बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर झारखंड का ये किसान सालाना कमाता है 25 लाख रुपए

गोबर की खाद डालकर इन्होंने अपनी बंजर जमीन को न केवल उपजाऊ बनाया बल्कि दो एकड़ अपनी जमीन और 18 एकड़ लीज पर खेती लेकर आधुनिक तौर-तरीके से खेती करने की शुरुआत की। आज ये 20 एकड़ खेती से सब्जियां बेचकर सालाना 25 लाख रुपए कमा रहे हैं।
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ओरमांझी (रांची)। झारखंड के किसान दुबराज महतो ने जब छह साल पहले अपनी दो एकड़ बंजर जमीन में खेती करने की शुरुआत की थी तब उन्हें इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि वो एक दिन क्षेत्र के एक सफल किसान बन पाएंगे। गोबर की खाद डालकर इन्होंने अपनी बंजर जमीन को न केवल उपजाऊं बनाया बल्कि दो एकड़ अपनी जमीन और 18 एकड़ लीज पर खेती लेकर आधुनिक तौर-तरीके से खेती करने की शुरुआत की। आज ये 20 एकड़ खेती से सब्जियां बेचकर सालाना 25 लाख रुपए कमा रहे हैं। 

“अपनी पुश्तैनी दो एकड़ बंजर जमीन में खेती करने की कई बार कोशिश की पर कभी लाभ नहीं मिला। मजबूरी में कुछ दिन पान की दुकान चलाई और कुछ दिन किराना की। मामा के बेटे के बहुत कहने पर छह साल पहले ड्रिप इरीगेशन और मल्चिंग विधि से बंजर जमीन में खेती करने की शुरुआत की।” मैट्रिक पास किसान दुबराज महतो (46 वर्ष) ने खुश होकर आत्मविश्वास से कहा, “एक वो दिन था और एक आज का दिन है। कभी सोचा नहीं था इस बंजर जमीन में 20-25 लोगों को रोजाना रोजगार दे पाएंगे और सालाना 20-25 लाख रुपए कमा पाएंगे। दो एकड़ से शुरुआत की थी, लाभ मिला तो अब लीज पर खेत लेकर 20 एकड़ जमीन में खेती कर रहे हैं।”

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रांची जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर ओरमांझी ब्लॉक के तापे गाँव में दुबराज महतो रहते हैं। नेशनल हाइवे-33 के किनारे इन्होंने लीज पर जमीन ले रखी है। दुबराज ने जो जमीन लीज पर ले रखी है वो कभी बंजर हुआ करती थी लेकिन आज उसमें हरी-भरी लहलहा रहीं सब्जियां वहां से गुजरने वालों का ध्यान बरबस ही अपनी तरफ खींच लेती हैं।

“कोई राकेट साइंस नहीं अपनाई, बस एक एकड़ जमीन में 10 ट्राली गोबर की खाद डाली। कुछ केंचुआ खाद तो कुछ बाजार में बिक रही जैविक खाद की बोरियां डाली। कुछ दिन खेत में पानी भरा रहा, फसलचक्र अपनाया धीरे-धीरे ये खेत उपजाऊं हो गये। इस जमीन में जो सब्जियां निकलती हैं उसका स्वाद ही अलग होता है, मिट्टी में आयरन की मात्रा ज्यादा होने की वजह से तरबूज भी बहुत मीठे होते हैं, “आपने इतनी जमीन को बंजर से उपजाऊ कैसे बनाया इस सवाल के जबाब में दुबराज ने मुस्कुराते हुए कहा।


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दुबराज महतो आज से छह साल पहले तक कोई बड़े किसान नहीं थे, देश के लाखों गरीब किसानों में उनकी गिनती होती थी। लेकिन आज इन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर छह सालों में बंजर जमीन में टनों हरी जैविक सब्जियां उगाकर ये साबित कर दिया कि अगर किसान सूझबूझ से खेती करता है तो खेती आज भी घाटे का सौदा नहीं हैं। ये मौसम के हिसाब मटर, खीरा, बैगन, फूलगोभी, पत्तागोभी जैसी कई हरी सब्जियां उगाते हैं। ज्यादातर घर पर बनाई जैविक खाद और कीटनाशक दवाइयों का ही इस्तेमाल करते हैं। क्षेत्र में पानी की समस्या की वजह से दुबराज ने ड्रिप इरीगेशन और मल्चिंग की तकनीक अपनाई।

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“शुरुआती दौर में जब मल्चिंग और ड्रिप इरीगेशन लगाना था तब हमारे पैसे नहीं थे, साढ़े चार लाख रुपए बैंक से लोन लिए, बाकी सरकार की तरफ से सब्सिडी मिल गयी। मुनाफा होने लगा तो धीरे-धीरे लोन चुका दिया। घर बनवाने से लेकर गाड़ी खरीदने और बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने तक का खर्चा इसी खेती से निकलता है।” दुबराज ने आने वाले दिनों की योजना बताई, “अभी रोजाना 20-25 मजदूर हमारे खेत में काम करते हैं, आने वाले दिनों में हम 20 एकड़ जमीन से 50 से 100 करेंगे और रोजाना 100 लोगों को मजदूरी देंगे। सब्जी की बाजार के लिए भटकना नहीं पड़ता रामगढ़, गोला, रांची में आसानी से बिक जाती है। जब ज्यादा माल हो जाता है तो जमशेदपुर लेकर चले जाते हैं।” 

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