अयोध्यावासी बोले- फैसले के बाद राजनीति खत्म, अब विकास पर हो बात

रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अयोध्या के सभी वर्गों ने किया स्वागत। बाबरी मस्जिद के पैरोकार इकबाल अंसारी ने कहा, “हम फैसले के साथ हैं। जो कुछ भी करना था कर चुके, अब हमें कुछ भी नहीं करना।”
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लखनऊ। रामजन्म भूमि विवादित स्थल को रामलला विराजमान को देने और मस्जिद के लिए पांच एकड़ ज़मीन दूसरी जगह देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अयोध्या के लोगों ने खुले दिल से स्वागत किया है।

काफी समय तक रामलला के कपड़े सिलने वाले बाबू खां ने गांव कनेक्शन से फोन पर बात-चीत में कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने गंगा-जमुनी तहजीब को बरकरार रखा। हमें मस्जिद के लिए ज़मीन दे दी और मंदिर का भी रास्ता साफ हो गया। भगवान राम अब तिरपाल में नहीं रहेंगे और अयोध्या का विकास भी होगा।”

बाबू खां कहते हैं, “मंदिर-मस्जिद दोनो बनेंगे तो बाहर से पर्यटक अधिक आएंगे। सुप्रीम कोर्ट अगर यह साफ कर देता कि मस्जिद कहां बनेगी तो और भी अच्छा होता। अब सरकार अयोध्या के मुसलमानों से बात करे कि मस्जिद कहां बनाई जाए।”

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 40 दिनों तक अनवरत सुनवाई करते हुए 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के पांचों जजों ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए विवादित ज़मीन रामलला विराजमान को दे दी और मुस्लिम समुदाय को मस्जिद के लिए जमीन किसी अहम जगह पर देने के निर्देश केन्द्र सरकार को दिए।

शनिवार को कोर्ट का फैसला आने के बाद बरावफात का जुलूस न निकाल पाने का मलाल बाबू खां को बिल्कुल भी नहीं है। वह खुश हैं कि अब अयोध्या का विकास हो पाएगा।

रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद में जिला न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बाबरी मस्जिद के पैरोकार हासिम अंसारी का 95 वर्ष की आयु में इंतकाल हो गया था। वह भी इस मसले पर हो रही राजनीति से आहत थे। वर्ष 2014 में गाँव कनेक्शन से कहा था कि यह मसला अब खत्म होना चाहिए।

हासिम अंसारी की मृत्यु के बाद उनकी जगह अदालत में इस मामले में पैरोकार उनके बेटे इकबाल अंसारी ने फोन पर गाँव कनेक्शन से कहा, “सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है हम उसका सम्मान करते हैं। इसके बाद कम से कम राजनीति तो खत्म होगी। हमें जो कुछ भी करना था हम कर चुके। अब हमें कुछ भी नहीं करना। हम इस फैसले के साथ हैं।”

पिछले 70 वर्षों से मंदिर-मस्जिद मामले पर हो रही राजनीति से उकता चुके यहां के लोग अयोध्या की बदहाली के लिए भी इसी मसले को मानते रहे हैं।

अयोध्या में एक स्वयंसेवी संस्थान से जुड़े अमित सिंह अपने मुस्लिम युवा साथियों की बातें साझा करते हुए बताते हैं, “हमारे मुस्लिम साथी भी कह रहे थे कि मंदिर बनने से व्यापार ही बढ़ेगा। आज युवा मंदिर-मस्जिद से आगे विकास के बारे में सोचता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद हम सब जीते हैं।”

“अभी तक अयोध्या को लोग इस विवादित मसले से जोड़ कर जानते थे, लेकिन अब आगे अयोध्या को भविष्य के पर्यटनस्थल के रूप में देखा जाएगा,” अमित सिंह कहते हैं “हम अयोध्यावासियों और सरकार की जिम्मेदारी है कि पर्यटन को कैसे बढ़ाया जाए।”

पिछले कई सालों से राजनीति का मोहरा बनते आ रहे अयोध्यावासी चाहते थे कि फैसला किसी के भी पक्ष में आए लेकिन शहर का अमन-चैन न बिगड़े। “अयोध्या में बाहरी लोग ही आकर माहौल बिगाड़ते थे। जो इस बार नहीं घुस पाए,” अयोध्या में रहने वाले शिव सामंत फोन पर कहते हैं।

छह दिसंबर, 1992 को मस्जिद ढहाई जाने के बाद और 09 नवंबर, 2019 को इसके मालिकाना हक का फैसला आने के बाद अयोध्या के हालात के बारे में विस्तार से बताते हुए शिव सामंत कहते हैं, “उस दिन आज जैसे हालात नहीं थे, कर्फ्यू लगा हुआ था पुलिस-पब्लिक मिल कर काम कर रही थी। आज के दिन अयोध्या पूरी तरह शांत है।”

कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या के हालात के बारे में, वहां रहने वाले पत्रकार जयप्रकाश कहते हैं, “अयोध्या आज पूरी शांत है। एक दिन पहले लोगों के मन में थोड़ा संशय के भाव थे, सब्जी और जरूरत की चीजें खरीदने निकले थे, लेकिन आज (शनिवार को) ऐसा नहीं है। अयोध्या में बाहर से आने वालों को रोका गया था, बसें खाली थीं, लेकिन दिन में फैसले के बाद माहौल शांत है। अब विकास भी होगा और सहयोग भी होगा।” 

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