शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)। एमए पास दुर्गेश सिंह की नियुक्ति 2014 में साक्षर भारत मिशन के तहत शिक्षा प्रेरक के रुप में हुई थी, मानदेय 2000 रुपए महीना था। साल 2018 में संविदा पर उनका ये काम खत्म कर दिया। 31 मार्च 2018 को जब उत्तर प्रदेश में लाखों शिक्षा प्रेरकों की सेवाएं समाप्त की गईं। अकेले दुर्गेश का 40 महीने का मानदेय बाकी था।
39 साल के दुर्गेश सिंह अब उस दिन को कोसते हैं जब उनकी इसके लिए नियुक्ति हुई थी। सरकारी काम था इसलिए वो गांव से कहीं बाहर नहीं गए और बकाया मानदेय और संविदा की बहाली के इंतजार में उनकी उम्र ज्यादातर सरकारी नौकरियों की सीमा पर कर चुकी है।
दुर्गेश सिंह की तरह पूरे प्रदेश में 94360 प्रेरक तैनात थे, इनमें भारी संख्या में महिलाएं भी थीँ। अचानक मार्च 2018 में इनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। जिस वक्त सरकार ने इनकी सेवाएं समाप्त की, किसी प्रेरक को 30 महीने तो किसी को 40 महीने से मानदेय नहीं मिला था। कुल मिलाकर सरकारी आंकड़ों में 401 करोड़ का मानदेय बाकी है। जिसके लिए प्रेरक पिछले कई वर्षों से लगातर संघर्ष कर रहे थे।
उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के कसमंडा ब्लॉक के बम्हौरा गांव में तैनात रहे प्रेरक और प्रेरक संघ के जिला अध्यक्ष दुर्गेश सिंह कहते हैं, “साक्षर भारत मिशन के तहत हमारी नियक्ति हुई थी, लेकिन हमने स्वच्छ भारत मिशन, चुनाव में बीएलए से लेकर पल्स पोलियो अभियान में बढ़चढ़ कर काम किया। मार्च 2018 में हमारी सेवाएं अचानक समाप्त कर दी गईं। सरकार से हमारी अपील है कि हमारे बकाए के भुगतान के अलावा हमारी संविदा बहाल की जाए।”
सीतापुर जिले के ही एक और शिक्षा प्रेरक महोली ब्लॉक के राघवेंद्र सिंह कहते हैं, “प्रदेश के लगभग एक लाख शिक्षा प्रेरक जो निरक्षरों को साक्षर करने का काम कर रहे थे, सरकार ने हमें बिना कोई नोटिस दिए बाहर निकाल दिया। हम लोग बेहद कम मानदेय में काम कर रहे, मेरा अभी भी 32 माह का बकाया नहीं मिला है। प्रेरकों आर्थिक स्थिति बिगड़ने से वो भुखमरी के कगार पर पहुंच गये हैं।”
साल 2009 में अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग की तरफ से साक्षर भारत अभियान की शुरुआत की गई थी, केंद्र प्रायोजित इस कार्यक्रम के तहत प्रौढ शिक्षा और विशेष कर महिलाओं को बुनियादी शिक्षा देकर मजबूत बनाना था। इसी के तहत शिक्षा प्रेरकों की नियुक्ति पूरे देश में अलग-अलग चरणों में की गई थी।
लेकिन ये योजना शुरु होने के 9वें साल बंद हो और इससे जुड़े कई राज्यों के शिक्षा प्रेरकों की जिंदगी अंधेरे में आ गईं। इनमें से 94 हजार से ज्यादा प्रेरक अकेले उत्तर प्रदेश के हैं। प्रेरकों के बकाए और संविदा बहाली को लेकर कई दौर का विरोध प्रदेश हो चुका है। मुख्यमंत्री तक से बैठक हो चुकी है लेकिन समस्या हल नहीं हो पाई।
उत्तर प्रदेश में साक्षरता वैकल्पिक शिक्षा उर्दू एवं प्रच्य भाषाएं, लखनऊ के उप निदेशक शंभूभान सिंह के अनुसार 401. 25 करोड़ रुपये की धनराशि मानदेय के रूप में बकाया है।
सरकारी आंकड़ों में शिक्षा प्रेरकों के 401 करोड़ से ज्यादा हैं बाकी
शंभूभान सिंह गांव कनेक्शन को बताते हैं, “2009-10 में अलग-अलग चरणों में साक्षर भारत मिशन के तहत सभी जिलों में योजना शुरु की गई। जो 31 मार्च 2018 को बंद कर दी गई। इसमें 60 प्रतिशत केंद्र को देना होता था और 40 फीसदी राज्य सरकार को। लेकिन अलग-अलग वर्षों में हमें मांग के अनुसार राशि नहीं मिलने से शिक्षा प्रेरकों की इकट्ठा देनदारी बन गई। हम लोग भुगतान का प्रयास कर रहे हैं।”
उन्होंने आगे बताया कि 8 दिसंबर 2021 को लखनऊ में टेंडर समिति की बैठक है, इसके बाद आडिट का काम होगा जिसके बाद रिपोर्ट केंद्र को भेजी जाएगी। जैसे ही भारत सरकार से पैसा मिल जायेगा इनका भुगतान कर दिया जाएगा।
संविदा बहाली या फिर समायोज के सवाल पर शंभूभान सिंह ने कहा, “यह एक निश्चित समयावधि की योजना थी इसलिए संविदा समाप्त होने के बाद कार्य की कोई आवश्यकता नहीं रह गई।”
चुनावी महौल में शिक्षा प्रेरकों ने भरी हुंकार
राज्य सरकार मानदेय बकाए के लिए अप्रत्यक्ष रुप से केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है लेकिन प्रेरक राज्य सरकार से भी जवाब चाहते हैं।
ममता देवी फतेहपुर जिले के ब्लॉक एरायां की प्रेरक संगठन की अध्यक्ष हैं। लगातार संघर्ष और बकाए का भुगतान न होने से उनका धैर्य जवाब दे चुका है।
सरकार को चेतावनी देते हुए वो कहती हैं, ” सरकार को प्रेरकों के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार नहीं करना चाहिए। अगर हमारी बात नहीं सुनी गई तो हम आने वाले चुनाव (विधानसभा चुनाव 2022) में सरकार का जोर-शोर से विरोध करेंगे। सरकार से निवेदन है कि वह हमारी मांगे मानते हुए हमें समायोजित करे।”
शिक्षा प्रेरकों के बकाए का मुद्दा 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 में भी उठा था लेकिन उस वक्त आवाज़ इतनी बुलंद नहीं थी।
2016 में कौशल किशोर ने अधिकार दिलाओ रैली कर मांगा था समर्थन किए थे कई वादे
शिक्षा प्रेरकों की मांगों को लेकर लखनऊ में मोहनलालगंज भाजपा तत्कालीन सांसद और अब केंद्रीय राज्य मंत्री कौशल किशोर ने 2016 में अधिकार दिलाओ रैली कराते हुए शिक्षा प्रेरकों के हित में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लेकर समर्थन मागा था। इस रैली में और विभागों से जुड़े दूसरे संविदा कर्मियों को भी अधिकार दिलाने की बात कही गई थी। 2017 भाजपा की प्रचंड बहुमत से सरकार बनी लेकिन प्रेरकों को उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब भुगतान तो हुआ नहीं 2018 उनकी सेवाएं पूरी तरह समाप्त हो गईं। कौशल किशोर समय-समय पर मुद्दे पर कई बार अपनी बात रखते रहे लेकिन शिक्षा प्रेरकों को बकाया भुगतान नहीं दिला पाए।
दुर्गेश सिंह के मुताबिक शिक्षा प्रेरक दो बार केंद्रीय शिक्षा मंत्री और एक बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात कर चुके हैं लेकिन कोई समाधान नहीं निकला है।
विपक्ष ने शिक्षा प्रेरकों के बकाया को बनाया मुद्दा
शिक्षा प्रेरकों के मुद्दे पर विपक्ष अब सरकार को लगातार घेर रहा है। प्रेरक शिक्षकों के नेता बीजेपी के अलावा, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेताओं से भी लगातार गुहार लगा रहे हैं।
कांग्रेस के उत्तर प्रदेश प्रवक्ता सुधांशु बाजपेई कहते हैं, “अगर कांग्रेस सरकार उत्तर प्रदेश में आती है तो इन्हें फिर से सेवा में लिया जाएगा और इन्हें राज्य कर्मचारी घोषित किया जाएगा। साथ ही इनका बकाया मानदेय भी दिया जाएगा। भाजपा ने हमेशा लोगों के साथ धोखा किया है।” उन्होंने बिना नाम लिए केंद्रीय राज्य मंत्री कौशल किशोर पर प्रेरकों को धोखा देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “शिक्षा प्रेरकों का बजट समाप्त कर दिया गया उनकी नौकरी चली गई और उनका बकाया भी नहीं दिया जा रहा है।”
प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल और दोबारा सत्ता में आने के लिए जोर लगा रही समाजवादी पार्टी भी शिक्षा प्रेरकों के मुद्दे पर सरकार को घेर रही है। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता मनोज सिंह काका कहते हैं, “जो सरकार अपने विज्ञापन पर करोड़ों करोड़ खर्च करती है वह शिक्षा प्रेरकों का वेतन तक नहीं दे पा रही है। अगर सरकार बनती है तो जिन लोगों ने भी सरकारी सेवाएं दी है उनका मानदेय उन्हें दिलाया जाएगा। अखिलेश यादव हमेशा पीड़ितों की सुनते हैं।”
आर्थिक संकट से जूझ रहे शिक्षा प्रेरक
सरकार के वादों, संविदा की तकनीकी शर्तों, केंद्र और राज्य की इस मामले में रस्साकसी से दूर लाखों प्रेरकों को अपने बकाए, भविष्य की चिंता है।
अयोध्या जिले की मया बाजार ब्लॉक की शशि विश्वकर्मा कहती हैं, “हम शिक्षा प्रेरक मात्र दो हजार रूपए में काम करते थे। हमने सरकारी काम कराए लेकिन इसके बाद भी हमारी संविदा भी समाप्त कर दी है। हम मुख्यमंत्री से अपनी संविदा बहाली की मांग करते हैं।
आदर्श साक्षरता कर्मी वेलफेयर एसोसिएशन फहतपुर के जिलाध्यक्ष शशिकांत यादव ने पिछले दिनों ही जिलाधिकारी के माध्यम से बेसिक शिक्षा मंत्री उत्तर प्रदेश को एक ज्ञापन दिया था। उनके मुताबिक जब सिर्फ 2014 तक ही शिक्षा प्रेरकों का वेतन दिया गया। वो भी तय समय पर नहीं, कभी दो महीने का आया तो कभी तीन महीने का तो कभी महीनों तक नहीं आया।
मार्च 2018 में संविदा समाप्त होने के बाद शाहजहांपुर जनपद की कटरा ब्लॉक में तैनात एक शिक्षा प्रेरक सुहानी अपने दर्द को बताते हुए कहती हैं, “मुझे याद है मैं बारिश में अपने एक बच्चे को गोदी में लिए कीचड़ से होते हुए स्कूल जाती थी। लेकिन हम प्रेरकों के साथ बहुत बुरा हुआ। हमसे कई माह बिना मानदेय के काम कराया गया। हम सभी अपने पास से पैसे खर्च करके सरकारी काम में मदद करते थे।”