गेहूं किसानों के लिए ये सबसे बड़ी खबर है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने मिलकर गेहूं के कठिन जीनोम को तैयार कर लिया है। अब किसान गेहूं की बंपर पैदावार तो करेंगे ही साथ ही उनकी फसल कीट-पतंगों से भी सुरक्षित रहेगी।
लगभग 13 साल के अथक प्रयासों के बाद आखिरकार वैज्ञानिकों की एक टीम ने गेहूं का जीनोम बनाने में सफलता अर्जित कर ली है। खास बात यह भी है कि दुनियाभर के इन वैज्ञानिकों में 18 वैज्ञानिक भारत के हैं। १७ अगस्त को इंटरनेशनल व्हीट जीनोम सीक्वेंसिंग कंसोर्शियम (IWGSC) ने जर्नल साइंस में गेहूं के जीनोम की पूरी जानकारी प्रकाशित की है। गेहूं का जीनोम तैयार करना वैज्ञानिकों का ड्रीम प्रोजेक्ट था।
गेहूं के जटिल जीनोम को समझना अभी तक बहुत जटिल और असंभव माना जा रहा था। इस शोध के बाद अब उन जीनों की पहचान हो पाएगी जो उत्पादन और अनाज की गुणवत्ता को प्रभावित करते थे। इसके अलावा अब गेहूं की फसलों में लगनी वाली बीमारियों और कीड़ों को नियंत्रित किया जा सकेगा। गेहूं की फसल के लिए तापमान में बदलवा सबसे बड़ी समस्या है, लेकिन अब जीनोम बनने के बाद इस समस्या से भी निजात मिल सकती है।
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वैज्ञानिकों ने यह सफलता ऐसे समय हासिल की है, जब दुनिया में गेहूं की किल्लत होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। भारी गर्मी पड़ने की वजह से रूस में भी गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ है और उसने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है। एशिया, कनाडा और हाल ही में नॉर्दन यूरोप में लू की वजह से गेहूं की फसल का नुकसान हुआ है। कीटों और क्लाइमेट चेंज की वजह से भी गेहूं की फसल बर्बाद हो रही है। वैज्ञानिक अब इस जानकारी के आधार पर गेहूं की अलग-अलग क़िस्मों के बारे अधिक जानकारी जुटा सकेंगे और उन्हें बेहतर बना सकेंगे। किसानों और कृषि वैज्ञानिकों को इसके कई फ़ायदे हो सकते हैं, मिसाल के तौर पर वे फसल तैयार होने का समय कम कर सकते हैं, मौसम और जलवायु के अधिक अनुकूल नस्लें तैयार की जा सकती हैं और गेहूं का उत्पादन तो बढ़ाया ही जा सकता है।
#WheatGenome – The high quality reference #Genome would accelerate breeding of climate-resilient wheat varieties to feed the ever-increasing world population and help address global #FoodSecurity in the decades to come. @PMOIndia, @DBTIndia, @PIB_India pic.twitter.com/hkhRQHv30i
— Dr. Harsh Vardhan (@drharshvardhan) August 18, 2018
2050 तक दुनिया भर की आबादी 9.6 अरब हो जाएगी। इस हिसाब से खाद्य आपूर्ति के लिए हर साल गेहूं के उत्पादन में 1.6 फीसदी की बढ़ोतरी जरूरी है। जीनोम तैयार होने के बाद अब किसानों और वैज्ञानिकों को यह मालूम है कि गेहूं की उत्पादकता कैसे बढ़ाई जा सकती है। इसकी मदद से न सिर्फ गेहूं की पैदावार बेहतर होगी बल्कि वैरायटी भी बढ़ेगी।
विज्ञान एवं तकनीक मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने इस उपलब्धि पर गर्व करते ट्वीटर पर लिखा “गेहूं के जीनोम को समझने में मिली सफलता से मौसम की मार को सहन करने में सक्षम गेहूं की प्रजातियों को विकसित करने में मदद मिलेगी। कृषि उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को सीमित किया जा सकेगा।” उन्होंने इस शोध में भाग लेने वाले भारतीय दल को बधाई देते हुए कहा कि इस खोज से यह प्रमाणित होता है कि किसी भी क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिक विश्व के श्रेष्ठतम वैज्ञानिकों से बराबरी करने में समर्थ हैं।
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भारतीय वैज्ञानिकों की टीम को प्रोफसर नागेंद्र सिंह (आईसीएआर-राष्ट्रीय पादप जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र), डॉ कुलदीप सिंह (पंजाब एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय) और जेपी खुराना (दिल्ली विश्वविद्यालय) ने लीड किया। नागेंद्र सिंह कहते हैं “मेरे लिए इस अंतरराष्ट्रीय टीम का हिस्सा होना बहुत बड़ी बात है। गेहूं के क्षेत्र में ये बहुत बड़ी उपलब्धि है।”
भारत में गेहूं पैदा करने के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है। यहां 30 मिलियन हेक्टेयर में 98 मिलियन टन गेहूं की पैदावार होती है। गेहूं का जीनोम चावल के जीनोम से 40 जबकि इंनासों के जीनोम से 5 गुना ज्यादा बड़ा है। आईसीएआर (राष्ट्रीय पादप जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र), पंजाब कृषि विश्वविद्वालय, लुधियाना और दिल्ली विश्वविद्यालय साउथ कैंपस के 18 वैज्ञानिकों के अलावा 20 देशों के 200 वैज्ञानिकों ने मिलकर इस जीनोम को तैयार किया है। इस प्रोजेक्ट में 75 मिलियन अमेरिकी डॉलर का खर्च आया है।
इससे पहले भी कई फसलों के लाभकारी जीनोम तैयार किये जा चुके हैं। इसमें चावल (2005), सोयाबीन (2008), मक्का (2009) और टमाटर (2012) शामिल है। लेकिन गेहूं का जीनोम तैयार करने में वैज्ञानिकों बहुत मशक्कत करनी पड़ी।