ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग शुरू करने पर सरकार दे रही है पचास प्रतिशत अनुदान

'कृषि उत्पाद की क्वालिटी अच्छी और प्रामाणिक है तो अपना प्रोडक्ट विश्व के किसी भी देश में बेच सकते हैं' - डॉ एस.के. चौहान
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लखनऊ। आज देश में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का सेब बिक रहा है। कृषि उत्पाद की गुणवत्ता अगर अच्छी और प्रमाणिक है तो देश के किसान भी अपने कृषि उत्पाद विश्व के किसी भी देश में बेच सकते हैं। डिजिटल युग में आसानी से आज वैश्विक बाज़ार उपलब्ध है, गुड ऍग्रीकल्चर प्रैक्टिस अपनाकर देश के किसान इसका फायदा उठा सकते हैं।

ये कहना है आर.फ्रैंक, रीजनल फ़ूड रिसर्च एंड एनलायसिस सेण्टर के निदेशक डॉ.एस.के चौहान का, जिन्होंने गाँव कनेक्शन को दिए साक्षात्कार में किसानों, आम जनमानस के स्वास्थ्य, गाँव में कुटीर उद्योग बढ़ाने, आदि मुद्दे पर अपने विचार साझा किये।

साक्षात्कार के दौरान आर.फ्रैंक के बारे में जानकारी देते हुए डॉ.चौहान ने बताया कि आर.फ्रैंक उद्यान विभाग के अधीन एक संस्था है जिसके अध्यक्ष उद्यान विभाग के प्रमुख सचिव हैं। आर.फ्रैंक संस्था का काम मुख्य रूप से किसानों को उनकी उपज का अधिकतम मूल्य दिलाने के लिए कृषि उत्पादों का न्यूनतम शुल्क पर परीक्षण करके उन्हें क्वालिटी प्रमाण पत्र उपलब्ध करना है। साथ ही विभाग द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने, स्वयं सहायता समूह, ग्रामीण युवक/युवतियों को रोजगार से जोड़ने और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराने की दिशा में कार्य कर रहा है। इसमें हम लोग सभी खाद्य पदार्थो की जांच करते हैं कि इनमें मिलावट है या नहीं है, या बाजार में उपलब्ध खाद्य पदार्थ मानक के अनुरूप हैं या नहीं हैं। इससे उपभोक्ताओं को स्वस्थ खाद्य पदार्थ मिलने में मदद होती है।

किसान कैसे उठा सकते हैं फायदा?


किसान कैसे आर. फ्रैंक की सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं? प्रश्न के जवाब में डॉ.एस के चौहान बताते हैं कि “आज भी हमारे देश के लगभग सभी किसान अपने कृषि उत्पाद मंडी, बिचौलियों और कंपनी के माध्यम से बेचते हैं, जबकि अन्य देशों में किसान अपने उत्पाद की मार्केटिंग खुद भी कर पाते हैं। अभी आर. फ्रैंक में भी कृषि उत्पादों की टेस्टिंग में किसानों के  आने की संख्या बहुत कम है। कृषि उत्पादों की टेस्टिंग के लिए कृषि उत्पाद बेचने वाली कंपनियां, फर्म ही ज्यादातर आती हैं। यहां की क्वालिटी टेस्टिंग रिपोर्ट लेकर वैश्विक मानकों को पूरा करते हुए किसान अपने कृषि उत्पादों को न केवल स्थानीय बाजारों में बल्कि ग्लोबल मार्केट में भी अच्छी कीमतों पर बेच सकते हैं। कई बार किसान जानकारी न होने के चलते पेस्टिसाइड, इन्सेक्टिसाइड, एंटीबायोटिक्स का फसल पर मात्रा से अधिक छिड़काव कर देते हैं और टेस्टिंग में उनके सैम्पल फेल हो जाते हैं। हम इस दिशा में किसानों को जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं।

गाँव में कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार दे रही है पचास फीसदी अनुदान।

डॉ. चौहान कहते हैं कि “खान-पान के मामलों में अब गाँव और शहर लगभग एक जैसे हो गये हैं, जैसे शहर में लोग सुबह चाय, बिस्किट, बंद, जीरा, नमकीन, का उपयोग करते हैं वैसे ही गाँव में भी अब लोग करने लगे हैं। विभाग और सरकार की कोशिश है कि गाँव की ज़रुरत की चीज़ें अगर गाँव में ही बनें और वहीं कंज्यूम होती रहें तो कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे। इसके लिए उद्यान विभाग कुटीर उद्योग जैसे बेकरी, आटाचक्की, तेल निकालने की मशीन(स्पेलर यूनिट), सब्जी मसालों की यूनिट, चिप्स पापड़ की यूनिट जूस, बेकरी, जैम, जैली की यूनिट, आचार मुरब्बा बनाने की यूनिट आदि बहुत से उद्योगों को लगाने पर ग्रामीण उद्यमी को 50 फीसदी तक का अनुदान महात्मा गाँधी खाद्य प्रसंस्करण योजना के माध्यम से देता है। ये सभी उपयोग की वस्तुएं अभी शहर से गाँव जा रही हैं अगर ये गाँव में ही बनें और गाँव में ही उपयोग हों तो गाँवो से हो रहे पलायन को रोका जा सकता है।”

उद्यान विभाग नये उद्यमियों को देता है प्रशिक्षण…

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने के प्रश्न पर डॉ.चौहान बताते हैं कि “अभी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पिछले वर्ष जनवरी में महात्मा गांधी खाद्य प्रसंस्करण योजना शुरू की गई है। इसके अंतर्गत न्याय पंचायत स्तर पर 30-30 युवक/युवतियों के समूह बनाये जाते हैं, जो कम से कम हाईस्कूल पास हों उनका चयन इसमें किया जाता है और उन्हें तीन दिन का निशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है। जैसे एक साल में हमने पांच न्याय पंचायत कवर कीं तो डेढ़ सौ प्रशिक्षु हमारे संपर्क में होते हैं उनमें से हम उन अभ्यार्थियों का चयन करते हैं जो कोई उद्यम शुरू करना चाहता है। फिर उन अभ्यार्थियों को एक माह का गहन प्रशिक्षण एक निशुल्क जिला मुख्यालय पर दिया जाता है। इसके बाद उद्यम शुरू करने में विभाग उनकी मदद करता है।

रोज़गार परक कोर्स भी चलाया जा रहा है

जो छात्र/छात्राएं कॉलेज, विश्वविद्यालय से पढ़कर आते हैं उन्हें विभाग द्वारा उनकी कुशलता में वृद्धि के लिए प्रेक्टिकल ट्रेनिंग करवाई जाती है। यहां पर विद्यार्थियों को टेस्टिंग के बारें में, आईएसओ, क्वालिटी कंट्रोल, फ़ूड सेफ्टी, हाइजीन इकाइयों के ऑडिट के विषय में ट्रेन करने के साथ राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले ऍफ़एसएसआई लाइसेंस को कैसे प्राप्त किया जाता है उसके मानक क्या हैं, इन सब विषयों पर अलग-अलग कोर्सेज़ के माध्यम से बताया जाता है। विभाग द्वारा चलाए जा रहे इन कोर्सेज़ की अवधि एक माह से लाकर तीन माह तक होती है। अभी जो सत्र चल रहा हैं इसमें देहरादून, जयपुर, राजस्थान, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों के छात्र प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। इन छार्त्रो में बीएससी, बीटेक, एमएससी, एमटेक, बायोटेक्नॉलजी, कैमिस्ट्री, माइक्रोबायॉलजी, आदि विधाओं के छात्र/छात्राएं शामिल हैं।

खाद्य पदार्थों से सम्बन्धित उद्यम के लिए ऍफ़एसएसआई का लाइसेंस लेना ज़रूरी

जैसे स्ट्रीट फ़ूड वेंडर, होटल या इन उद्यमों के लिए भी ऍफ़एसएसआई का लाइसेंस लेना ज़रूरी है और कैसे इसे ले सकते हैं, इस प्रश्न के जवाब में डॉ.चौहान कहते हैं कि “खाद्य पदार्थ सम्बन्धित कोई भी उपक्रम वो बड़ा हो या छोटा लाइसेंस लेना नियमानुसार ज़रूरी होता है। इसमें दो प्रकार से लाइसेंस दिए जाते हैं अगर एक साल का का टर्नओवर 12 लाख से कम है तो सिर्फ ऍफ़एसएसआई में इसका पंजीकरण करवा लें। 12 लाख से ऊपर जिन संस्थाओ का टर्न ओवर है उन्हें लाइसेंस लेना पड़ता है। इसका पंजीकरण खाद्य एवं औषधि विभाग की वेबसाईट पर ऑनलाइन हो जाता है।

जानिये किन-किन चीज़ों में हो रही है मिलावट? ग्राहक स्वयं रहे जागरुक

खाद्य पदार्थों में मिलावट के प्रश्न पर डॉ चौहान बताते हैं, “जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में अरहर की दाल काफी खायी जाती है इसमें एक केसारी दाल है उसकी मिक्सिंग कर दी जाती है और लोग खाते समय जान नहीं पाते। केसारी दाल के ज्यादा उपयोग से कैंसर की बीमारी भी हो सकती है। आप अगर गौर करें तो बाजार में उपलब्ध मिलावटी अरहर की दाल में छोटे-छोटे दाने होते हैं और उनका रंग भी असली दाल से कुछ मिलता जुलता होता है, इस वजह से आम आदमी उसे पहचान नहीं पाता। इसी प्रकार दूध को गाढ़ा करने के लिए व्यापारी उसमें स्टार्च मिला देते हैं, आलू को मैश करके मिला देते हैं जो मावा बाजार में आता है उसमें भी यही मिलावट होती है। कई बार दुकानदार रबड़ी में क्लॉटिंग पेपर मिला देते हैं। जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। इससे बचने के लिए भी विभाग जागरुकता अभियान चला रहा है बाकी ग्राहक को स्वयं सतर्क रहना चाहिए कि वो दुकानदार से ये पूछे कि क्या उसका उत्पाद किसी लैब से टेस्टेड है या नहीं तब ही सामान खरीदे।

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