परंपरागत खेती में लगातार होते नुकसान और बढ़ते खर्च से किसान दूसरी खेती की तरफ रुख कर रहे हैं। ऐसे में किसान औषधीय पौधे गुलखैरा की खेती कर फायदा कमा रहे हैं।
उन्नाव जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर हसनगंज ब्लॉक के रानीखेड़ा गाँव में गेहूं और टमाटर, बैंगन जैसी सब्जियों की खेतों के बीच ही खेतों में गुलाबी, बैंगनी फूल लगे पौधे दिखायी देते हैं। गुलाबी, बैंगनी फूलों वाली ये फसल कई औषधीयों में इस्तेमाल होने वाले गुलखैरा की है। गुलखैरा की फसल की खास बात ये होती है कि इसके पौधों का सारा भाग जैसे पत्ती, तना, बीज सब सुखा कर बाजार में बिक जाता है।
रानीखेड़ा गाँव के किसान विजय सिंह (38 वर्ष) पिछले तीन साल से गुलखैरा की खेती कर रहे हैं। विजय सिंह गुलखैरा की खेती की शुरुआत के बारे में बताते हैं, ‘’पहले मैं भी सब्जियों के साथ ही दूसरी फसलों की खेती करता था, तीन साल पहले मुझे इसकी खेती के बारे में पता चला। पिछले साल दो बीघा में बोया था जबकि इस बार चार बीघा खेत में गुलखैरा बोया है।”
एक बीघा में होता है तीस-चालीस हजार का मुनाफा
गुलखैरा की फसल एक बार बो लेने पर अगली बार उसी के बीज से फसल बो सकते हैं। नवंबर के महीने में बोयी गयी फसल अप्रैल-मई महीने में तैयार हो जाती है। इसकी तैयारी के लिए खेत में सभी खरपतवार निकालकर खेत की जमीन एकदम साफ कर ली जाती है। अप्रैल-मई के महीने में पौधों की पत्तियां और तना सूखकर खेत में ही गिर जाता है। जिसे बाद में इकट्ठा कर लिया जाता है। गुलखेरा की सबसे खास बात ये होती है, इसे कई साल तक सुखा कर रखा जा सकता है।
यूनानी दवाओं में इस्तेमाल होती है गुलखैरा
भारत में अभी तक गुलखैरा के पौधे सजावट के लिए लगाए जाते हैं, लेकिन पाकिस्तान जैसे कई देशों में किसान इसकी खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। इसका प्रयोग कई यूनानी दवा बनाने में किया जाता है।
डॉ. आरके राय, प्रमुख वैज्ञानिक, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. आरके राय गुलखैरा की खेती के बारे में बताते हैं, ‘’भारत में अभी तक गुलखैरा के पौधे सजावट के लिए लगाए जाते हैं, लेकिन पाकिस्तान जैसे कई देशों में किसान इसकी खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। इसका प्रयोग कई यूनानी दवा बनाने में किया जाता है।”
विजय सिंह आगे कहते हैं, ‘’एक कुंतल गुलखैरा दस हजार रुपए कुंतल बाजार में बिक जाती है, एक बीघे में पांच कुंतल तक गुलखैरा निकल जाती है, ऐसे में सात-आठ महीने में एक बीघे में पचास से साठ हजार रुपए आराम से मिल जाते हैं। कई बार तो व्यापारी खेत ही खरीद ले जाते हैं।”गुलखैरा यूनानी दवाओं में प्रयोग की जाती है। पाकिस्तान में इसकी बड़े मात्रा में खेती की जाती है। किसान लखनऊ की शहादतगंज बाजार में इसको बेच सकते हैं।
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