नई दिल्ली। आधुनिक बाजार से कुछ समय के लिए रागी के उत्पाद गायब से हो गए थे। लोग मोटे अनाज के उत्पादों को हेय की दृष्टि से देखने लगे थे, लेकिन पिछले चार सालों में स्थिति में तेजी से सुधार हो रहा है। रागी की मांग में तेजी आई है। लोग अब पुराने समय की ओर लौट रहे हैं, प्राचीन उपचार और जीवन के एक बड़े तरीके का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं। बेंगलुरु स्थित कोट्टरम एग्रो फूड प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के निदेशक प्रशांत परमेश्वरन लाइव मिंट को बताते हैं कि रागी से बने उत्पाद जैसे, नाश्ते का अनाज, चॉकलेट से भरी हुई अनाज, बाजारा म्यूसेली, रागी फ्लेक्स और मसाला रागी-ओट्स भोजन की मांग बाजार में तेजी से बढ़ी है।
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2012 में बेंगलुरु से शुरू हुए रागी के उत्पाद मुंबई, हैदराबाद, दिल्ली एनसीआर, पुणे, कोलकाता और केरला के साथ-साथ छोटे शहरों में बिक रहे हैं। मांग भी तेजी से बढ़ रही है। लोग अब पारंपरिक खाने जैसे, रोगी रोटी, रागी पुट्टू आदि की ओर रुख कर रहे हैं। नाश्ते के अनाज में केलॉग इंडिया प्रतिस्पर्धा कर रहा है जो कि इसके लोकप्रिय चॉकलेट अनाज चॉकोस का रागी संस्करण भी बेचता है।
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धीरे-धीरे, अन्य प्रमुख उपभोक्ता वस्तुओं के बड़े खिलाड़ी भी इस क्षेत्र में उतर रहे हैं। कंपनियां रागी को वैकल्पिक भोजन के रूप में विकसित करना चाहती हैं। ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड का ब्रांड न्यूट्रिचॉज मधुमेह वाले उपभोक्ताओं के लिए रागी कुकी बेचता है जबकि एमटीआर फूड्स प्राइवेट लिमिटेड तैयार खाने वाली रागी डोसा और रागी रवा इडली मिक्स बेच रहा है। एक खबर के मुताबिक पाउडर ड्रिंक बनाने वाली कंपनी रसना रागी से बने बच्चों के लिए स्नैक्स और विटोस लांच कर रही है। रागी की वापसी दुनिया भर में बढ़ती स्वास्थ्य-खाद्य आंदोलन का हिस्सा है और ये भारतीय किसान के लिए अच्छी खबर है।
रागी के लिए पानी की आवश्यकता न के बराबर
परमेश्वरन बताते हैं कि रागी और विशाल बाजरा परिवार के अन्य पौधे अपने कम पानी की आवश्यकता के कारण बढ़ने में आसान हैं। ये हार्डी फसलें हैं इसलिए ज्यादातर किसान इनमें उर्वरक या कीटनाशक नहीं मिलाते, इसकी पैदावार पारंपरिक रूप से ही हो रही है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिललेट्स रिसर्च के निदेशक विलास तनापी ने कहा, “खेती के क्षेत्र में वृद्धि पिछड़े एकीकरण के साथ आएगी”, जिसमें एफसीजीजी कंपनियां और खाद्य प्रसंस्करण कंपनियां रागी या उससे बने सामनों की बिक्री कर सकती हैं। तापसी ने कहा कि रागी की खेती का न बढ़ने के पीछे सबसे कारण बाजरा मिलों की कमी है। उन्होंने कहा, “चूंकि रागी की खेती की गुणवत्ता बदलती जा रही है और फॉक्सटेल जैसे अन्य छोटे अनाज की खेती की जा रही है, इन्हें सही मिलों तक पहुंचाने की आवश्यकता है। हम ऐसे कार्यक्रम पर काम कर रहे हैं जिससे हम बाजरा मिलों को सही मशीनरी उपलब्ध करा पाएं।
कर्नाटक रागी का सबसे बड़ा उत्पादक
तापसी आगे बताते हैं कि इसके अलावा, दशकों से रागी की खेती का क्षेत्र सिकुड़ रहा था। रागी ऐतिहासिक और एक महत्वपूर्ण फसल थी लेकिन हरित क्रांति और सरकारी नीतियों के साथ किसान चावल और गेहूं की खेती करने चले गए और रागी को छोड़ दिया। कर्नाटक, भारत का सबसे बड़ा रागी उत्पादक राज्य है। यहां इसके उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी गई। 2011 और 2014 के बीच राज्य में रागी का उत्पादन 12.7% रहा जबकि क्षेत्रफल 4.1% बढ़ा। केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक हर साल प्रति हेक्टेयर में भी बढ़ोतरी हुई है। देशभर में रागी की पैदावार वर्ष 2005-06 में 1,534 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से 8.34% बढ़ी और 2014-15 में प्रति हेक्टेयर 1,662 किलोग्राम थी।
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270% तक बढ़ी कीमतें
कर्नाटक के अलावा, प्रमुख रागी-कृषक राज्य महाराष्ट्र, उत्तराखंड, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश हैं। तोनापी कहते हैं कि आपूर्ति एक ही तरफ़ है जिस कारण रागी की कीमतें बढ़ रही हैं। केंद्र सरकार के मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2016 से दिसंबर 2016 तक रागी की कीमतों में 270% की वृद्धि हुई, जबकि सभी अनाज के थोक मूल्य सूचकांक में 113% की वृद्धि दर्ज की गई। तनापी आगे बताते हैं “घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय निर्यात बाजार रागी के लिए लगभग 4.5 अरब डॉलर का हो सकता है, अगर सरकार की नीतियां सही रहें तो इस मांग को देखते हुए अगले कुछ वर्षों में रागी की खेती का क्षेत्र 30% तक बढ़ सकता है।” वहीं परमेश्वरन कहते हैं “वर्षों से हम जमीन पर रागी किसानों के साथ काम करते थे, ये किसान आने वाले समय में रागी को बड़े व्यापार के रूप में देख सकते हैं। ऐसे में रागी की खेती के लिए और किसान भी आगे आ सकते हैं।