लखनऊ। झारखंड के विधानसभा चुनावों में भाजपा को आदिवासी मतदाताओं ने सिरे से नकार दिया। राज्य में आदिवासी बाहुल्य इलाकों की 28 सीटों में से सिर्फ दो सीटों पर भाजपा को जीत मिली है।
झारखंड में रहने वाले आदिवासी मामलों के जानकार पंकज कहते हैं, “जिन 26 सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की अगुवाई वाले गठबंधन का कब्जा रहा इनमें 19 सीटों पर जेएमएम की जीत हुई। इससे साफ है कि आदिवासियों ने क्षेत्रीय पार्टी पर भरोसा दिखाया है।”
राज्य की कुल 81 सीटों में से 79 सीटों को ग्रामीण सीटें माना जा सकता है। इन ग्रामीण सीटों में से 40 सीटें जेएमएम गठबंधन के खाते में गईं।
पंकज कहते हैं, “हमने रघुबरदास का कार्यकाल देख लिया, अब झारखंडी लोग चाहते हैं कि झारखंड पर झारखंड की पार्टी ही राज करे।”
आगे भाजपा की हार के तीन प्रमुख कारण गिनाते हुए पंकज कहते हैं, “झारखंड भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन, मूलनिवास की तारीख बढ़ा कर बाहरियों को सुविधा देना और पत्थलगढ़ी वाले गाँवों को देशद्रोही बताना बड़ा कारण है।”
भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन का विरोध आदिवासियों ने जोर शोर से किया, जो आदिवासियों के हक को कमजोर कर रहा था। वहीं मूलनिवास का मामला भी काफी दिनों से चला आ रहा था। झारखंउ के लोगों की मांग रही थी कि राज्य में वर्ष 1932 की जनसंख्या के आधार पर हो, लेकिन भाजपा ने इसे बढ़ाकर वर्ष 1985 कर दिया। इससे बाहर से आने वाले लोगों को काफी लाभ हुआ। ये झारखंड के लोगों में गुस्से का कारण बना।
जीत के बाद पत्रकारों से बात करते हुए हेमंत सोरेन ने कहा भी कि झारखंड की जनता ने स्पष्ट जनादेश दिया है, एक अलग राज्य बनाने का मकसद पूरा होगा।
झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह भी कहते है, “हेमंत सोरेन ने झारखंड की गाँवों की बात की उसे फायदा हुआ। भाजपा के 100 से ज्यादा स्टार प्रचारक आए, लेकिन हेमंत सोरेन अकेले अपनी बात समझाने में सफल रहे।”
अरविंद सिंह आगे कहते हैं, ” ग्रामीण व आदिवासियों में विचारधारा ने घर कर लिया कि राष्ट्रीय पार्टियां सिर्फ लूटना चाहती हैं। इस बार के चुनावों में स्थानीय मुद्दे हावी रहे।”
भाजपा का आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन) के साथ मिलकर न चुनाव लड़ना भी बड़ा कारण रहा। “राज्य में आजसू का करीब 10 प्रतिशत मतदाताओं पर प्रभाव है। आजसू सीटें भले ही ज्यादा नहीं जीती, लेकिन भाजपा को हरा जरूर दिया”, झारखंड में काफी दिनों तक हिन्दुस्तान टाइम्स के रीजनल एडिटर रहे विजय मूर्ति कहते हैं।
झारखंड के गोड्डा में अडानी की कंपनी द्वारा पावर प्लांट के लिए भूमि अधिग्रहण का हुआ विरोध इसका ज्वलंत उदाहरण है कि किस तरह आदिवासियों के मन में डर बैठा हुआ था।
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