सीतापुर/बाराबंकी/लखीमपुर खीरी। रजनी देवी ‘प्लेटलेट्स’ शब्द का ज़िक्र होने से ही सदमे में आ गईं। उनकी 17 साल की बेटी गोल्डी की अभी दो हफ्ते पहले ही मलेरिया से मौत हो गई थी।
“मुझे नहीं पता कि यह क्या होता है। यह खून के अंदर वाली कुछ चीज है। मेरी बेटी को बुखार था और उसकी प्लेटलेट्स कम थीं… हमने उसे बचाने के लिए बहुत पैसा खर्च किया, लेकिन हम कुछ नहीं कर सके।” उत्तर प्रदेश के सीतापुर के सिल्हापुर गाँव में रहने वाली रजनी ने गाँव कनेक्शन को बताया। 42 साल की रजनी का दुख उन्हें अपनी बेटी के बारे में बात करने से नहीं रोक पा रहा था।
रजनी देवी ने अपने आँसू पोंछते हुए बताया, “बुखार होने पर हम उसे शहर के एक प्राइवेट अस्पताल में ले गए लेकिन डॉक्टरों ने कुछ दिनों के बाद उसे घर भेज दिया। उस रात, उसने कुछ खाना खाया लेकिन फिर उसकी मौत हो गई। ”
उनकी किशोर बेटी की ब्लड टेस्ट रिपोर्ट में मलेरिया निकला था। इस रिपोर्ट की एक प्रति गाँव कनेक्शन के पास है।
गोल्डी की मौत 26 सितंबर को सीतापुर के एक गाँव में हुई थी। वह उत्तर प्रदेश के उन सैकड़ों लोगों में से एक हैं, जो बुखार और मलेरिया या डेंगू जैसी मच्छर जनित बीमारियों की चपेट में आ गए। दावा किया जा रहा है कि पिछले महीने सितंबर में भारी बारिश के चलते जलजमाव हो गया और इसी कारण मच्छर जनित बीमारियों में वृद्धि हुई है।
लगभग दो हज़ार की आबादी वाले सिल्हापुर के लगभग हर घर में एक सदस्य बुखार से तप रहा है। 4 अक्टूबर को जब गाँव कनेक्शन ने गाँव का दौरा किया तो कई इलाकों में जलभराव था। यह आरोप लगाया जा रहा है कि साफ-सफाई न होने की वजह से मच्छर जनित बीमारियाँ तेज़ी से फैल रही हैं।
मृतक गोल्डी के घर से कुछ मीटर की दूरी पर रहने वाली 18 साल की श्यामपति की भी एक सप्ताह के बाद मौत हो गई। उसके परिवार ने कहा कि उसकी मौत ‘बुखार’ से हुई थी।
गोल्डी और श्यामपति के गाँव से लगभग 18 किलोमीटर दूर जमुनहा गाँव है। वहाँ गुड़िया भार्गव रहती हैं। उन्होंने भी अपने 18 साल के बेटे को ‘बुखार’ के कारण खो दिया।
उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरा बेटा सुरजीत 11वीं कक्षा में पढ़ता था। उसे दो दिनों तक बुखार रहा और रक्षाबंधन के एक दिन बाद (1 सितंबर) को उसकी मौत हो गई। दो महीने हो गए हैं और हमारे सात लोगों के परिवार में कोई न कोई हमेशा बुखार से पीड़ित रहता है।” वह अपने बेटे की मेडिकल रिपोर्ट नहीं दिखा सकीं। उन्होंने कहा कि बेटे की मौत के बाद उसकी रिपोर्ट नहीं मिल रही है। शायद कहीं खो गई है।
जमुनहा गाँव की एक अन्य निवासी सीता देवी ने कहा कि उनके पति सियाराम को बुखार था। उन्हें ठंड से बुखार चढ़ता था और उनकी मौत हो गई। वहीं पास ही में 35 साल के सुनील राजवंशी भी रहते हैं। उनके परिवार में छह सदस्य हैं। राजवंशी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे बड़े बेटे निश्चल और मुझे छोड़कर, मेरे परिवार में बाकी सभी को बुखार हो गया है। हमने टेस्ट कराया था और हमे मलेरिया निकला।”
इस बीच, जमुनहा गाँव की आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) किरण लता ने कहा कि वह लोगों से बुखार का इलाज कराने के लिए बार-बार कह रही हैं। लेकिन कभी-कभी, लोग अपना बुखार छिपाते हैं। जब भी हमें किसी मरीज के बारे में पता चलता है तो हम उसे अस्पताल पहुँचाने की पूरी कोशिश करते हैं।”
बुखार के बढ़ते मामलों से जिला प्रशासन अनजान नहीं है। सीतापुर में चिकित्सा प्रशासन के प्रमुख हरपाल सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हम जानते हैं कि जिले में मलेरिया फैल रहा है। हर साल मानसून के बाद के मौसम में इसके मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। दिवाली (12 नवंबर) के बाद स्थिति बेहतर हो जाएगी।”
उन्होंने आगे कहा, “हम स्थिति पर नज़र रख रहे हैं और जागरूकता अभियान चला रहे हैं। एंटी-लार्वा स्प्रे फ्यूमिगेशन भी किया जा रहा है।”
हरपाल सिंह ने बताया कि 9 अक्टूबर तक जिले में मलेरिया के 418 एक्टिव केस थे।
सीतापुर से 100 किलोमीटर से अधिक दूर, पड़ोसी जिले बाराबंकी के डॉक्टरों ने गाँव कनेक्शन को बताया कि मलेरिया और डेंगू के लक्षणों वाले रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई है।
बाराबंकी के बेलहारा शहर के एक सामान्य चिकित्सक मोहम्मद अकरम ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे पास इलाज के लिए आने वाले नब्बे फीसदी मरीज़ बुखार की शिकायत कर रहे हैं। बुखार के कारण हीमोग्लोबिन कम हो रहा है और लीवर प्रभावित हो रहा है। सितंबर से अबतक, मेरे क्लिनिक में मरीजों की संख्या रोज़ाना 25 से बढ़कर लगभग 80 प्रति दिन हो गई है,।”
उन्होंने कहा, “मरीज़ों की बढ़ती संख्या से निपटना मुश्किल हो रहा है। फार्मेसियों को भी इस तरह की भीड़ को संभालने में कठिनाई हो रही है।”
बाराबंकी जिले के रिचली गाँव के निवासी राम दुलारू ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे बेटे को पिछले दस दिनों से खाँसी और छींक आ रही है, जबकि मेरी बेटी को तेज़ बुखार है। मुझे दवाएँ लेने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जाने के लिए छह किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। मेरे घर पर दवाएँ लाने के लिए कोई नहीं है।”
मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक, बाराबंकी जिले के नौ ब्लॉकों में 451 मरीजों की रैंडम स्क्रीनिंग में 109 को बुखार मिला। 5 अक्टूबर को, एक मरीज़ को मलेरिया, चार को डेंगू और तीन को स्क्रब टाइफस था (घुन के कारण होता है)।
7 अक्टूबर को जारी एक प्रेस बयान में बाराबंकी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी अवधेश यादव ने कहा कि जिले के ग्रामीणों को मच्छरदानी, दवाएँ और स्वास्थ्य किट दी जा रही हैं।
लखीमपुर खीरी जिले से भी बुखार की खबरें आ रही हैं। लखीमपुर खीरी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी संतोष गुप्ता ने गाँव कनेक्शन को बताया कि जिले में मलेरिया के 257 सक्रिय मामले हैं लेकिन रिकॉर्ड पर कोई मौत नहीं हुई है।
लखीमपुर जिले के पाल्हापुर गाँव के 22 वर्षीय निवासी रामनिवास ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमारे गाँव में हर घर का कोई न कोई सदस्य बुखार से पीड़ित है। मेरी माँ को मलेरिया हो गया था। उनकी हालत गंभीर थी, इसलिए हमने उसका इलाज एक प्राइवेट अस्पताल में कराया और हमें बहुत पैसा खर्च करना पड़ा। ”
उन्होंने आरोप लगाया कि खीरी में उनके गाँव में किसी भी स्वास्थ्य टीम ने दौरा नहीं किया है और न ही कोई फ्यूमिगेशन किया गया है।
पाल्हापुर गाँव में रहने वाले 50 साल के सुमन हिंदूनगर ने बताया कि पिछले एक महीने से पूरा गाँव बुखार की चपेट में है। उन्होंने कहा, “मरीज़ों को शरीर में दर्द, ठंड लगना और कमज़ोरी होती है।”
साठ वर्षीय बेचलाल उसी गाँव में रहते हैं। बेचलाल ने कहा, “मेरे भाई कामता प्रसाद की बुखार के बाद मौत हो गई। हालाँकि वह भी मेरी तरह बूढ़ा था, लेकिन निश्चित रूप से मरने का हक़दार नहीं था।” उन्होंने यह भी बताया कि मच्छरों से बचने के लिए परिवार नियमित रूप से नीम की पत्तियाँ और गोबर के उपले जलाता है।
लखीमपुर खीरी में ग्रामीणों ने शिकायत की कि खुली नालियाँ और जमा हुआ पानी बड़ी चिंता का विषय है। लखीमपुर खीरी के मितौली ब्लॉक के सुखवा गाँव के एक ग्रामीण शशि ने कहा, “मुझे तेज़ बुखार हो गया है। यह मच्छरों के कारण फैल रहा है। गाँव में नालियाँ खुली हैं जो मच्छरों के प्रजनन का कारण बन रही हैं।”