महोबा। महोबा में पान की खेती खत्म होने की ओर बहुत तेजी से बढ़ रही है। खास स्वाद और बनावट के लिए मशहूर यहां का पान सरकारी उपेक्षा और प्राकृतिक आपदाओं के कुचक्र में ऐसा फंसा कि कभी 600 एकड़ में होनी वाली खेती 60 एकड़ तक सिमट गयी है।
महोबा जिले से लगभग 10 किमी दूर गांव कुंवरवाला में पहाड़ के ठीक नीचे लगभग 20 साल से पान की खेती करने वाले बिहारी लाल (50) कहते हैं ” बरेजे की खेती अब बहुत मुश्किल हो गयी है। इसमें लागत बहुत ज्यादा है जबकि मुनाफा न के बराबर। लेकिन अब ये हमारी मजबूरी बन गयी है। कुछ और काम आता नहीं। 10-15 सालों से पान की कीमत तो नहीं बढ़ी लेकिन लगात बढ़ती जा रही है। पौधों को चढ़ाने के लिए बांस की जरूरत पड़ती है जिसकी कीमत हर साल बढ़ रही है। रही सही कसर कीड़े पूरी कर देते हैं। पान अनुसंधान केंद्र हर साल बस फोटो ले जाते हैं।”
देसी महोबिया पान के नाम से विख्यात महोबा और छतरपुर जिले में होने वाली पान की खेती बहुत ही ऐतिहासिक है। महोबा पान मंडी के किनारे वाले घर में रहने वाले पान किसान दीनसागर चौरसिया (78) कहते हैं “मैंने जो बातें सुनी हैं वही आपसे बता रहा हूं। मेरे पुरखों ने बताया था कि 1707 ई में महराज छत्रसाल ने जब महराजपुर नगर बसाया तो उस समय लोगों के रोजगार के लिए यहां पान की खेती शुरू कराई। धीरे-धीरे यह खेती पन्ना, दमोह, सागर और टीकमगढ़ जिले तक फैली लेकिन विख्यात महोबा का ही पान हुआ।
पान जो गिरकर टुकड़ेटुकड़े हो जाए, वही महोबा का करारा देशावरी पान है। देशावरी पान में करारापन, कम रेशे, हल्की कड़वाहट होती है। पत्ता गोल व नुकीला होता है। यह पान कभी सबसे ज्यादा पाकिस्तान जाता था। लेकिन अब ये बात बहुत पुरानी हो चुकी है। अब तो यहीं के लोग खाने के लिए बाहर से पान मंगाते हैं।
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महोबा कलेक्ट्रेट के सामने पान की दुकान चलाने वाले 30 वर्षीय मुन्ना बताते हैं “मैं अपनी दुकान में बंगाल से आया पान बेचता हूं। यहां का भी रखता हूं लेकिन अब इसकी पैदावार बहुत कम हो गयी है। मैं खुद पहले पान की खेती करता था लेकिन जब नुकसान होने लगा तो दुकान खोल लिया।”
मौसम की मार और सरकार की नीतियां जिम्मेदार
मौसम किसी न किसी रूप में किसान का दुश्मन बनकर सामने आ ही जाता है। पान की खेती में भी यही हो रहा है। बाकि सरकार की नीतियां तो हैं ही। पान किसान यूनियन के संरक्षक लालता चौरसिया कहते हैं कि वर्ष 2000 तक बुंदेलखंड में लगभग 600 एकड़ में पान की खेती होती थी, लेकिन पिछले कई सालों में हुए लगातार नुकसान के कारण अब इसका क्षेत्र घटकर 60 एकड़ तक पहुंच गया है। इसकी वजह सरकार की ओर से पर्याप्त राहत न मिलना भी है। बीमा का लाभ पान किसानों को नहीं मिलता, हम लंबे समय से इसकी मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार इस ओर ध्यान ही नहीं दे रही है।”
लालता आगे कहते हैं कि यहां के पान का कारोबार लगभग 500 करोड़ रुपए का हुआ करता था। पाकिस्तान सहित दूसरे मुस्लिम देशों में यहां के पान की मांग बहुत ज्यादा थी। उसके लिए एजेंट भी रखे गये थे। अब हालात यह है कि पान का कारोबार सालाना दो से तीन करोड़ रुपए तक सिमट गया है। कांग्रेस के समय हमें 75 हजार रुपए का अनुदान मिलता था, वो अब बंद हो चुका है। कई महीनों से मिट्टी का तेल भी नहीं मिल रहा है। अधिकारी कह रहे हैं कि मिट्टी का तेल अब नहीं मिलेगा।
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बुंदेलखंड का यह इलाका समशीतोष्ण जलवायु लिए जाना जाता था जो पान की खेती के सबसे बेहतर था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन ने सब बर्बाद कर दिया है। 65 वर्षीय किसान जीतू चौरसिया कहते हैं “जब से जानने लायक हुआ तब से पान की खेती में लगा हूं। पहले घर सभी सदस्य यही करते थे लेकिन अब मैं अकेला बचा हूं। महंगाई के साथ इसकी खेती से लाभ नहीं बढ़ा है। पहले कहा जा रहा था कि यहां बांस की खेती बसाई जायेगी, लेकिन अभी उस पर कुछ नहीं हो पाया है।
महोबा में अब बंगाली पान का व्यापार
ये सुनकर आपको आश्चर्य होगा लेकिन ये सच है। जहां का पान दूसरे देशों में जाया करता था वहीं के लोग अब बाहर से पान मंगाकर खा रहे हैं। महोबा पान मंडी में इसका व्यापार भी किया जा रहा है। पान मंडी में का झाबा लिए बैठे व्यापारी कल्लू चौरसिया कहते हैं “मंडी में अब महोबा का पान बहुत कम आता है। लेकिन बाजार में पान की मांग तो बनी ही रहती है, इसलिए हम अब कोलकाता से पान मंगाकर बेचते हैं।”
पान अनुसंधान केंद्र महोबा के शोध अधिकारी आईए सिद्दिकी कहते हैं “पान की खेती प्रदेश में बहुत अच्छी होती आयी है लेकिल प्राकृतिक आपदाओं के कारण इसकी खेती लगातार प्रभावित हो रही है। इसमें उपयोग में आने वाली वस्तुओं की कीमत बहुत ज्यादा होती है जिस कारण लागत ज्यादा आती है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार इस ओर पहल कर रही है। पान को बढ़ावा देने के लिए उच्च पान प्राेत्साहन योजना चलायी जा रही है जिसके तहत पान किसानों को 1500 वर्गमीटर की खेती करने पर 50 फीसदी का अनुदान दिया जा रहा। 1500 वर्गमीटर की खेती के लिए 151680 रुपए की लगात आती है। इस फसल में अभी बीमा नहीं है, लेकिन बहुत जल्द ही फसली बीमा का लाभ इसे मिलेगा, इसके लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं।”