मिर्च की नई किस्मों से बढ़ेगी किसानों की आमदनी: न रोग लगने का ख़तरा, न कीटनाशक का झंझट

पर्ण कुंचन रोग, मिर्च की खेती करने वाले किसानों पर हर साल कहर बरपाता है। लेकिन अब किसानों के लिए एक राहत भरी ख़बर है। भारतीय बाग़वानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर) ने मिर्च की पांच ऐसी किस्में विकसित की हैं जिन पर इस बीमारी का कोई असर नहीं होता।
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मिर्च के पौधों में पर्ण कुंचन (लीफ कर्ल) बीमारी एक वायरस से फैलती है, जिसमें मिर्च की पत्तिया मुड़ जाती हैं और पीली पड़ने लगती हैं, पत्तियों का आकार भी छोटा होने लगता है। इस बीमारी के प्रकोप से पौधों का विकास रुक जाती है। इस बीमारी की वजह से मिर्च की खेती करने वाले किसानों को हर साल भारी नुकसान उठाना पड़ता है। लेकिन अब मिर्च की खेती करने वाले किसानों को चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। इस बीमारी के नुकसान से किसानों को बचाने के लिए भारतीय बाग़वानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरू ने मिर्च की नई किस्में विकसित की हैं, जिनमें इस बीमारी के प्रतिरोध की क्षमता है।

संस्थान के सब्जी फसल संभाग की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. के माधवी रेड्डी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमने मिर्च की ऐसी पांच किस्में विकसित की हैं जो चिली लीफ कर्ल बीमारी की प्रतिरोधी हैं। नई किस्मों की खेती से कीटनाशकों का प्रयोग भी कम होगा, क्योंकि वायरस से बचने के लिए किसान ज्यादा से ज्यादा कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं।”

लीफ कर्ल में पौधों की पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है और पैदावार नहीं होती है। फोटो: ICAR-CCAR, GOA

भारत में लगभग 7.33 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में मिर्च की खेती होती है। प्रमुख मिर्च उत्पादक राज्यों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। भारत ने साल 2019-20 में यूएई, यूके, कतर, ओमान जैसे देशों में 25,976.32 लाख रुपए मूल्य की 44,415.73 मीट्रिक टन मिर्च का निर्यात किया था।

डॉ. के माधवी रेड्डी ने आगे बताया, “मिर्च की पहले भी कई किस्में विकसित की गईं हैं, लेकिन बेहतर उत्पादन और रोग प्रतिरोधी किस्मों की जरूरत लगातार बनी रहती है। चिली लीफ कर्ल से मिर्च की फसल 90 प्रतिशत तक प्रभावित हो जाती है। पिछले दस साल से इन किस्मों पर रिसर्च चल रही थी। हमने मिर्च की 52 किस्मों पर रिसर्च करके उनसे पांच हाइब्रिड किस्में विकसित की हैं।”

भारतीय बाग़वानी अनुसंधान संस्थान अभी कर्नाटक के साथ-साथ देश के सभी कृषि विज्ञान केंद्रों पर मिर्च की इन सभी किस्मों का परीक्षण करेगा। अगर कृषि विज्ञान केंद्र पर मिर्च की खेती सफल हुई तो ये किस्मे्ं कृषि विज्ञान केंद्रों के जरिए किसानों तक पहुँचाई जाएंगी।

मिर्च की नई प्रतिरोधी किस्मों के बारे में डॉ रेड्डी ने बताया, “अर्का तेजस्वी, अर्का यशस्वी, अर्का सान्वी, अर्का तन्वी और अर्का गगन पांच नई प्रतिरोधी किस्में हैं, इसमें हर एक किस्म की अलग विशेषता है। तेजस्वी और यशस्वी सूखी मिर्च के उत्पादन के लिए, गगन हरी मिर्च के उत्पादन के लिए, जबकि सान्वी और तन्वी को सूखी और हरी दोनों ही तरह की मिर्च के उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।”

अर्का गगन के पौधे मध्यम आकार के होते हैं और इनसे 100 कुंतल प्रति एकड़ हरी मिर्च का उत्पादन हो सकता है। अर्का तन्वी से प्रति एकड़ 30-35 कुंतल सूखी मिर्च या 100 कुंतल हरी मिर्च का उत्पादन हो सकता है। अर्का सान्वी से प्रति एकड़ 30-35 कुंतल सूखी मिर्च या 100 कुंतल प्रति एकड़ हरी मिर्च का उत्पादन हो सकता है। अर्का यशस्वी से 30-35 कुंतल सूखी मिर्च का उत्पादन हो सकता है। जबकि अर्का यशस्वी से भी 30-35 कुंतल सूखी मिर्च का उत्पादन हो सकता है।

इसके साथ ही संस्थान ने अर्का नीलांचल प्रभा (एन्थ्राक्नोज रोग प्रतिरोधी), अर्का ख्याती (पाउडरी मिलड्यू रोग और वायरस प्रतिरोधी), अर्का मेघना (वायरस और चूसक कीट प्रतिरोधी), अर्का हरिता (पाउडरी मिलड्यू रोग और वायरस प्रतिरोधी) जैसी मिर्च की कई प्रतिरोधी किस्में भी विकसित हैं। जिनकी खेती करके किसान कई बीमारियों और कीटों से अपनी फसल को बचा सकते हैं। 

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