ललितपुर/झांसी (बुंदेलखंड)। बुंदेलखंड में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने दालों और तिलहनी फसलों की खेती करने वाले किसानों की कमर तोड़ दी है। पहले 3-4 दिन रुक-रुक कर हुई बारिश फिर शनिवार की रात और रविवार को हुई बारिश ने बांदा, ललितपुर, झांसी समेत कई इलाकों में तबाही ला दी। मटर, मसूर, चना और सरसों की फसलें खेतों में बिछ गईं।
“मटर के पौधों के दस-दस बारह-बारह टुकड़े हुए हैं। खेत में खड़ी मटर मिट्टी में मिलकर खत्म हो चुकी हैं। ओलावृष्टि ने किसानों को बर्बाद कर दिया।” ललितपुर जिले से पूर्व दिशा में 18 किमी दूर खितवाँस गांव में ओलावृष्टि से बर्बाद मटर के खेत से मटर के टूटे ड़ंठल दिखाते मुकेश कटारे (45 वर्ष) कहते हैं।
6 जनवरी से देश के कई राज्यों में जारी बारिश, ओलावृष्टि के चलते दलहनी, तिलहनी और और सब्जी वर्गीय फसलों को भारी नुकसान हुआ है। उत्तर प्रदेश में आगरा बेल्ट में सरसों और आलू का भारी नुकसान हुआ है तो बुंदेलखंड रीजन में बांदा, ललितपुर, हमीरपुर, जालौन मटर, चना मसूर के साथ सरसों को भारी नुकसान हुआ है। बांदा, झांसी और ललितपुर के कुछ ब्लॉक में किसानों के मुताबिक मटर और चना की 70 से 80 फीसदी फसलें चौपट हुई हैं।
ललितपुर में एक दिन में 10000 फीसदी ज्यादा बारिश
मौसम विभाग के मुताबिक सिर्फ 8 जनवरी को ही ललितपुर में सामान्य से 10000 फीसदी ज्यादा बारिश हुई थी। आईएमडी के आंकड़ों के मुताबिक 8 जनवरी को ललितपुर में 0.1 मिली के मुकाबले 14 मिलीमीटर बारिश हुई जो सामान्य से 10000 फीसदी है ज्यादा है। बुंदेलखंड के और प्रमुख जिले जहां मौसम ने तबाही मचाई, झांसी में 8 जनवरी को सामान्य से लगभग 5000 फीसदी ज्यादा बारिश हुई। यहां 0.6 मिलीटीटर के मुकाबले 29.8 मिलीटीटर बारिश हुई जो सामान्य से 4872 फीसदी ज्यादा है। बारिश का असर लगभग पूरे राज्य में देखने को मिला है। पूरे उत्तर प्रदेश की बात करें तो यूपी देश के उन 15 राज्यों में शामिल है जहां 1-7 जनवरी के बीच सामान्य के 2.0 मिलीमीटर के मुकाबले 8.2 मिलीमीटल बारिश हुई जो 312 फीसदी ज्यादा है।
मौसम विभाग के मुताबिक पश्चिमी विक्षोभ और अरब सागर से आने वाली नमी और कई मौसम प्राणालियों के सक्रिय होने से मौसम बदला है। मौसम विभाग ने पहले 6 से 10 के लिए पूर्वानुमान जारी किया था लेकिन बाद में अगले तीन दिन और मौसम बारिश, ओलावृष्टि गरज की आशंका जताई।
बुंदेलखंड में तबाही की बारिश, जैसे तैसे बोई भी फसल
बुंदेलखंड के किसानों के लिए ये अतिवृष्टि किसानों के तबाही वाली है, क्योंकि रबी सीजन से पहले वो खरीफ के सीजन में मौसम की मार से अपनी उड़द की फसल खो चुके थे। इसके अलावा रबी की बुवाई के दौरान किसानों को भीषण खाद संकट का सामना करना पड़ा था।
“केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) के कर्ज का पैसा उड़द की फसल में लगाया था वह भी बर्बाद हो चुकी थी। चार-चार दिन लाईनों में लगकर यूरिया-डीएपी ब्लैक (कालाबाजारी) में खरीद कर बुबाई कर पाये थे पैसा नहीं था, तीन रूपया सैकड़ा पर साहूकार से 60 हजार रुपए की रकम उठाकर मटर की लागत में लगाई। फसल में फल-फूल की दवा डाली! उम्मीद थी कि अच्छी फसल होगी लेकिन ओलावृष्टि से सब बर्बाद कर दिया।” ललितपुर के किसान अपनी व्यथा बताते-बताते रुआसे हो जाते हैँ।
मुकेश कटारे के मुताबिक हमारे लोगों के पास कुछ बचा नहीं है। जैसा हमारा खेत हुआ है वैसे ही दूसरे किसानों का है। सरकार अब जल्द मुआवजे और कर्ज़माफी का काम करने वर्ना सब बर्बाद हो जाएगा।
किसी ने लिया था कर्ज़, किसी ने ब्लैक में डीएपी-यूरिया लेकर की थी बुवाई
ललितपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर, झांसी जिले के मऊरानीपुर ब्लॉक में भी मौसम ने मार किसानों पर पड़ी है। झांसी में भटपुरा गांव के किसान विजय बहादुर शर्मा के खेत में करीब 1 फीट से ज्यादा पानी भरा है। उनकी मटर पानी में तैरती नजर आई। वो कहते हैं, “12 एकड़ में मटर बोई थी, पूरे में पानी भर गया है। फसल बचने की उम्मीद बहुत कम है।”
भटपुरा के पड़ोसी गांव के किसान नरेंद्र (35 वर्ष) बताते हैं, “बारिश तो रुक-रुक कर 3-4 दिन से हो रही थी लेकिन पिछले 36 घंटे (शनिवार और रविवार को मिलाकर) इतनी बारिश हुई कि खेत तबाह हो गए। अब इसमें कुछ बचने वाला नहीं है।”
झांसी में ही श्योराली कोटरा गांव के किसान घनेंद्र मिश्रा के तीन भाइयों के पास 24 एकड़ जमीन है, जिसमें चना, मटर, लाहा (सरसों) और गेहूं बोया था। घनेंद्र बताते हैं, “भइया 75 फीसदी से ज्यादा फसल बर्बाद हो गई है। मटर ज्यादा बोई थी वो कुछ नहीं बची। गेहूं में नुकसान कम है। आप सोचिए 400 रुपए बोरी यूरिया और 1500 रुपए बोरी डीएपी लेकर किसी तरह फसल बोई थी, अब वो भी नहीं होगी।”
प्लाट टू प्लाट सर्वे कराकर मुआवजे की मांग
झांसी के किसान नेता और किसान कांग्रेस से जुड़े शिवशंकर सिंह परिवार गांव कनेक्शन को बताते हैं, “मैंने 10-12 गांवों का दौरा किया है। हर जगह फसल बर्बाद मिली है। किसान कह कह रहे हैं जो फसलें अभी हरी दिख भी रही है वो 3-4 दिन में धूप निकलते ही पीली पड़कर सूख जाएंगी। इसी भटपुरा के आसपास ही 200-300 एकड़ में 80-90 फीसदी का नुकसान है।” मऊरानीपुर में उपजिलाधिकारी को मुख्य सचिव, यूपी सरकार के नाम सौंपे ज्ञापन में परिहार ने किसानों को प्लाट टू प्लाट सर्वे करवाकर तुरंत मुआवजा देने की मांग की है।
शनिवार रात और रविवार की बारिश ने बुंदेलखंड में भारी नुकसान पहुंचाया है। झांसी, ललितपुर, बांदा, छतरपुर समेत कई जिलों में ओलावृष्टि से सरसों, चना, मसूर, मटर की फसलें तबाह हुई हैं
वीडियो: ग्राम पिष्टा, ब्लॉक बबेरू, जनपद बांदाविस्तृत खबर जल्द
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देश में 652.16 लाख हेक्टेयर में रबी फसलों की बुवाई
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में संयुक्त सचिव शुभा ठाकुर के मुताबिक देश में रबी सीजन 2021-22 में 652.16 लाख हेक्टेयर में रबी फसलों की बुवाई हुई है। केंद्रीय अधिकारी ने ट्वीटर पर लिखा, 7 जनवरी तक देश भर से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 652.16 लाख हेक्टेयर में कुल फसलों की बुवाई हुई है जो पिछले साल के 646.23 लाख हेक्टेयर से 5.94 लाख हेक्टेयर ज्यादा है।
ललितपुर जिले की बात करें तो अक्टूबर 2022 माह में जारी हुऐ कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार,”306896 हेक्टेयर में बुवाई का लक्ष्य रखा गया। जिसमें सर्व अधिक 172384 हेक्टेयर में गेहूं और 75,122 हेक्टेयर में मटर की बुवाई, 10,114 हेक्टेयर में जौ की बुबाई, चना की बुवाई 19,585 हेक्टेयर, 23496 हेक्टेयर क्षेत्रफल में मसूर, 5,883 हेक्टेयर में सरसों और 172 हेक्टेयर में तोरिया की बुवाई, 135 हेक्टेयर के क्षेत्र में अलसी बोये जाने का लक्ष्य हैं। हालांकि 2021 में 17-19 अक्टूबर हुई बारिश के बाद खेतों में नमी होने से किसानों की एक बड़ी आबादी ने दलहनी फसलों का रुख किया था। जिन फसलों को इस बारिश ने भारी नुकसान पहुंचाया है।
ललितपुर जिले के पाली, बार, नाराहट, महरौनी क्षेत्रों के करीब आधा सैकड़ा से ज्यादा गाँवों के किसानों की ओलावृष्टि से दलहनी फसलें बर्बाद हुई हैं। खितवाँव, चड़रऊ, अण्डेला, मिर्चवारा, टेनगा, भोरदा तौर टपरियन के ग्राम प्रधान कमलेश कुमार झां बताते हैं, “किसानों पर केसीसी के कर्ज का पैसा पहले खरीफ में लगा चुके हैं। रबी सीजन में किसानों ने साहूकारों से ब्याज पर पैसा लेकर खेती में लगाया ओलावृष्टि से फसले चौपट हो चुकी हैं कर्ज कैसे चुकेगा किसानों को चिंता सताने लगी हैं।”
“नेता वोट मांगने आते हैं, किसानों को देखने नहीं”
खितवाँव गांव के भूपेंद्र राजा (32 वर्ष) कहते हैं, “चुनावी मौसम है नेताओं को वोट मांगने की पड़ी है। किसानों के दर्द से कोई मतलब नहीं हैं ओलावृष्टि से किसान मर रहा हैं नेताओं को किसानों की चिंता नहीं हैं, किसानों के पास कोई नेता नहीं आया।”
फसलों की बर्बादी से किसानों के घरों में मातम सा पसरा हुआ है। किसानों को चिंता है, कर्ज़ कैसे चुकाएंगे, बच्चे कैसे पालेंगे।
लतितपुर की आदिवासी महिला किसान अंगूरी सहरिया (45वर्ष) के खेतों में मटर की हरियाली की जगह सिर्फ डंटल दिखाई देते हैं। उदासी भरे शब्दों में वो सवाल करती हैं, “बर्फ गिरने से मटर की फसल नष्ट हो गई। अब हम अपने बच्चे कैसे पालेंगे, कर्जा कैसे देंगे?”