लखनऊ। देश में माल्ट से तैयार बीयर और व्हिस्की की मांग विश्व बाजार में तेजी से बढ़ रही है। भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा मादक पेय बाजार है। देश में सालाना 240 से लेकर 250 हजार मीट्रिक टन माल्ट जौ की हर साल आवश्यकता है, लेकिन उस अनुपात में माल्ट जौ का उत्पादन देश में नहीं हो पा रहा है। ऐसे में मैक्सिको, डेनमार्क और अर्जेन्टीना के सहयोग से देश में माल्ट जौ की खेती को बढ़ावा देने के लिए शुरुआत की गई है।
उत्पादन का मात्र 25 प्रतिशत माल्ट जौ
भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान करनाल, हरियाणा के कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरके शर्मा बताते हैं, “देश में जितने जौ का उत्पादन हो रहा है, उसमें से मात्र 25 प्रतिशत ही माल्ट जौ है, ऐसे में इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए कई प्रजातियों को विकसित किया गया है।”
इस तरह हो रहा है उपयोग
डॉ. शर्मा आगे बताते हैं, “माल्ट जौ से लगभग 60 प्रतिशत बीयर, 25 प्रतिशत शक्तिवर्धक पेय, 7 प्रतिशत दवाएं और 8 से लेकर 10 प्रतिशत माल्ट व्हिस्की बनाने में प्रयोग हा रहा है। देश में राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिण पंजाब और रेतीली भूमि में किसान खेती कर सकते हैं।“
नकदी फसल के रूप में लाभकारी
डॉ. आरके शर्मा के अनुसार, “माल्ट जौ की स्वास्थ्य कारणों से भी आजकल डिमांड तेजी से बढ़ रही है। इससे विभिन्न प्रकार के खाद्य सामान विभिन्न बीमारियों को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे हैं, इसके कारण जौ एक नगदी फसल के रूप में किसानों के लिए लाभकारी हो सकती है।“ केन्द्रीय उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, देश में अनाज से तैयार मादक पेय के उत्पाद के लिए 33,919 लीटर प्रतिवर्ष की लाइसेंस क्षमता वाली 12 ज्वाइंट वेन्चर कंपनियां हैं। भारत सरकार से प्राप्त लाइसेन्सधारी यह कंपनियां करीब 56 यूनिट बीयर का उत्पादन करती हैं।
कम पानी और कम समय में तैयार होने वाली फसल
देश में माल्ट जौ की कमी न हो, इसके लिए भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान करनाल ने माल्ट जौ सुधार कार्यक्रम 90 के दशक में सीरिया, मैक्सिको, आटस्ट्रेलिया, डेनमार्क और अर्जेन्टीना के सहयोग से शुरू किया था। यहां के वैज्ञानिकों ने लंबे शोध के बाद माल्ट जौ की डी डब्ल्यू आर 29 प्रजाति को विकसित किया। इसके बाद 2006 में बीयर बनाने वाली यूनाइटेड ब्रुअरीज कंपनी के सहयोग से डी डब्ल्यू आर यूबी 52 का विकसित किया गया। यह प्रजाति अच्छी गुणवत्ता और रोगरोधी है। माल्ट जौ की इन प्रजातियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनमें पानी की कम जरुरत पड़ती और कम समय में यह तैयार भी हो जाती हैं।
घट रहा था जौ की खेती का रकबा
राजस्थाडन में जयपुर की कुक्क रखेड़ा मंडी में जौ के स्टॉंकिस्ट डूंगरमल शर्मा ने बताया, ”जौ में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के कारण आजकल देशी-विदेशी कंपनियों जौ से बने खाद्य पदार्थां को बाजार में उतार रही हैं। जिसके कारण जौ की मांग तेजी से बढ़ रही है। पिछले कुछ सालों में रबी की अन्य फसलों के मुकाबले जौ की कम पैदावार होने से किसानों का इसकी खेती से मोहभंग हो रहा और जौ की खेती की रकबा लगातार घट रहा था।”
वरना उद्योग पर असर पड़ेगा
हरियाणा राज्य के इम्पीरियल माल्ट लिमिटेड, गुडगांव के डाइरेक्टमर संजय यादव ने बताया, ”भारत में कुल पैदा होने वाले जौ का 40 फीसदी हिस्साग माल्टक बनाने के काम आता है। चीन में बीयर की जिस तरह तेजी से मांग बढ़ रही है, उसे देखकर लगता है कि भारत को वर्ष 2017-18 तक माल्टर जौ की खेती को बढ़ाना होगा। अगर ऐेसा नहीं होता है तो इसका उद्योग पर असर पड़ेगा।“ भारत के अलावा अर्जेंटीना, फ्रांस, कनाडा, रूस, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, जर्मनी, तुर्की और यूक्रेन में जौ की खेती की जाती है। भारत को कनाडा से माल्ट जौ भी निर्यात करना भी पड़ता है।