भारतीय शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसके आधार पर इस बात का आकलन किया जा सकेगा कि जांघ की हड्डी का फ्रैक्चर सर्जरी के बाद किस प्रकार और किस सीमा तक ठीक हो सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) सिमुलेशन मॉडल पर आधारित यह तकनीक सर्जरी के बाद जाँघ की हड्डी के फ्रैक्चर में हो रहे सुधार का आकलन करने में उपयोगी हो सकती है। इसके साथ-साथ यह तकनीक सर्जन को फ्रैक्चर उपचार के लिए आवश्यक सर्जरी से पहले सही इम्प्लांट या तकनीक चुनने में भी मदद कर सकती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि विभिन्न फ्रैक्चर निर्धारण रणनीतियों के उपचार परिणामों का आकलन करने के लिए इस तकनीक का उपयोग हो सकता है। इससे रोगी के विशिष्ट शारीरिक गठन और फ्रैक्चर प्रकार के आधार पर इष्टतम रणनीति का चयन किया जा सकता है। यह अध्ययन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। यह अध्ययन, आर्थोपेडिक्स में सटीक और प्रभावी निर्णय लेने की दर में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिससे फ्रैक्चर रिकवरी से जुड़ी लागत और बीमारी का बोझ कम करने में मदद मिल सकती है।
विभिन्न उपचार विधियों के बाद फ्रैक्चर रिकवरी की प्रक्रिया को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने परिमित तत्व विश्लेषण, एआई टूल और फ़ज़ी लॉजिक के संयोजन का उपयोग किया है। इसके लिए विशिष्ट सिमुलेशन के साथ-साथ अस्थि-विकास मापदंडों का उपयोग किया गया है। फ्रैक्चर उपचार क्षमता की तुलना के लिए हड्डियों को स्थिरता प्रदान करने वाले स्क्रू आधारित तंत्र के प्रभाव की पड़ताल भी की गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि टूटी हड्डियों में सुधार के संबंध में एआई मॉडल के आकलन प्रयोगात्मक अवलोकन के अनुरूप पाये गए हैं, जो इसकी विश्वसनीयता को दर्शाते हैं।
आईआईटी गुवाहाटी के वक्तव्य में बताया गया है कि इस तरह के सटीक मॉडल का उपयोग उपचार के समय को कम कर सकता है, और उन रोगियों के लिए आर्थिक बोझ और दर्द को कम कर सकता है, जिन्हें जांघ के फ्रैक्चर के उपचार की आवश्यकता होती है। विभिन्न जैविक और रोगी-विशिष्ट मापदंडों के अलावा, यह एआई मॉडल; धूम्रपान और मधुमेह जैसे नैदानिक घटकों को भी आकलन प्रक्रिया में शामिल कर सकता है। यह तकनीक पशुओं में भी फ्रैक्चर के उपचार लिए अनुकूलित की जा सकती है।
आईआईटी गुवाहाटी के डिपार्टमेंट ऑफ बायोसाइंस में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सौप्तिक चंदा और उनके शोध छात्र प्रतीक नाग का यह अध्ययन शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित किया गया है। डॉ सौप्तिक चंदा बताते हैं कि “जटिल जैविक घटनाओं को समझने और उनका आकलन करने में एआई प्रभावी रूप से सक्षम है, और इसीलिए, स्वास्थ्य विज्ञान अनुप्रयोगों में यह तकनीक एक बड़ी भूमिका निभा सकती है।”
उम्रदराज लोगों की बढ़ती आबादी के साथ दुनियाभर में जाँघ की हड्डी और कूल्हे के फ्रैक्चर की घटनाएं बढ़ी हैं। अकेले भारत में हर साल अनुमानित दो लाख हिप फ्रैक्चर होते हैं, जिनमें से अधिकांश को अस्पताल में भर्ती होने और ट्रॉमा केयर की आवश्यकता होती है। फ्रैक्चर उपचार विधियों को सर्जन अपने अनुभव के आधार पर चुनते हैं। जबकि, चुनी गई उपचार पद्धति की प्रभावकारिता और सफलता के आकलन का कोई तरीका उपलब्ध नहीं है।
शोधकर्ताओं की योजना इस एल्गोरिदम के आधार पर एक सॉफ्टवेयर/ऐप विकसित करने की है, जिसका उपयोग अस्पतालों और अन्य स्वास्थ्य संस्थानों में उनके फ्रैक्चर उपचार प्रोटोकॉल के हिस्से के रूप में किया जा सकता है। पशुओं पर अध्ययन के जरिये मापदंडों में सुधार के लिए शोधकर्ता पूर्वोत्तर इंदिरा गांधी क्षेत्रीय स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान अस्पताल, शिलांग के डॉ. भास्कर बोरगोहेन एवं हड्डी रोग विशेषज्ञों की उनकी टीम के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। (इंडिया साइंस वायर)