लखनऊ। सही जानकारी के साथ निरंतर योगभ्यास करने से कई बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है। पतंजली योग विज्ञान में नाड़ी शोधन, भस्त्रिका, उज्जायी, भ्रामरी, शीतली, शीतकारी, सूर्य भेदी, चन्द्र भेदी, प्राणायाम प्रमुख माने जाते हैं।
शरीर में प्राण (लाइफ फ़ोर्स) जीवनी शक्ति है, इस प्राण अथवा उर्जा को नियंत्रित करने की क्रिया को प्राणायाम कहते हैं। प्राणायाम से शरीर में उर्जा का विकास होता है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम के फायदे
नाड़ी शोधन प्राणायाम शरीर में स्थित 72 हजार नाड़ियाँ जो तीन मुख्य नाड़ियों (इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना) नाड़ी से निकलकर शरीर में प्राण (उर्जा) का संचार करती है, उन्हें स्वच्छ करने में मदद करता है। इससे रक्त वाहिनियाँ (BLOOD VESSELES) साफ़ होती हैं व शरीर में रक्त का संचार सामान्य होता है, यह रक्त में मौजूद विषाणुओं को खत्म करता है और फेफड़े (LUNGS), स्नायु (NERVE SYSTEM) तंत्र, श्वसन तंत्र को शक्तिशाली बनाता है। इसके नियमित अभ्यास से उच्च रक्तचाप, नींद न आना, माइग्रेन, तनाव, क्रोध, मानसिक विकार में लाभ होता है। इसके अभ्यास से धैर्य, मानसिक शांति, निर्णय लेने की क्षमता, एकाग्रता का विकास होता है। नाड़ी शोधन को प्राणायाम का राजा भी कहा जाता है। इसमें शरीर में प्राण का आधार इड़ा, पिंगला, और सुषुम्ना का मिलन होता है जिससे शरीर में दैवीय उर्जा का संचार होता है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम करने का तरीका …
नाड़ी शोधन प्राणायाम के चार स्वर (स्टेप) हैं। सबसे पहले जमीन पर चटाई या दरी बिछाकर पालथी मारकर बैठे और कमर की हड्डी (स्पाइनल कार्ड) को सीधा रखें। सिर सीधा रखें और दोनों हाथ घुटनों पर रखें। आँखे बंद करके मन को शांत करें।
पहले स्टेप में दाहिने हाथ की तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) और मध्यमा (मिडिल फिंगर) को दोनों भौहों के बीच में रखे और अंगूठे से दाहिना नासिका छिद्र बंद करें और बाए नासिका छिद्र से श्वास को खीचें (inhale) और उसी नासिका छिद्र से(exale) छोड़े, ये क्रम पांच बार करें। फिर मध्यमा ऊँगली से नाक के बाएं नासिका छिद्र को बंद करे और दायें नासिका छिद्र से श्वास खींचे और उसी से श्वास छोड़े ये क्रिया पांच बार करें। पांच बार के अभ्यास को एक चक्र कहते है शुरुआत में पांच से सात चक्र का अभ्यास करें।
दूसरे स्टेप में शरीर की स्थिति पहले के तरह ही रहेगी। तर्जनी और मध्यमा ऊँगली भौहों के मध्य मस्तक पर, अंगूठे से दाए नासिका छिद्र को बंद करें और बाएं नासिका छिद्र से श्वास लें, श्वास को रोकें और मध्यमा ऊँगली से बाएं नासिका छिद्र को बंद करें और दायें नासिका छिद्र से श्वास छोड़ें। फिर से मध्यमा ऊँगली से बाएं नासिका छिद्र को बंद करें और दायें नासिका छिद्र से श्वास ले और श्वास को रोके और बाए नासिका छिद्र से श्वास छोड़ें। यानी एक बार बाएं नासिका छिद्र से श्वास लेनी है और दायें से छोड़नी है औए फिर दायें नासिका छिद्र से श्वास लेना है और बाएं से छोड़ना है।
तीसरे स्टेप में एक से पांच तक गिनती करते हुए श्वास ले और और एक से पांच तक गिनती करते ध्यान मस्तक पर केन्द्रित करके श्वास रोके और एक से पांच तक गिनती करते हुए धीरे धीरे श्वाश को छोड़े। शुरूआती अभ्यास में यह क्रम 1:1:1 के अनुपात में होता है। इसका 11 चक्र अभ्यास करने के बाद शरीर की क्षमता के अनुसार यह अनुपात 1:2:2 किया जाता है।
चौथे स्टेप में पहले एक से पांच तक गिनती करते हुए श्वास लें, फिर पांच तक गिनते हुए श्वास रोके, उसके बाद पांच तक गिनती करते हुए श्वास छोड़े और फिर पांच तक गिनती करने के बाद पुनः श्वास लें। अभ्यास करने के कुछ समय बाद इस अनुपात को 1:4:2:2 किया जाता है। पांच तक गिनती करते हुए श्वास खींचे, बीस तक गिनती करते हुए श्वास को रोके और दस तक गिनती करते हुए श्वास को छोड़े और दस तक गिनती करने के बाद फिर से श्वास लें।
प्राणायाम करते समय रखी जाने वाली सावधानियां
ह्रदय, अस्थमा, ब्लड प्रेशर के रोगी नाड़ी शोधन प्राणायाम न करें।
प्राणायाम सुबह 6 बजे के पहले करें, प्राणायाम करने का स्थान साफ़ सुथरा होना चाहिए और प्राणायाम का अभ्यास चलते हुए पंखे के नीचे न करें। प्राणायाम नहाने के बाद ही करना चाहिए। शुरू में ये प्राणायाम सिर्फ 3 से पाच मिनट करें और बाद में प्राणायाम का अभ्यास धीरे धीरे बढ़ाते हुए 15 मिनट तक ले जाएं। अगर शाम को प्राणायाम करना चाहते है तो ये सुनिश्चित कर ले कि भोजन और प्राणायाम के बीच कम से कम चार घंटे का अंतर हो। प्राणायम किसी योग्य प्रशिक्षक की देख रेख या पूर्ण जानकारी के साथ ही करें।