काम करने वाली अग्रणी कम्पनी एरिक्सन की एक रिपोर्ट के अनुसार तकरीबन आधे से ज्यादा किशोर और जो बच्चे किशोर होने की राह पर हैं उनके पास एक मोबाइल फोन जरूर है।

अपने बच्चों की मोबाइल प्रयोग करने की आदत से परेशान लखनऊ शहर में रहने वाले सर्वेन्द्र बहादुर सिंह बताते हैं, “बच्चों को मोबाइल हमेशा हाथ में चाहिए। स्कूल से जैसे आयेंगे वैसे ही चाहिए और केवल गेम खेलना होता है। गेम और कार्टून। कार्टून में जो भाषा प्रयोग होती है उसी भाषा का प्रयोग अपनी रोजना की जिंदगी में करते हैं। हालत ये हो गई है कि हम लोगों को अपना फोन बचाना पड़ता है।”


बच्चों की मोबाइल लत के लिए कई डॉक्टर माता-पिता को ही जिम्मेदार मानते हैं। “बच्चे को समय नहीं दे पाए तो उसे गैजेट दे दिया उसकी कोई चीज पूरी नहीं कर पाए तो उसे गैजेट दे दिया। ऐसे में बच्चे को कहीं न कहीं ये लगने लगता है कि पॉवर अब हमारे हाथ में हैं आज हमें इस चीज के लिए गैजेट मिला है तो कल किसी दूसरी चीज के लिए कुछ और मिल जायेगा अब तो हर चीज में मेरी सुनवाई हो जाएगी। देखिये अगर आपके पास परिवार है तो आपको समय देना पड़ेगा।” डॉ. शैली बताती हैं।

डॉक्टर के अलावा शिक्षक भी मानते हैं कि बच्चों के मोबाइल प्रेम के पीछे अभिभावक ही जिम्मेदार हैं। एक कान्वेंट स्कूल में शिक्षिका दिव्या अरोड़ा इस पर अपनी बेबाक राय रखती हैं, “बच्चों में मोबाइल की लत स्कूल ने नहीं डाली अभिभावकों ने डाली है। बच्चों को डायरी मिलती थी सब कुछ था, लेकिन पैरेंट्स उसे नजरअंदाज कर रहे। पहले स्कूल से वार्ता का जरिया एक ही था वो थी डायरी अब माता-पाता के पास उसके लिए समय ही नहीं है। बच्चे को कितना समय फोन पर देना है या नहीं देना है इससे पैरेंट्स को मतलब ही नहीं रह गया है। बच्चे को कुछ समझना होता है तो वो किताबें कम पढ़ते हैं गूगल की मदद ज्यादा लेते हैं।”

डॉ. अमित बताते हैं, “फोन में जब कोई बच्चा गेम खेलता है तो वह उसे खेलता जाता है क्योंकि उसमें वह स्टेप आगे बढ़ता जाता है जो कि उसके लिए रेवार्डिंग होता है यही धीरे-धीरे बच्चों को मोबाइल की लत का शिकार बना देती हैं। माँ-बाप का इसमें बहुत बड़ा रोल है जाने-अनजाने वो भी बच्चों को मोबाइल और टीवी के लिए प्रेरित करते हैं। आप घर में हैं जिस समय आपको बच्चों से बात करनी होती है आप फोन पर लगे रहते हैं।”

अब सवाल आता है बच्चों को बीमार कर रही इस समस्या से निपटा कैसे जाए?

“एक उदाहरण देती हूँ, जो मैंने पढ़ा है कि जो बिल गेट्स हैं जो कंप्यूटर में क्रांति लेकर आए। उन्होंने अपने बच्चों को फोन और कंप्यूटर दोनों से बचपन में दूर रखा। लेकिन ये चीजें हमें कहां समझ आती हैं। बच्चा मोबाइल फोन चला लेता है इस पर माता-पिता को खुश नहीं होना चाहिए। बल्कि उन्हें बच्चों को ज्यादा वक्त देना होगा, ताकि बच्चे को मोबाइल की जरुरत ही न पड़े। बच्चे को मोबाइल देकर उससे छुटकारा पाने की कोशिश न करें।’ डॉक्टर शैली सलाह देती हैं।


माता-पिता से बच्चों को समय देने की अपील के साथ ही वह चाहती है सरकार भी इस संबंध में कुछ गाइडलाइंस बनाए। “सिगरेट-पाना मसाला पर एक लाइन लिख कर आती है कि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है हमें लगता है ठीक वैसे ही मोबाइल के साथ भी अब एक वार्निंग लगी होनी चाहिए। बच्चे को सोने से आधा घंटे पहले टीवी या मोबाइल न देखने दें, वर्ना वही उसके सपने में आएगा। बच्चों की जितनी अच्छी नींद आएगी, उनके हार्मोन वैसे ही प्रक्रिया करेंगे और वैसे ही बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास होगा।” डॉक्टर शैली कहती हैं।

ऐसे दूर हो सकती है बच्चे के मोबाइल की लत

“ये सब रोकने के लिए हमें एक जागरूकता लानी पड़ेगी क्योंकि आज कल न्यूक्लियर फैमिली है। माता-पिता दो लोग ही होते हैं, तीसरा बच्चा जो कि फोन लेकर बैठा रहता है तो माता-पिता को भी बताना पड़ेगा कि कृपया एक दूसरे की मदद करें। जब माँ काम करे तो पिता बच्चे का ख्याल रखे उसे मोबाइल फोन देकर छुटकारा न पायें।” डॉ. शैली ने बताया।

“बच्चे को समय नहीं दे पाए तो उसे गैजेट दे दिया उसकी कोई चीज पूरी नहीं कर पाए तो उसे गैजेट दे दिया तो बच्चे को कहीं न कहीं ये लगने लगता है कि पॉवर अब हमारे हाथ में हैं आज हमें इस चीज के लिए गैजेट मिला है तो कल किसी दूसरी चीज के लिए कुछ और मिल जायेगा अब तो हर चीज में मेरी सुनवाई हो जाएगी। देखिये अगर आपके पास परिवार है तो आपको समय देना पड़ेगा।”, डॉ अमित कहते हैं।

डॉ अमित आगे बताते हैं कि अगर बच्चों को मोबाइल की लत से छुड़ाना है तो सबसे पहले उसके सामने फोन का प्रयोग बंद करना होगा क्योंकि बच्चे देख कर बहुत जल्दी सीखते हैं। आप अपने समय और प्यार को की जगह किसी गैजेट को देखा पीछा न छुड़ायें। अगर आपका बच्चा बहुत ज्यादा एडिक्ट हो गया है तो किसी मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक के पास जाकर सलाह लें।

डॉक्टरों की सलाह:

3 साल तक के बच्चे को किसी भी तरह की स्क्रीन टीवी-मोबाइल से दूर रखें।

बच्चे के साथ ज्यादा वक्त बिताएं ताकि उससे मोबाइल पर समय न बिताना पड़े।

मोबाइल लत के लक्षण- भूख कम लगना, चिड़चिड़पान, नींद का कम आना, झगड़ालू, किसी चीज में मन न लगना, गुस्सा आना।  

यह भी पढ़ें- मोबाइल और ऑनलाइन गेमिंग से हैं परेशान, तो आइये यहां

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