लखनऊ/दिल्ली। आलू फिर माटी मोल हो गया है। देशभर में आलू की कीमतें औंधे मुंह गिर गई हैं। दिल्ली की आजादपुर मंडी में आलू 300-500 रुपये प्रति कुंटल तक पहुंच गई हैं, जो 20 साल में सबसे कम है। किसानों का कहना है अगर यही हाल रहा तो आलू सड़क पर बिकेगा।
मौसम की मेहरबानी से इस बार अच्छी पैदावार हुई है लेकिन यही किसानों के लिए मुसीबत बन गई है। बुआई के वक्त 2300-2400 रुपये प्रति कुंटल आलू खरीदकर बोने वाले किसानों को अब 300-400 रुपये प्रति कुंटल का रेट मिल रहा है, इसमें खुदाई का पैसा किसानों को देना होगा। इससे किसान और कारोबारी दोनों परेशान हैं।
किसानों
के लिए आलू की खुदाई का खर्चा निकलना मुश्किल हो रहा है। जब मंडी में 300-500 का
रेट है तो किसान के खेत में क्या हाल होगा। 1997 की तरह आलू सड़कों पर फेंका जाएगा।
राजेंद्र शर्मा, आलू कारोबारी, आजादपुर मंडी, दिल्ली
बाराबंकी जिले के फतेहपुर ब्लॉक के गुरसैल गांव में करीब 4000 बीघा आलू बोया है। गांव के किसान बृजमोहन के पास के पास 70-80 बीघा आलू है। वो बताते हैं,“मेरे पास करीब 1500 कुंटल आलू तैयार है, लेकिन सब स्टोर में रखूंगा। अभी बेचा तो खर्चा नहीं निकलेगा। कारोबारी 6 से 7 हजार रुपये बीघा खेत ले रहे हैं (30-35 हजार प्रति एकड़) जबकि खाद-पानी बीज का खर्चा ही कम से कम 5-6 हजार प्रति बीघे का आता है।” बृजनाथ उन किसानों में शामिल हैं, जिन्हें नवंबर में नोटबंदी के बाद आलू के खरीदार नहीं मिले थे और 180-200 रुपये कुंटल में बेचना पड़ा था। “अगर यही हालात रहे तो 1997 की तरह किसान बर्बाद हो जाएगा। आलू सड़कों पर नजर आएगा।”स्टोर में भी रखा तो 200 रुपए को तो खर्चा ही आना है। वो आगे जोड़ते हैं।
किसानों
ने 2200-2400 रुपये प्रति कुंटल में बीज खरीदकर आलू बोया है, अब 300 के दाम मिल
रहे हैं। फायदा तो दूर किसानों का खुदाई खर्च नहीं निकलेगा।
बृजनाथ, आलू किसान, गुरसैल, बाराबंकी
ज्यादा उत्पादन बना समस्या-दिल्ली की आजादपुर मंडी में 1500 टन की मांग रोज पहुंचता है 3000 टन आलू
जनाथ के गांव गुरसैल से करीब 600 किलोमीटर दूर दिल्ली की आजादपुर मंडी में बैठे कारोबारी और कमोडिटी विशेषज्ञ भी कीमतों का गुणाभाग लगाने में जुटे हैं। मंडी के बड़े कारोबारी राजेंद्र शर्मा बताते हैं,“किसानों के लिए आलू की खुदाई का खर्चा निकलना मुश्किल हो रहा है। जब इस मंडी में 300-500 का रेट है तो किसान के खेत में क्या हाल होगा।”आजादपुर मंडी के एक और आढ़ती उमेश अग्रवाल ने कारोबारी समाचार चैनल सीएनबीसी आवाज़ को बताया,“कीमतों की कमी की वजह पैदावार और मांग के बीच अंतर है। आजादपुर मंड़ी में इस वक्त रोजाना करीब 3000 टन की आवाक हो रही है, जबकि मांग सिर्फ 1500 टन की है, ये जो 1500 टक का स्टॉक हो रहा है यही कीमतें गिरा रहा है, अऩुमान है अप्रैल में कीमतें और गिरेंगी।” उमेश चिंता जताते हुए कहते हैं, सर्दियों में आलू की खपत ज्यादा होती है तब ये हाल है। गर्मियों में खपत कम और मार्केट में आलू ज्यादा होगी तो और समस्या होगी। 1997 की तरह देखना आलू फेंका जाएगा।
कीमतों की
कमी की वजह पैदावार और मांग के बीच अंतर है। आजादपुर मंड़ी में इस वक्त रोजाना
करीब 3000 टन की आवाक हो रही है, जबकि मांग सिर्फ 1500 टन की है। अऩुमान है अप्रैल में कीमतें और गिरेंगी।
उमेश अग्रवाल, आलू कारोबारी, दिल्ली (एक न्यूज चैनल से)
अप्रैल में आलू की कीमतों कम होंगी या ज्यादा ?
भारत में करीब 47 लाख टन आलू का उत्पादन होता है। यूपी के अलावा पश्चिम बंगाल, बिहार और गुजरात में भी आलू पैदा होता है। एसएफसी से जुड़े रवि सिंह एक चैनल की डिबेट में कहते हैं,“निसंदेह कीमतें बहुत कम हैं। आलू ज्यादा पैदा हुआ है और उसकी क्वालिटी अच्छी है। नोटबंदी के बाद बिचौलिए हटे हैं, कारोबारी स्टॉक नहीं कर पाए हैं उसका भी असर है। लेकिन आने वाले कुछ दिनों में कीमतें बढ़ेंगी, 13 मराच् को होली है, उसके पहले त्योहारी सीजन शुरु होता है तो अप्रैल में कीमतें 500-700 तक रह सकती हैं।”यानि अब ज्यादातर आलू कोल्ड स्टोर में जाएगा। हालांकि वहां किसान अक्सर घाटा उठाते रहे हैं।
आलू की खेती एक जुआं है। यूपी में पहले इतनी पैदावार हुआ है, ऊपर से दूसरे
राज्यों से आलू आ रहा है। किसान स्टोर में आलू रखेंगे लेकिन आगे भी रेट बहुत बढ़ने
के चांस नहीं है।
अनूप वर्मा, आलू स्टोर मालिक बाराबंकी
निम्न क्वालिटी का लुधियाना का आलू, यूपी का बेहतर
बाराबंकी के बिशुनपुर में कोल्ड स्टोर के मालिक अनूप वर्मा बताते हैं,“आलू की खेती जुआं है। किसान किस्मत आजमाता रहता है। इस बार बंपर उत्पादन हुआ है, मांग न होने से किसानों को घाटा होना तय है। यूपी में पहले से इतना पैदावार है ऊपर पश्चिम बंगाल और बिहार के अगैती आलू ने आकर कीमतें गिरा दी हैं।” यूपी के किसानों के लिए राहत की ख़बर ये है कि मंडी से जुड़े जानकारों के मुताबिक दिल्ली की मंडियों आजादपुर और गाजीपुर में जो आलू पहुंच रहा है वो पंजाब के लुधियाना का है, जिसकी क्वालिटी अच्छी नहीं होती है, लेकिन संभल और यूपी के दूसरे हिस्सों से जाने वाला अच्छा है और इसकी कीमत 500 के आसपास है।
नोटबंदी ने आलू किसानों को किया चौपट
बाराबंकी के जिला उद्यान अधिकारी जयकरण सिंह के मुताबिक जिले में 17 हजार हेक्टेयर में आलू था, जो पिछले वर्ष के मुताबले 1 हजार हेक्टेयर ज्याद था। मौसम साफ रहा है, न पाला पड़ा न रोग लगा तो पैदावार खूब हुई है, यही वजह है कि कीमतें नीचे आ गई हैं।”
बाराबंकी की तरह कन्नौज में भी रकबा बढ़ा था। कन्नौज में 48700 हेक्टेयर में आलू की फसल थी। कन्नौज के जिला उद्यान अधिकारी मुन्ना सिंह यादव बताते हैं, “बाजार में समय पर नई करेंसी नहीं आ पाई तो बाहर के व्यापारी आलू खरीदने नहीं आए। बिक्री न होने से मायूस किसानों ने सही रेट न मिलने पर अगैती फसल को पिछैती में बदल दिया और रकबा बढ़ गया। पहले यहां का आलू नेपाल तक जाता था लेकिन अब कई दूसरे राज्यों में आलू अच्छा होने लगा है।”आलू की बंपर पैदावार, मौसम की मेहरबानी और नोटबंदी के साथ ही कई राज्यों में आई बाढ़ ने भी प्रभावित किया है। कन्नौज और फरुखाबाद से ज्यादातर किसान बीज के आलू ले जाते हैं लेकिन इस बार बिक्री कम हुई। यादव के मुताबिक बिहार के आलू वाले क्षेत्रों में बाढ़ के चलते ज़मीन तैयार नहीं हुई तो बुआई भी नहीं हो सकी।”
आलू निर्यात नहीं शुरु हुआ तो किसानों की समस्या खत्म नहीं होगी- कारोबारी
कानपुर में आलू के बड़े आढ़ती और कन्नौज के पूर्व जिला पंचायत सदस्य श्याम सिंह यादव बताते हैं, “इस वक्त नंबर एक का सफेद आलू (बेहतर क्वालिटी) 125 से-165 रुपये पैकेट (50 किलो) है तो लाल आलू 165 से265 तक है। तब तक आलू का निर्यात नहीं होगा, आलू किसान दुखी ही रहेगा। भारत सरकार को इस दिशा में काम करना होगा।”वो आगे कहते हैं, यूपी पूरी दुनिया की फसलें आ जाती है, प्याज, टमाटर और फल-सब्जी तक लेकिन जो चीज यहां ज्यादा होती है उसको बाहर भेजने के इंतजाम नहीं होते।”
देश में 20 फीसदी चीजें महंगी मगर 80 फीसदी चीजें किसान सस्ती दरों पर बेचने को मजबूर होते हैं, लेकिन हंगामा 20 फीसदी पर मचता है। पिछले दिनों टमाटर से लेकर प्याज तक सड़क पर फेंका गया अब आलू का नंबर है।
श्याम सिंह यादव की बातों से दिल्ली के कारोबारी भी इत्तफाक रखते हैं। आजादपुर मंडी के पूर्व अध्यक्ष और कारोबारी राजेंद्र शर्मा कहते हैं, “सरकार को फसल और किसानों के बीच सामंजस्य बैठाना पड़ेगा। देश में 20 फीसदी चीजें महंगी मगर 80 फीसदी चीजें किसान सस्ती दरों पर बेचने को मजबूर होते हैं, लेकिन हंगामा 20 फीसदी पर मचता है। पिछले दिनों टमाटर से लेकर प्याज तक सड़क पर फेंका गया अब आलू का नंबर है। सरकार को चाहिए कि वो देश की खपत के अनुसार फसल उगाने के लिए प्रेरित करें।”
1997 में 15 पैसे किलो तो 2014 में 30-40 रुपये किलो तक पहुंचा था आलू
वर्ष 2014 में किसानों के लिए सबसे फायदेमंद रहा था जब आलू 2200-2300 रुपये थोक में बिका था। जबकि फुटकर में कीमतें 30-40 तक पहुंच गई थीं, वहीं 1997 में आलू किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था, उस वक्त 15 पैसे किलो में भी खरीदार नहीं मिल रहे थे। सड़ने के बाद रोग फैसने के डर के कई किसानों ने आलू को खेतों में ही गड्ढ़े कर पटवा दिया था।
यूपी में सभी आलू स्टोर फुल
उत्तर प्रदेश में लगभग सभी आलू स्टोर फुल हो चुके हैं। किसान अपने आलू को लेकर इधर-उधर भटक रहे हैं। कई जिलों में किसान उन इलाकों का रुख कर रहे हैं जहां आलू पैदा हुआ है और स्टोर में आलू रखने की गुंजाइश है। बाराबंकी के कई किसान लखनऊ और बहराइच और फैजाबाद के स्टोर के बाहर ट्रैक्टर और ट्रक में आलू लेकर कतार में मिले हैं।