सीतापुर। सब्जी की घटती पैदावार को लेकर एक रिपोर्ट में सामने आया है कि सूत्र कृमि यानी गुप्त शत्रु सब्जी का उत्पादन घटाने में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के कृषि विज्ञान केंद्र कटिया के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव ने अपनी इस रिपोर्ट में जिले में दिन पर दिन घटते सब्जी के उत्पादन के पीछे सूत्र कृमि को मुख्य कारण माना।
डॉ. श्रीवास्तव ने बताया, “अमूमन किसानों को जमीन के ऊपर दिखने वाले कीटों के बारे में जानकारी रहती है, लेकिन भूमि के अंदर इस घातक कीट के बारे में जान पाना बड़ा कठिन होता है। ऐसा इसलिए यह कीट सिर्फ सूक्ष्मदर्शी से ही देखा जा सकता है। नग्न आंखों से न दिखाई देने वाला यह गुप्त शत्रु सूत्र कृमि पूरी तरह से परजीवी होता है।”
उन्होंने बताया, “यह जीव पौधे को धीरे-धीरे कमजोर कर देता है और किसानों को इसकी जानकारी नहीं हो पाती है। यह पौधे को मिलने वाले पोषक तत्वों को चट कर जाते हैं जिसके कारण पौधा पीला होने लगता है। ऐसे में किसान खेतों में अनायास उर्वरक व पानी लगाने लगते हैं। धीरे-धीरे यह जीव 30 से 40 फीसदी उत्पादन कम कर देती है, कभी-कभी नुकसान का प्रतिशत 80-100 भी हो जाता है।”
डॉ. श्रीवास्तव बताते हैं कि किसानों को बिना कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के खेतों में डाया, यूरिया या किसी भी प्रकार के रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
जिले के 26 गांवों के नमूनों में 22 गांव मे दिखा प्रकोप
हाल में मृदा नमूना परीक्षण के दौरान कृषि विज्ञान केंद्र कटिया की कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने सीतापुर के बिसवा विकास खण्ड के 26 गांवों से 156 नमूने एकत्रित किये गए थे, जिसमें से 22 गांवों में सूत्र कृमि का प्रकोप पाया गया है।
‘किसानों में जागरुकता की आवश्यकता’
केवीके कटिया के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आनंद सिंह बताते हैं, “पौधे में सूत्र कृमि जाइलम व फ्लोएम में अपना घर बना लेते हैं, पौधों को खाना-पानी इसी से मिलता है। जिस वजह से धीरे-धीरे पौधा कमजोर होने लगता है। फसल सूखने लगती है। साथ ही जड़ों के आस-पास फफूंदी व अन्य जीवाणुओं का आक्रमण भी होने लगता है।”
ऐसे करें बचाव
सूत्र कृमि से ग्रसित फसलों को उखाड़ के जला देना चहिये, रोग ग्रसित खेत में एक खेत से दूसरे खेत में पानी नहीं जाना चाहिए, नहीं तो सूत्र कृमि एक खेत से दूसरे खेत बहुत जल्दी चले जाते हैं। इस से बचने का सबसे आसान तरीका ये है कि किसान गर्मियों में भूमि की गहरी जुताई कर के खेत को एक माह तक छोड़ देना चाहिए एवं बुवाई से पहले खेत में नीम की खली 250 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से मिट्टी में मिला देना चाहिए।
सूत्र कृमि से प्रभावित फसलें
अनाज वर्गीय फसलों में धान, गेहूं, मक्का, सब्जी वर्गीय फसलों में टमाटर, बैंगन, भिंडी, मिर्च, आलू, गाजर, कद्दू, फल वर्गीय फसलों में अंगूर, पपीता, आड़ू, शहतूत, अनार दलहनी फसलों में चना, मूंग, उर्द, तिलहन वर्गीय फसलों में मूंगफली, सूरजमुखी, रेशा वर्गीय फसलों में कपास, जूट, अन्य फसलों में चाय काफ़ी हल्दी अदरक इत्यादि फसलें प्रभावित होती हैं।
सूत्र कृमि के लक्षण
जिस खेत में यह कीट लग जाता है उस खेत में फसल वृद्धि रुक जाती है, पौधों में प्रबलता की कमी हो जाती है, पौधा पीला होकर कमजोर हो जाता है, जड़े डमरू आकार की हो जाती हैं। फूल के विकास में रुकावटें आ जाती हैं।
वृद्धि नियामक कारक
फसलों में वृद्धि नियामक कारकों की बात करें तो मिट्टी धीरे-धीरे अस्वथ्य हो जाती है, खेत मे तापमान असंतुलन बना रहता है जिस कारण किसानों को खेत मे विषम परिस्थिति दिखाई पड़ने लगती है लेकिन वजह सूत्र कृमि होते हैं।
ऐसे करें प्रबंधन
नीम की खली 250-400 किलो. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना चाहिए। ट्राइकोडर्मा हरजियानम एवं पेसिलोमायीसीज 5-5 किलोग्राम मात्रा को 100 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें, काब्रोसल्फान 2-5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना चाहिए।
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Posted by : Kushal Mishra