लखनऊ। प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में किसान मूंग की खेती करते हैं, लेकिन कई बार पीला मोजैक रोग से फसल को भारी नुकसान होता है। ऐसे में मूंग की कल्याणी किस्म की खेती कर किसान नुकसान से बच सकते हैं।
वाराणसी के कुदरत कृषि शोध संस्था ने मूंग की नई किस्म विकसित की है। ये किस्म 55 दिन में पककर तैयार हो जाएगी। आमतौर पर मूंग की फसल 65-70 दिन में पकती है। इसकी खासियत यह है कि इसके लंबे गुच्छे रहेंगे, फली गहरे हरे रंग की होगी।
कुदरत कृषि शोध संस्था के किसान प्रकाश सिंह व रघुवंशी सिंह बताते हैं, “आमतौर पर मूंग की दूसरी किस्में साठ से सत्तर दिनों में तैयार होती हैं, लेकिन ये किस्म 50-55 दिनों में ही तैयार हो जाती है। ये कई तरह के रोग अवरोधी भी है, जिससे इसमें रोग लगने का भी खतरा नहीं रहता है।”
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यह किस्म उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा, बंगाल, छत्तीसगढ़, पंजाब आदि राज्यों के लिए तैयार की है। इस किस्म में प्रति एकड़ छह-सात कुंतल उत्पादन होता है और बीज प्रति एकड़ छह किलो ही लगता है। मूंग कल्याणी किस्म की बुवाई करने से जमीन की उर्वराशक्ति में बढ़ोत्तरी होती है। साथ ही फसल कटने के बाद हरी खाद भी तैयार हो जाती है। पीला मोजेक, चूर्णित आसिता रोग के प्रति सहनशील रहेगा।
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बीजशोधन पांच ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से राइजोबियम कल्चर से बीज का शोधन करके ही बुवाई करनी चाहिए, शोधन के बाद बीज छाया में सुखाकर बुवाई करें।जायद सीजन में 25 से 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर बुवाई करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 20 से 25 सेमी पर रखें। जबकि खरीफ सीजन 15 से 20 किलो बीज प्रति हेक्टेयर। बुवाई जून-जुलाई में करें। कतार से कतार की दूरी 30 व पौधों की दूरी चार सेमी. रखना चाहिए।