कन्नौज (उत्तर प्रदेश)। आलू के बाद अब गेहूं की फसल के लिए डीएपी की मांग बढ़ गई है। उर्वरक की उतनी किल्लत तो नहीं है लेकिन प्राइवेट दुकानदार उर्वरक की बोरियों के साथ किसानों को जबरन सल्फर व जिंक देकर रुपया कमा रहे हैं। साथ ही आधारकार्ड पर अधिक बोरियां खरीदने की गड़बड़ी कर रहे हैं। निर्धारित दामों से अधिक और अन्य शिकायतों के चलते जनपद में अब तक 12 दुकानदारों के लाइसेंस निलंबित किए जा चुके हैं। साथ ही कई को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा गया है।
कन्नौज के जिला कृषि अधिकारी आवेश सिंह बताते हैं, “जिन दुकानदारों ने नियमों का पालन नहीं किया या डीएपी और एनपीके की बोरियां बिक्री करने में मनमानी की, उनके खिलाफ कार्रवाई जरूर हुई है। 30 नवम्बर (मंगलवार) को ही नव्या ट्रैडर्स कन्नौज के खिलाफ शिकायत आई थी कि सल्फर व जिंक भी डीएपी व यूरिया आदि बोरियों के साथ जबरदस्ती देकर रुपए वसूल रहे हैं।”
अधिकारियों के मुताबिक कई जगहों पर गड़बड़ी की शिकायत मिली है। कहीं पर किसान के बिना खाद लिए उसके आधार कार्ड पर खाद दिखाई गई है तो कहीं खरीद से ज्यादा बोरियां दर्ज की गई हैं। कन्नौज के कृषि अधिकारी ने बताया, “जलालाबाद कस्बे में स्थित गुप्ता खाद एजेंसी पर एक किसान के आधारकार्ड से 50 बोरी यूरिया बिक्री कर दी गई, जबकि सम्बंधित किसान ने मना किया। इसको लेकर दोनों ही दुकानों का लाइसेंस निलंबित कर दिया गया है।’ इसी तरह छिबरामऊ में स्थित न्यू बालाजी बीज भंडार पीओएस मशीन और दुकान के स्टॉक में करीब 100 बोरी उर्वरक का अंतर मिला है। इसको लेकर नोटिस जारी किया गया है। साथ ही बिक्री पर फिलहाल प्रतिबंध लगा दिया है।’
कन्नौज को 26 हजार मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत
कृषि विभाग कार्यालय की माने तो रबी के सीजन में जनपद में 76583 हेक्टेयर में गेहूं की फसल होगी। इसके अलावा 50 हजार हेक्टेयर रकवे में आलू की फसल होती है। सरसों का रकवा भी नौ हजार हेक्टेयर से अधिक है। इन फसलों की बुवाई व गढ़ाई में डीएपी व एनपीके की जरूरत होती है। कृषि विभाग के मुताबिक जनपद में करीब 26 हजार मीट्रिक टन उर्वरक की जरुरत होती है। जबकि 30 नवंबर तक जबकि 14 हजार मीट्रिक टन डीएपी बिक्री हो चुकी है। 3000 मीट्रिक टन स्टॉक में है। दिसम्बर में गेहूं की फसल में भी इसकी जरूरत पड़ेगी।
जिला कृषि कार्यालय के मुताबिक कन्नौज में रबी फसल 2020-21 में 59671.26 मीट्रिक टन उर्वरक की बिक्री हुई थी। यह एक अक्तूबर 2020 से 31 मार्च 2021 तक का आंकड़ा है। इसमें डीएपी 25889.38 मीट्रिक टन, एनपीके 13600.30 मीट्रिक टन, एमओपी पोटाश 7723.18 मीट्रिक टन और एसएसपी सुपर 8193.93 मीट्रिक टन बिक्री हुई थी।
अक्टूबर से लेकर 15 नवंबर तक प्रदेश के कई जिलों में उर्वरक की भारी किल्लत रही। इस दौरान सरकार ने खाद की बिक्री को लेकर कई तरह के निर्देश जारी किए, जिसमें किसानों के लिए आधार कार्ड आधारित अनिवार्य बिक्री थी तो दुकानदारों पर नकेल कसी गई। सरकार के मुताबिक प्रदेश में पर्याप्त डीएपी, एनपीके थी, बावजूद इसके किसान परेशान रहे। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बैठकों के दौर और लगातार आपूर्ति से किल्लत को कम हो गई है लेकिन किसानों को शोषण जारी है।
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‘आलू की गढ़ाई (बुवाई) के दौरान डीएपी और एनपीके की मांग बढ़ जाती है। इस बार सितम्बर व अक्तूबर में बेमौसम बरसात की वजह से दो-तीन बार आलू की फसल बेकार हो गई, जिस वजह से हर बारिश के बाद उर्वरकों की मांग बढ़ गई।’ यह बात जिला कृषि अधिकारी कन्नौज आवेश सिंह ‘गांव कनेक्शन’ को बताते हैं।
दरअसल, यूपी का कन्नौज आलू की खेती का गढ़ माना जाता है। यहां पर मक्का व गेहूं की फसल भी खूब होती है, इसलिए यहां उर्वरकों की डिमांड भी बहुत है। जिला कृषि अधिकारी बताते हैं कि ‘खेतों की जुताई व फसल की बुवाई के दौरान किसानों को डीएपी की जरूरत पड़ती है। अब गेहूं का भी सीजन आ रहा है तो किसान पहले से ही डीएपी और एनपीके का इंतजाम कर रहे हैं।’
कन्नौज जिले के तिर्वा इलाके के गांव मझिला निवासी किसान उदयभान ने बताया कि साधन सहकारी समिति लिमिटेड इंदरगढ़ पर वह डीएपी लेने आए हैं। यहां करीब तीन-चार महीने बाद डीएपी आई है। इससे पहले धान के लिए बाजार से खरीदी थी। अब आलू व गेहूं के लिए जरूरत है।”
प्रशासनिक व विभागीय अफसर कहें कुछ भी, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। जिले की कुछ सहकारी समितियां ऐसी भी रहीं, जहां कई महीनों बाद उर्वरक पहुंचा। इस वजह से समितियों में भारी भीड़ जुटी रही। साधन सहकारी समितियों की अपेक्षा बाजार में 200 से 300 रुपए प्रति बोरी डीएपी की महंगी बिक्री की जाती है, इसलिए समितियों में किसान पहले पहुंचते हैं। सितम्बर से अक्तूबर के बीच तीन बार हुई मूसलाधार बेमौसम बरसात में सरसों, धान, आलू समेत कई फसलें बर्बाद हो गईं, जिससे डीएपी आदि उर्वरकों की किसानों को अगली फसल बुवाई के लिए बार-बार जरूरत पड़ रही है। इससे मांग भी बढ़ गई है।
करीब चार महीने बाद जब कन्नौज जिला मुख्यालय से करीब 28 किमी दूर साधन सहकारी समिति लि. इंदरगढ़ में 11 नवम्बर को डीएपी बांटी गई तो किसानों की भीड़ लग गई। दूर-दूर से किसान यहां पहुंचे। एक-एक बोरी के लिए मारामारी मच गई। समिति के बाहर साइकिल, बाइक इतनी खड़ी थीं कि स्टैंड जैसा नजारा हो गया।
मोहित कुमार जो इंदरगढ़ साधन सहकारी समिति लि. के सचिव हैं, बताते हैं, धान की फसल के दौरान उनकी समिति पर डीएपी नहीं आई थी। चार महीने बाद डीएपी आई है और बरसात में आलू आदि की फसल बर्बाद हो गई, इसलिए किसानों की भीड़ लग थी।
रैक न होने से देरी से मिलती खाद
जिले में रैक की व्यवस्था नहीं है। ज्यादातर उर्वरक फर्रुखाबाद से ही यहां आते हैं। उसी जिले में रैक के इंतजाम हैं। जिला कृषि अधिकारी आवेश सिंह का कहना है कि कभी-कभी मैनपुरी व कानपुर से भी उर्वरक आते हैं। जहां रैक होती है, वहां पहले उर्वरक बांटे जाते हैं, बाद में दूसरे जिलों का नंबर आता है। इस वजह से देरी हो जाती है।
अब यूरिया की बढ़ेगी खपत
अब यूरिया की जरूरत बढ़ रही जिला कृषि अधिकारी आवेश सिंह का कहना है कि विभाग अब यूरिया पर फोकस करने लगा है। आलू की फसल करीब एक महीने की हो गई है। किसान अब यूरिया डालेंगे। एक दिसम्बर से सात दिसम्बर तक 3700 मीट्रिक टन यूरिया का एलॉटमेंट हो गया है। कृभको की यूरिया समितियों को जाएगी। साथ ही कृभको श्याम प्राइवेट दुकानों पर भेजी जाएगी।