‘पनवा में बसल हमर परनवा, हम कहवां जाईं?’
बिहार के नवादा जिले के दुहई सुहई गांव के नवलेश चौरसिया (35 वर्ष) मगधी का यह लोकगीत गाते-गाते भावुक हो जाते हैं। कहते हैं, “हमारी जिंदगी इस पान के इर्द-गिर्द ही घूम कर रह गई। बचपन में बाबा और बाबू जी (पिता) ने पान की खेती करना सिखाया। अब पूरे परिवार के साथ मिलकर पान की खेती करता हूं। पत्नी, भाई और बच्चे सभी इसमें लगे रहते हैं। लेकिन इसकी कमाई से अब पेट नहीं भर पाता।”
औरंगाबाद, नवादा, गया और नालंदा सहित बिहार के डेढ़ दर्जन जिलों के 4000 हेक्टेयर से अधिक जमीन पर मगही पान की खेती होती है। इन जिलों के लगभग 10 हजार किसान परिवार पीढ़ियों से पान की खेती करते आ रहे हैं। यह उनका पारम्परिक पेशा है, जिसे वे बहुत खुशी और संतुष्टि के साथ करते हैं। बुजुर्ग किसान कृष्ण प्रसाद चौरसिया (66 वर्ष) गर्व से बताते हैं, ‘बनारस के लोग जिस पान को पूरी दुनिया को खिलाकर इठलाते हैं, वह हम पैदा करते है।’
लेकिन बदलता मौसम पैटर्न, फसल को लग रही नई-नई बीमारियां और मंडी के अभाव इन पान किसानों को उनकी पारम्परिक खेती से दूर कर रहा है। अपने पिता रामानंद चौरसिया (68 वर्ष) के साथ बचपन में पान की खेती करने वाले कन्हैया कुमार (25 वर्ष) ने पान की खेती छोड़ दी है और बिजली का काम सीख रहे हैं। कहते हैं, ‘पैसा है ही नहीं इसमें तो पूरी जिंदगी खटाने का क्या फायदा?’
2019 में मगध के पान किसानों पर मौसम की चौतरफा मार पड़ी है। जहां जनवरी-फरवरी की भीषण शीतलहरी में पान की पत्तियां मुरझा गई, वहीं मई-जून की गर्म हवाओं और लू के थपेड़ों ने पान की पत्तियों को झुलसा कर रख दिया। इसके बाद मानसून के अंत यानी सितंबर में हुई बेतहाशा बारिश से पान के बाड़े (बरेजा) में पानी भर गया और पौधे ‘गलकी’ रोग का शिकार हो गईं, जिसमें पौधे का जड़ काला होकर खत्म हो जाता हैं।
किसान गणेश चौरसिया (43 वर्ष) अपनी पान की बागवानी में पानी दे रहे हैं। सड़े हुए पान के पत्तों को दिखाते हुए कहते हैं, “इस बार सितम्बर के आखिरी में बेतहाशा बारिश हुई, जिसकी हमें उम्मीद नहीं थी। पूरे खेत में पानी जमा हो गया था। इसकी वजह से जड़ों में ‘गलकी’ लग गई। पत्तियों पर भी बारिश की तेज बूंदें पड़ी और उसमें दाग-धब्बे लग गए।”
“कोई भी आदमी ऐसा पान नहीं खाता है, जिसमें थोड़ा सा भी दाग लगा हो। इसलिए व्यापारी ऐसे पत्तों को खरीदने क्या देखने से भी इनकार कर देते हैं। लेकिन हम किसानों का क्या, नुकसान तो हमारा ही होता है।”, बगल में खड़े जितेंद्र प्रसाद बीच में ही बोल पड़ते हैं।
बदलते हुए मौसम और जलवायु परिवर्तन के इस दौर में किसानों के लिए खेती एक चुनौती बनती जा रही है। पान किसान भी इससे लड़ने में खुद को अक्षम पा रहे हैं। पान को लग रहे नए-नए रोगों के बारे में नवलेश कहते हैं, “पहले इस खेती में कोई बड़ी बीमारी नहीं लगती थी, लेकिन अभी कई तरह के रोग, कीट और बीमारियां लगने लगी हैं। अब हर 8 दिन पर पौधे को कीटनाशक और दवाई चाहिए। हम खुद के लिए भोजन जुटा पाएं या ना जुटा पाएं लेकिन पान के लिए दवा, कीटनाशक सब जुटाना पड़ता है।”
पान किसानों को प्रकृति से हुए इस नुकसान का कोई मुआवजा नहीं मिलता। नवादा में पथरौरा पंचायत के प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट सोसाएटी (पैक्स) के अध्यक्ष मंटू कुमार कहते हैं, “पान की खेती के प्रति सरकारें अब तक उदासीन रही हैं। धान, गेहूं, दलहन, तिलहन सभी फसलों पर बीमा, सब्सिडी और अन्य सरकारी कृषि योजनाओं का फायदा मिलता है लेकिन पान के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है।”
दरअसल पान की खेती ‘कृषि’ नहीं बल्कि ‘बागवानी’ की श्रेणी में आती है। इसलिए किसी भी सरकारी कृषि योजना का फायदा इन किसानों को नहीं मिल पाता। मगध सहित देश भर के पान किसानों की मांग है कि उनके काम को ‘कृषि’ का दर्जा दिया जाए ताकि वे लोग जरुरत के समय मिलने वाली बीमा, सब्सिडी और मुआवजे से वंचित ना हो।
पैक्स अध्यक्ष मंटू कुमार कहते हैं, “हमने दर्जनों बार इस मांग को लेकर आंदोलन और धरना प्रदर्शन किया। 2017 की भीषण शीतलहरी में भी पान किसानों को लाखों का नुकसान हुआ था। तब बिहार के कृषि मंत्री प्रेम कुमार ने गांवों का दौरा कर किसानों को उचित मुआवजा देने और पान की खेती को ‘कृषि’ का दर्जा दिए जाने का आश्वासन दिया था। लेकिन आज तक यह वादा पूरा नहीं हुआ। मुआवजे के नाम पर किसानों की लाखों की क्षति पर 2000 रुपये दिए गए।”
मगध के पान किसानों के लिए आस-पास कोई स्थायी मंडी ना होना भी एक बहुत बड़ी समस्या है। यहां के किसान बनारस जाकर अपने पान को बेचते हैं, जिसमें श्रम, समय और पैसा सबका नुकसान होता है। किसानों की शिकायत है कि बनारस के व्यापारी पान की खरीद में मनमानी करते हैं। 10 रुपये से 40 रुपये ढोली पान (लगभग 200-210 पत्ते) खरीदकर बाजार में 200 से 400 रुपये ढोली बेचते हैं। बिचौलिये अलग से कमीशन लेते है और व्यापारी भुगतान में देरी करते हैं।
किसान राम भरोसे चौरसिया (73 वर्ष) ने बताया, “हमें 20 साल पहले भी एक ढोली पान का दाम 10 रुपये मिलता था, अभी भी 10 रुपया ही मिलता है। सिंचाई, खाद, बीज, कीटनाशक, मजदूरी, जमीन का किराया और मालभाड़ा सबका दाम बढ़ा है। लेकिन हमारी पान की कीमत आज तक नहीं बढ़ी, ऊपर से भुगतान में देरी होती है सो अलग। 50-50 हजार का बकाया व्यापारी 6-6 महीने बाद करते हैं। कई बार तो हमारे साथ लूट पाट भी हो जाती है।”
साथ बैठे रामकृष्ण चौरसिया (57 वर्ष) ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया कि इस साल की शुरुआत में उनके साथ रास्ते में लूट-खसोट हुआ था, जिसमें लगभग 70 हजार रुपये लूटेरों ने छीन लिए थे। कहते हैं कि यह उनकी साल भर की कमाई थी, जो एक ही झटके में खत्म हो गई। रामकृष्ण का मानना है कि अगर आस-पास मंडी होगी तो पान किसानों को ऐसी किसी भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।
इन सभी परेशानियों को देखते हुए रामकृष्ण के दो बेटों ने इस काम से मुंह मोड़ लिया है। एक बेटा दिल्ली कमाने चला गया तो दूसरा बेटा राजगीर (बिहार) जाकर फल बेचता है। उन्होंने बताया कि उनका मंझला बेटा साथ रहकर पान की खेती में हाथ बटाता है, लेकिन लगता नहीं है कि वह भी इसमें टिक पाएगा।
मगही पान किसानों की समस्याओं पर बिहार के कृषि मंत्री प्रेम कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया कि मगही पान के लिए गया में मंडी निर्माण की योजना लंबे समय से प्रस्तावित है। उन्होंने यह स्वीकार भी किया कि कुछ तकनीकी वजहों से इसके निर्माण में देरी आ रही है। उन्होंने आश्वासन दिया कि जल्द ही किसानों की यह समस्या दूर कर दी जाएगी। हालांकि उन्होंने कोई निश्चित समय बताने से इनकार कर दिया।
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