जून महीने में बारिश के बाद अरहर की बुवाई शुरु हो जाती है, लेकिन कई बार सही बीज न बोने से कई तरह की बीमारियां लग जाती हैं। ऐसे में किसान अरहर की उन्नत किस्मों को अपनाकर अरहर की फसल को बीमारियों से बचा सकता है।
केन्द्रीय दलहन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने सात वर्षों के शोध के बाद दाल की नई किस्म आईपीए-203 विकसित की है, जिसमें अरहर में होने वाली बीमारियां नहीं होंगी।
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. एनपी सिंह बताते हैं, ”जून में अरहर की बुवाई शुरु हो जाती है, अभी तक जो किस्में हैं उनमें कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं। पहली बीमारी उकठा होती है, जिसमें पौधे सूखने लगते हैं, दूसरी बीमारी में पौधों पर पत्तियां तो लगती हैं, लेकिन फूल और फल नहीं लगते हैं।”
अरहर में होने वाले रोगों से किसानों को हर वर्ष हजारों टन अरहर की फसल का नुकसान होता था। नई प्रजाति इन दोनों बीमारियों से पूरी तरह से मुक्त है। आमतौर पर प्रति हेक्टेयर अरहर उत्पादन नौ से दस कुंतल होता है, लेकिन अरहर की यह नई प्रजाति आईपीए 203 बोने से किसानों को प्रति हेक्टेयर करीब 18 से 20 कुंतल तक उत्पादन होता है। जल्दी पकने वाली प्रजातियों की बुवाई जून के पहले हफ्ते में बुवाई करनी चाहिए साथ ही देर में पकने वाली अरहर की प्रजातियों को जुलाई में बोना चाहिए।
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इस किस्म के अलावा किसान दूसरी उन्नतशील प्रजातियां भी प्रयोग कर सकता है। पहली अगेती प्रजातियां होती हैं, जिसमे उन्नत प्रजातियां पारस, टाइप-21, पूसा-992, उपास-120, दूसरी पछेती या देर से पकने वाली प्रजातियां पूसा-9, नरेन्द्र अरहर-1, आजाद अरहर-1, मालवीय विकास, मालवीय चमत्कार जिनको देर से पकने वाली प्रजातियां हैं।
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अरहर में बुवाई से पहले बीज को दो ग्राम थीरम या एक ग्राम कार्बेन्डाजीम से एक किलो ग्राम बीज को शोधित कर लेना चाहिए इसके बाद बुवाई से पहले राईजोबियम कल्चर के एक पैकेट को 10 किलो ग्राम बीज को शोधित करके बुवाई कर देनी चाहिए, जिस खेत में पहली बार अरहर की बुवाई की जा रही हो वहा पर कल्चर का प्रयोग बहुत जरूरी होता है।