अनियमित दिनचर्या और खानपान गलत तरीकों के कारण आज के दौर में बीमारियों का चलन बढ़ता जा रहा है। पेट निकलना, युवा उम्र में ही शारीरिक दुर्बलताओं का सामना करना, पेट से सम्बन्धित विभिन्न तरह के रोग, जिनके कारण शरीर तो बीमार होता ही है, इंसान मानसिक रूप से परेशान हो जाता है।
आज हम आपको महर्षि पतंजलि के योग दर्शन में वर्णित ‘उत्तानपाद आसन’ की जानकारी दें रहे हैं जो कई बीमारियों के साथ ही ‘नाभि का हटना’ (नाभिकंद) और हार्निया से सम्बंधित समस्याओं को दूर करता है।
कैसे करें उत्तानपाद आसन का अभ्यास
उत्तानपाद आसन के अभ्यास करने के लिए सबसे पहले जमीन पर चटाई या दरी बिछाएं और सीधे (SUPINE POSITION)में लेट जाएं।
अब श्वास भरते हुए बिना घुटनों को मोड़ें पैरों को 30 डिग्री के कोण तक उठाएं और जितनी देर इस स्थिति में रुक सकते हैं रुकें और फिर धीरे धीरे श्वास छोड़ते हुए पैरों को नीचे जमीन पर लाएं, पैर नीचे की तरफ लाते हुए ध्यान रखें कि पैर झटके के साथ नीचे न लाएं और न ही पैरों को झटके के साथ ऊपर ले जाएं।
पुनः श्वाश भरते हुए पैरों को 60 डिग्री कोण तक धीरे-धीरे ऊपर की तरफ उठाएं और जितनी देर रोक सकें रोकें, इसके बाद श्वास छोड़ते हुए पैरों को धीरे धीरे नीचे लाएं।
इस आसन का अभ्यास शुरूआती दिनों में सिर्फ पांच मिनट तक ही करें और धीरे धीरे अपने क्षमता के अनुसार अभ्यास बढ़ाएं।
जिन्हें ह्रदय से सम्बंधित या हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत है ऐसे लोग इस आसन का अभ्यास न करें। पीठ दर्द में इस आसन को धीरे धीरे करें और अगर स्लिप डिस्क से सम्बंधित दिक्कत है तो इस आसन का अभ्यास योग्य प्रशिक्षक की देख रेख में ही करें।
इस आसन को करने से गुस्से पर नियंत्रण होता है मन शांत रहता है व इसका प्रभाव गोनाड्स ग्रंथि पर पड़ने के कारण शुक्रवाहिनियां स्वस्थ होती हैं। इस आसन का प्रभाव के कारण एड्रिनल ग्रंथि से निकलने वाले स्त्राव रक्त में लवणों को सामान्य बनाये रखते हैं और शर्करा(SUGAR) के चय-अपचय को संतुलित रखता है। अध्यात्मिक शरीर में स्थित मणिपुर चक्र इसके अभ्यास से जागृत होता है।
आसनों से पहले की जाने वाली सूक्ष्म और यौगिक क्रियाओं के अभ्यास के बाद ही आसन का अभ्यास करें और आसन से पूर्व रखे जाने वाली सावधानियों का भी पालन करें।